नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट बताया कि 19 दिसंबर को दिल्ली धर्म संसद में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ किसी तरह के हेट स्पीच देने के सबूत नहीं है.
सर्वोच्च अदालत में दस्तावेज के साथ पेश हुई दिल्ली पुलिस ने कहा कि कोई खास शब्द किसी समुदाय के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया गया है.
इसमें कहा गया है कि पुलिस ने आयोजन के खिलाफ शिकायत में प्रारंंभिक जांच की और दिए गए भाषणों के वीडियो की जांच के आधार पर आयोजन के खिलाफ दायर की गई शिकायतों को बंद किया जा रहा.
इसमें कहा गया, ‘वीडियो की गहराई से जांच और बाकी मिले मैटेरियल से पता चला है कि किसी समुदाय के खिलाफ कोई हेट स्पीच नहीं दी गई है. इसलिए कथित वीडियो क्लिप की जांच-मूल्यांकन के बाद, यह निष्कर्ष निकाला गया कि कथित भाषण में किसी विशेष समुदाय के खिलाफ कोई अभद्र भाषा नहीं थी.’
पुलिस ने शीर्ष अदालत के समक्ष आगे कहा कि दिल्ली के गोविंदपुरी में हिंदू युवा वाहिनी कार्यक्रम में सुदर्शन टीवी के सुरेश चव्हाण के भाषण में अभद्र भाषा नहीं थी क्योंकि चव्हाण के द्वारा भाषण में इस्तेमाल किसी भी शब्द में स्पष्ट रूप से भारतीय मुसलमानों को क्षेत्र के हड़पने वाले के रूप में वर्णित नहीं किया गया था. या किसी भी तरह से इसका मतलब यह नहीं है कि ‘मुसलमान भूमि हड़पने वाले थे’ या ‘यह किसी भी धर्म के खिलाफ उन्माद का माहौल बना सकता है.’
हलफनामे में कहा गया है ऐसे शब्दों का कोई इस्तेमाल नहीं है, जिनका अर्थ या व्याख्या मुसलमानों के नरसंहार के लिए खुले आह्वान के रूप में किया जा सकता है.
हलफनामा हरिद्वार धर्म संसद और दिल्ली धर्म संसद में मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने वाले कथित नफरत भरे भाषणों की स्वतंत्र जांच की मांग वाली याचिका के जवाब में दायर किया गया था.
याचिका में कहा गया है कि दिसंबर 17 और 19, 2021 को दो अलग-अलग आयोजन जो दिल्ली में हिंदू युवा वाहिनी और हरिद्वार में (यति नरसिंहानंद) पर हेट स्पीच देने का आरोप था, जिसमें सुमलमानों को नरसंहार की बात कही गई थी.
यह याचिका पूर्व हाईकोर्ट जज और सीनियर एडवोकेट अंजना प्रकाश और पत्रकार कुर्बान अली ने दायर की थी
12 जनवरी को सर्वोच्च अदालत ने उत्तराखंड सरकार को आदेश दिया था कि केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस याचिका पर धर्म संसद को लेकर हेट स्पीच मामले में जवाब दे.
दिल्ली पुलिस के हलफनामे में आगे कहा गया है कि दिल्ली में होने वाले कार्यक्रम और भाषण किसी के धर्म को उन बुराइयों का सामना करने के लिए खुद को तैयार करने के लिए सशक्त बनाने के बारे में थे जो उसके अस्तित्व को खतरे में डाल सकते थे.
पुलिस ने दावा किया है कि, ‘दूसरे के नजरिए को टॉलरेट’ किया जाना चाहिए.
‘हमें दूसरे के नजरिये को लेकर सहिष्णु करना चाहिए. असहिष्णुता लोकतंत्र के खिलाफ बहुत खतरनाक है, उतनी ही खुद के खिलाफ भी है. इसमें कहा गया है, ‘याचिकाकर्ता मुख्य विषय और उसके संदेश की अवहेलना करते हुए अलग-अलग अंशों द्वारा एक गलत और बेतुका निष्कर्ष निकालने की कोशिश कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तब तक दी जानी चाहिए जब तक कि सामुदायिक हितों को खतरा न हो. इस मामले में जनहित को कोई खतरा नहीं है.’
दिल्ली पुलिस ने सांप्रदायिक नफरत फैलाने वालों के साथ हाथ मिलाने के दावों का भी खंडन किया क्योंकि जांच एक वीडियो टेप के सबूतों पर आधारित है और इसमें छेड़छाड़ की कोई गुंजाइश नहीं है.
कल, शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड सरकार को दिसंबर 2021 में हरिद्वार में आयोजित धर्म संसद कार्यक्रम में दिए गए भाषणों की जांच में प्रगति के संबंध में एक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा है.
याचिका में कहा गया है कि यह ध्यान रखना लाजिमी है कि मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई है
उत्तराखंड और दिल्ली पुलिस ने वहां आयोजित कार्यक्रम के संबंध में इस तथ्य के बावजूद कि नरसंहार के लिए खुले आह्वान, जो कि इंटरनेट पर उपलब्ध हैं, किए गए थे.
याचिका में एक वीडियो को भी उजागर किया गया है जो वायरल हो गया था जिसमें पुलिस अधिकारी को अपराधियों के प्रति अपनी निष्ठा को स्वीकार करते हुए देखा गया था.