रांची, चार अप्रैल (भाषा) ‘सरहुल’ का सबसे बड़ा आदिवासी त्योहार सोमवार को पूरे झारखंड में पारंपरिक उल्लास और उत्साह के साथ मनाया गया।
इस उत्सव के दौरान साल के पेड़ों की पूजा की जाती है।
पारंपरिक पोशाक पहनकर पुरुषों और महिलाओं ने राज्य के विभिन्न हिस्सों में सड़कों पर जुलूस निकाला।
सरहुल, जिसे वसंत उत्सव भी कहा जाता है, सुबह में अनुष्ठान के साथ शुरू हुआ। इसके बाद पारंपरिक प्रथाओं के आधार पर पुजारियों द्वारा बारिश का पूर्वानुमान लगाया गया। यह अनुमान लगाया गया कि झारखंड में इस मानसून में सामान्य वर्षा होगी, जिससे अच्छी उपज पैदा करने में मदद मिलेगी।
रांची के हटमा इलाके में सरना स्थल पर पूजा करने वाले पुजारी जगलाल पाहन ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘यदि सुबह तक जल स्तर कम हो जाता है, तो इसका मतलब है कि कम वर्षा होगी। यदि जल स्तर अपरिवर्तित रहता है, तो इसका मतलब है कि अच्छी वर्षा होगी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इस साल, हमने पाया कि झारखंड में मानसून अच्छा रहेगा। राज्य के उत्तरी हिस्सों में बारिश बेहतर होगी।’’
आदिवासी निकाय केन्द्रीय सरना समिति के अध्यक्ष बबलू मुंडा ने कहा कि वर्षों से सरहुल के दौरान की गई भविष्यवाणी भारत मौसम विज्ञान विभाग के पूर्वानुमान के अनुरूप पाई गई हैं।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जनजातीय छात्रावास परिसर में सरना स्थल और रांची के सिरम टोली में जाकर पूजा-अर्चना की।
उन्होंने कहा, ‘‘हम कोविड -19 की लंबी अवधि के बाद एक साथ त्योहार मना रहे हैं। इस त्योहार के माध्यम से प्रकृति की पूजा की जाती है। हमें अपनी प्रकृति, संस्कृति और परंपरा की रक्षा करने की आवश्यकता है। हमने राज्य और सरना में सभी सरना और मसना स्थलों को संरक्षित करने का निर्णय लिया है। सिरम टोली में स्थित स्थल का जीर्णोद्धार कर नई पहचान दी जाएगी।’’
झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने भी सरहुल के अवसर पर राज्य के लोगों को शुभकामनाएं दीं।
बाद में दिन में, पारंपरिक परिधानों में लोगों ने राज्य के विभिन्न हिस्सों में धार्मिक जुलूसों में भाग लिया।
रांची में भी जुलूस निकाला गया। इसका समापन सिरम टोली में हुआ जहां शाम को अनुष्ठान हुए।
भाषा
देवेंद्र उमा
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