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Thursday, 21 November, 2024
होममत-विमतचालीस साल से आकार ले रही एक नहर जिसके लिए खून बहाने को तैयार हैं पंजाब और हरियाणा

चालीस साल से आकार ले रही एक नहर जिसके लिए खून बहाने को तैयार हैं पंजाब और हरियाणा

केजरीवाल को हरियाणा से दिल्ली के लिए कम पानी छोड़ने की शिकायत रही है, वे सतलुज यमुना नहर को बनाने के समर्थक रहे हैं क्योंकि उसमें दिल्ली का भी हिस्सा है.

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1966 में हरियाणा पंजाब से अलग हुआ था और तभी से यह विवाद चल रहा है कि पंजाब में बहने वाली सतलुज, रावी और व्यास नदियों के पानी में उसे भी हिस्सा मिले. हरियाणा में मुख्य नदी यमुना ही है इसलिए तय किया गया पंजाब से एक नहर निकालकर यमुना में मिलाई जाए ताकि हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान को भी इन नदियों का पानी मिल सके. वक्त बीतने के साथ नदियों पर जरूरत हावी हो गई और पानी कम हो गया. तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1982 में सतलुज-यमुना लिंक नहर की नींव रखी थी. नहर ने थोड़ा बहुत आकार लिया था लेकिन उसमें पानी की जगह खून ही बहा. मजदूरों का खून, इंजिनियरों का खून और खुद इंदिरा गांधी का खून. अकाली दल ने तो अपनी राजनीति की नींव ही नहर विरोध के कपूरी मोर्चा के तहत रखी और सत्ता तक पहुंचे.

इंदिरा गांधी प्रकाश सिंह बादल से लेकर मनोहर लाल खट्टर, भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल तक, सिर्फ चेहरे बदलते रहे और विवाद भी विकराल होता रहा. हरियाणा को इस नहर की सबसे ज्यादा जरुरत है लेकिन उसकी मांग में गंभीरता से ज्यादा राजनीति है. केजरीवाल को हरियाणा से दिल्ली के लिए कम पानी छोड़ने की शिकायत रही है, वे सतलुज यमुना नहर को बनाने के समर्थक रहे हैं क्योंकि उसमें दिल्ली का भी हिस्सा है. दूसरी ओर भगवंत मान चाहकर भी नहर नहीं बना सकते. तनाव अब राजनीति से आगे सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर पहुंच गया है.

जमीन वापस दे कर रहेंगे – 214 किलोमीटर लंबी नहर में हरियाणा अपने हिस्से यानी 92 किलोमीटर की नहर पहले ही बना चुका था. पंजाब ने भी जमीन अधिग्रहित कर रखी थी लेकिन विरोध के चलते नहर का काम नहीं हो पा रहा था. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव- लोगोंवाल समझौते यह तय किया गया था कि नहर एक साल के भीतर तैयार कर ली जाएगी.  लेकिन इसके बाद संत लोगोंवाल की हत्या हो गई और विरोधियों ने नहर का काम कर रहे दो इंजीनियरों सहित 35 मजदूरों को मार डाला और काम रूक गया.


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2017 के चुनाव में राजनीतिक दलों ने यह वायदा कर दिया कि नहर नहीं बनेगी और नहर के ली गई जमीन भी उसके पूर्व मालिकों को वापस कर दी जाएगी इसके लिए उन्हे मुआवजा भी नहीं लौटाना होगा. अमरिंदर सिंह सरकार की इस कोशिश को राज्यपाल और अदालतों ने मान्यता नहीं दी लेकिन नहर का विरोध कर रहे लोगों ने जमीन वापस पाने का सपना देख लिया. कुलमिलाकर जिस नहर में चालीस साल में एक बूंद पानी नहीं बहा वहां लोग खून बहाने के लिए तैयार बैठे हैं.

ये अंधा कानून है – 2004 में पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट विधानसभा में पास करा लिया. इस एक्ट में पंजाब ने खुद को पिछले सभी समझौते से अलग कर लिया. उस समय हरियाणा, दिल्ली और केंद्र में भी कांग्रेस की ही सरकार थी लेकिन कांग्रेस ने विवाद निपटाने की बजाए इसे खींचना बेहतर समझा और सुप्रीम कोर्ट को यह निर्णय देने में बारह साल लग गए कि पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट असंवैधानिक है.

महान गलती का मुआवजा तो बनता है- साठ के दशक में हरित क्रांति की प्रयोगशाला के तौर पर पंजाब को चुना गया. देश में खाद्यान की समस्या से निपटने के लिए बड़ी मात्रा में पेस्टिसाइड और यूरिया का उपयोग किया गया. पंजाब की धरती ने भरपूर आनाज पैदा किया लेकिन इस महान प्रयोग के साइड इफेक्ट ग्राउंड वाटर खत्म होने, जमीन की उर्वरा छिनने और मरूस्थलिकरण के रूप में सामने आया. उस महान प्रयोग के अवशेष कैंसर ट्रेन में भी नजर आते हैं. अब पंजाब मुआवजे के तौर पर अपनी नदियों का पानी उपयोग करना चाहता है ताकि ग्राउंड वाटर सुधारा जा सके.

नदी की भी उम्र होती है – 1981 में जब इंदिरा गांधी ने सभी राज्यों के बीच सतलुज, रावी और व्यास के पानी का बंटवारा किया तब कुल उपलब्धता 17.17 एमएएफ यानी मिलियन एकड़ फीट बताई गई थी. इसमें से 4.22 एमएएफ पानी पंजाब को, 3.5 एमएएफ हरियाणा को, 8.6 एमएएफ राजस्थान को 0.65 एमएएफ जम्मू कश्मीर और 0.20 एमएएफ पानी दिल्ली को देने पर सहमति बनी.

इस बंटवारे की सबसे खास बात यह थी कि नदी का अपने पानी पर कोई हिस्सा नहीं था. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि अभी सिर्फ राजस्थान को इंदिरा गांधी फीडर कैनाल के द्वारा पानी मिल रहा है. यदि सतलुज यमुना लिंक नहर बनी तो उसमें पानी राजस्थान को जा रहे पानी में से ही ट्रांसफर किया जाएगा. जिसका सीधा परिणाम जोधपुर, जैसलमेर, बाढ़मेर, बीकानेर जैसे कम पानी वाले इलाकों पर पड़ेगा. इन नदियों में 1981 के 17.17 एमएएफ की तुलना में अब सिर्फ 12 एमएएफ पानी बचा है और तेजी से खत्म हो रहा है.

यह खालिस्तान की आहट है – वैसे भी आम आदमी पार्टी पर यह आरोप लग चुका है कि उसके समर्थकों में खालिस्तान चाहने वाले भी शामिल है. ड्रग्स और शराब माफिया पर लगाम लगाना भगवंत मान की प्राथमिकता होनी चाहिए. माना यही जाता है कि खालिस्तान आंदोलन को फंडिग ड्रग्स और शराब से ही होती है. बेरोजगारी ने इस समस्या को अनियंत्रित कर दिया है. क्षेत्रवाद में अंधे बेरोजगार युवकों के भटकने और हथियार उठाने की पूरी आशंका है. सतलुज-यमुना लिंक नहर विवाद इसके लिए खाद पानी का सबब बन सकता है. मानो हम किसी जलयुद्ध के मुहाने पर बैठा समाज है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

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