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Wednesday, 20 November, 2024
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चंडीगढ़ को लेकर हरियाणा और पंजाब में क्यों हैं खींचातानी

1966 में जब हरियाणा को पंजाब से अलग किया गया था, तब दोनों राज्यों ने चंडीगढ़ को अपनी राजधानी के रूप में दावा किया था। तब इंदिरा गांधी ने विवाद को सुलझाने के लिए इसे एक अस्थायी कदम के रूप में केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया था.

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नई दिल्ली: चंडीगढ़ पर अधिकार को लेकर पंजाब विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव के विरोध में हरियाणा सरकार ने मंगलवार को एक विशेष विधानसभा सत्र के दौरान एक प्रस्ताव पेश किया. केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी है.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा की थी कि केंद्र शासित प्रदेश के कर्मचारियों पर केंद्रीय सेवा नियम लागू होंगे. इसके कुछ दिनों बाद ही, पंजाब विधानसभा ने शुक्रवार को एक प्रस्ताव पारित करते हुए केंद्र से चंडीगढ़ को राज्य में तत्काल स्थानांतरित करने की मांग कर डाली.

हरियाणा विधानसभा का विशेष सत्र आयोजित करने का निर्णय रविवार को मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में लिया गया था. पंजाब विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव का विरोध करने के लिए मुख्यमंत्री पर न केवल विपक्ष की तरफ से बल्कि उनकी पार्टी और सहयोगियों की ओर से भी दबाव डाला जा रहा था.

विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा था, ‘चंडीगढ़ हरियाणा का था, है और आगे भी रहेगा. राज्य के हितों से किसी भी कीमत पर खिलवाड़ नहीं होने देंगे. इसके लिए कोई भी कुर्बानी देने के लिए तैयार हैं. इसमें पदयात्रा से लेकर या प्रदेश हित के लिए उठाए जाने वाले अन्य कदम शामिल है.’ सीएम खट्टर ने यह भी दोहराया कि वे पंजाब को ‘चंडीगढ़ को छीनने’ की अनुमति नहीं देंगे.

चंडीगढ़ शहर भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू का सपना था, जो इसे ‘बाकी दुनिया के लिए एक आदर्श शहर’ बनाना चाहते थे. इसे फ्रांसीसी वास्तुकार ले कॉर्बूसियर ने डिजाइन किया था. इस नियोजित शहर का निर्माण 1950 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ था, जो 1960 के दशक की शुरुआत में जाकर पूरा हुआ.

पंजाब विधानसभा में पारित प्रस्ताव

1अप्रैल को आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने राज्य विधानसभा में सभी विपक्षी सदस्यों से साझा उद्देश्य के लिए एक साथ आने की अपील की थी. और इस तरह से, प्रस्ताव सदन में सर्वसम्मति से पारित किया गया. हालांकि वो दो भाजपा विधायक, जिन्होंने पहले सदन से वॉकआउट किया था, सदन में अनुपस्थित रहे.

यह प्रस्ताव उस राजनीतिक विवाद छिड़ने के बीच आया, जब 28 मार्च को अमित शाह ने घोषणा की थी कि केंद्रीय सेवा नियम चंडीगढ़ के कर्मचारियों पर लागू होंगे. पंजाब में कांग्रेस, अकाली दल और बसपा सहित सभी राजनीतिक दलों के सदस्यों ने इसे ‘तानाशाही और निरंकुश’ करार दिया और केंद्र पर ‘चंडीगढ़ पर पंजाब के अधिकारों को हड़पने’ का आरोप लगाया. भाजपा के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार ने अब तक शाह की घोषणा पर कोई टिप्पणी नहीं की है.

मान ने केंद्र पर केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन में संतुलन को बिगाड़ने की कोशिश करने का भी आरोप लगाया था. भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) में नियुक्ति के लिए नियमों में बदलाव किया है। पहले नियुक्तियां केवल पंजाब और हरियाणा से की जाती थी लेकिन अब बोर्ड भारत में कहीं से भी भर्ती कर सकता है. जबकि चंडीगढ़ प्रशासन को पंजाब और हरियाणा के अधिकारियों द्वारा 60:40 के अनुपात में प्रबंधित किया गया है.

प्रस्ताव में कहा गया, ‘हालांकि, हाल ही में केंद्र सरकार ने चंडीगढ़ में बाहर से अधिकारियों को तैनात किया है और चंडीगढ़ प्रशासन के कर्मचारियों के लिए केंद्रीय सिविल सेवा नियम पेश किए हैं, जो पूरी तरह से समझ के खिलाफ है.’

केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के कर्मचारी वर्तमान में पंजाब सेवा नियमों के तहत काम करते हैं. केंद्रीय नियमों में बदलाव से कर्मचारियों की रिटायरमेंट की उम्र 58 से बढ़ाकर 60 वर्ष हो जाएगी. साथ ही कर्मचारियों के चाइल्डकैअर अवकाश को दो साल तक बढ़ा दिया जाएगा.

प्रस्ताव के अनुसार, चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी के रूप में बनाया गया था. पिछले सभी उदाहरणों में जब भी किसी राज्य को विभाजित किया गया, तो राजधानी मूल राज्य के पास रहती है. इसलिए पंजाब, चंडीगढ़ को पंजाब में पूर्ण रूप से स्थानांतरित करने के लिए अपना दावा पेश कर रहा है. पहले भी ऐसे कई प्रस्ताव पारित किए जा चुके हैं.


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क्या है चंडीगढ़ का इतिहास?

भारत के बंटवारे के दौरान, पंजाब प्रांत दो भागों में विभाजित हो गया था – पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान में) और पूर्वी पंजाब (भारत में). 1950 में, पूर्वी पंजाब का नाम बदलकर पंजाब राज्य कर दिया गया और चंडीगढ़ को भारत सरकार ने राजधानी बना दिया था.

1966 में अविभाजित पंजाब को भाषा के आधार पर फिर से एक बार विभाजित कर दिया गया- पंजाबी भाषा वालों के लिए पंजाब और हिंदी भाषा वालों के लिए हरियाणा. जबकि कुछ क्षेत्र नए पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में भी चले गए थे. पंजाब और हरियाणा दोनों ने चंडीगढ़ को अपनी राजधानी के रूप में दावा किया था. उस समय, इंदिरा गांधी ने विवाद को सुलझाने के लिए चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया था. लेकिन साथ में ये संकेत दे दिया था कि ऐसा सिर्फ अस्थायी तौर पर किया गया है और बाद में इसे पंजाब में स्थानांतरित कर दिया जाएगा.

1976 में, केंद्र ने चंडीगढ़ को दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी बनाये रखा क्योंकि पंजाब और हरियाणा दोनों ही इसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे.

1985 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली दल के प्रमुख हरचंद सिंह लोंगोवाल द्वारा हस्ताक्षरित समझौते के अनुसार, चंडीगढ़ को 1986 में पंजाब को सौंपा जाना था, जबकि कुछ हिंदी भाषी शहर जैसे अबोहर और फाजिल्का को हरियाणा को दिया जाना था. राज्य को अपनी राजधानी बनाने के लिए 10 करोड़ रुपये की राशि भी दी जानी थी. हालाकि समझौते कभी लागू नहीं हो पाया. क्योंकि लोंगोवाल की आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी, जो इसके विरोध में थे.

पंजाब में 1990 के दशक के मध्य तक फैले उग्रवाद के कारण यह विवाद आंशिक रूप से बना रहा था. क्योंकि राज्य अपने हिंदी भाषी क्षेत्रों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था. हरियाणा को भी हमेशा से पंजाब को चंडीगढ़ के साथ जोड़े जाने पर आपत्ति रही है. राज्य के राजनेताओं का मानना था कि यह अंबाला जिले का एक हिस्सा है और हरियाणा का एक अविभाज्य हिस्सा है.

यहां तक कि हिमाचल प्रदेश ने भी 2011 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर राजधानी के हिस्से का दावा किया था. आदेश के अनुसार, पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के आधार पर हिमाचल प्रदेश चंडीगढ़ की 7.19 प्रतिशत भूमि प्राप्त करने का हकदार था.

प्रस्ताव के पारित होने का मतलब

यह पहली बार नहीं है कि पंजाब विधानसभा ने चंडीगढ़ मुद्दे पर यह प्रस्ताव पारित किया है. चंड़ीगढ़ को लेकर पंजाब पहले भी सात प्रस्ताव पारित कर चुका है. ज्यादातर प्रस्ताव शिरोमणि अकाली दल के नेतृत्व वाली सरकारों ने पेश किए थे. पिछले कुछ सालों में, चंडीगढ़ प्रशासन में पंजाब के घटते हिस्से और वहां अधिक से अधिक केंद्रीय अधिकारियों की पोस्टिंग को लेकर आक्रोश बढ़ता जा रहा है.

विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम न केवल चंडीगढ़ की स्थिति को बदल देगा, बल्कि पंजाब और हरियाणा के लोगों को विभाजित करने का माद्दा भी रखता है. ये दोनों राज्य नरेंद्र मोदी सरकार के कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए किए जा रहे किसान आंदोलन में एक साथ नजर आए थे.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

चंडीगढ़ में इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन (आईडीसी) के निदेशक प्रो. प्रमोद कुमार ने कहा कि शहर आर्थिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है. उन्होंने बताया, ‘हरियाणा में अभी भी गुरुग्राम और फरीदाबाद हैं, जो काफी हद तक इसकी राजधानी के तौर पर काम कर रहे हैं, लेकिन पंजाब में… हमेशा उस सांस्कृतिक पहचान का अभाव रहा है जो एक राजधानी के साथ आता है’ उन्होंने कहा, पंजाब आर्थिक रूप से तो नुकसान (चूंकि राजधानी राज्य जीडीपी में बहुत योगदान देते हैं) में है ही, साथ ही पहचान का संकट भी उसके सामने खड़ा रहता है.

हालांकि, कुमार ने कहा कि चंडीगढ़ को अपनी राजधानी के रूप में दावा करने के लिए पंजाब सरकार की हालिया कार्रवाई एक भटकाने वाली रणनीति है. वह अपने पड़ोसियों के साथ पानी के बंटवारे की समस्याओं जैसे वास्तविक मुद्दों से ध्यान हटा रही है. उनका मानना था कि प्रस्ताव पारित करना ‘शगुफा’ है और इससे कोई बदलाव नहीं आने वाला. पहले भी इसी तरह के कई प्रस्ताव पारित किए जा चुके हैं. जिनका कोई फायदा नहीं हुआ.

उन्होंने कहा, ‘अगर वे वास्तव में चंडीगढ़ को अपनी राजधानी बनाना चाहते हैं तो उन्हें गंभीरता से विरोध करना चाहिए.’

चंडीगढ़ में पंजाब विश्वविद्यालय के प्रो. रोंकी राम ने कहा: (पंजाब) सरकार की ओर से ऐसी राजनीतिक प्रतिक्रिया उनका एक डर है. क्योंकि उन्हें लगता है कि केंद्र सीधे चंडीगढ़ को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है. केंद्र शासित प्रदेश में अपनी हिस्सेदारी खोने के डर से इस पर इतनी चर्चा की जा रही है.

दोनों प्रोफेसरो ने चंडीगढ़ के कर्मचारियों के बीच केंद्रीय सिविल सेवा नियम लागू करने के केंद्र के फैसले का यह कहते हुए स्वागत किया कि ‘यह लंबे समय से लागू होना बाकी था.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )


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