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Friday, 22 November, 2024
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बीजेपी के यह पूर्व बागी नेता वाराणसी में मोदी के खास हैं और 2014 से जीत के अहम सूत्रधार भी

सुनील ओझा ने 2007 में भाजपा छोड़ दी थी. लेकिन साल 2011 में वह फिर से पार्टी में शामिल हो गए. प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें 2014 में अपनी सीट वाराणसी की जिम्मेदारी देने के लिए चुना था। तब से वह परदे के पीछे रहकर काम करते आए हैं और अपनी चतुराई के लिए जाने जाते हैं.

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नई दिल्ली: 3 मार्च को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वाराणसी में अपना रोड शो करना था. शहर के गुलाब बाग इलाके में स्थित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कार्यालय में खासी गहमागहमी का माहौल था.

उत्तर प्रदेश के पार्टी के सह-प्रभारी सुनील ओझा के पास वाराणसी और गोरखपुर की जिम्मेदारी है. गुलाब बाग कार्यालय के भीतर वह उन कार्यकर्ताओं से घिरे हुए थे, जिनके पास पीएम के दौरे और 10 मार्च को को लेकर ढेरों सवाल थे. इस दिन विधानसभा चुनावों के परिणाम आने वाले थे. ओझा ने शांति के साथ सभी की बात सुनी और फिर एक बंद कमरे में मीटिंग के लिए निकल पड़े.

ओझा से मिलने आए पार्टी के एक पदाधिकारी ने बताया, ‘चुनाव प्रचार शुरू होने के बाद से वह बिना रुके काम कर रहे हैं. वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठकों के अलावा, वह पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ भी समय बिताते हैं और उनके सभी संशय दूर करते हैं. जिस तरह से वह लोगों के साथ घुल-मिल जाते हैं, उससे पार्टी कार्यकर्ताओं को अपनी बात रखने का हौसला मिलता है.’

इस जिले को जीतना भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का मुद्दा था, क्योंकि इसमें मोदी का लोकसभा क्षेत्र वाराणसी भी शामिल है. और वो जीते भी, ठीक उसी तरह जैसे उन्होंने 2017 में जीत हासिल की थी. भाजपा और उसके सहयोगी दल ने मिलकर जिले की सभी आठ सीटों पर कब्जा जमाया है.

इस जीत के पीछे ओझा का बड़ा हाथ रहा है. वह वाराणसी में पीएम के लिए चुनावी रणनीति तैयार करने और चुनाव संबंधी कार्यों का दायित्व निभाने वाले प्रमुख व्यक्तियों में से एक माने जाते हैं.

गुजरात के इस पूर्व विधायक ने कभी बगावत की थी और मतभेदों के चलते भाजपा का साथ छोड़ दिया था. लेकिन वह 2011 में वापस लौट आए. उन्हें 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में वाराणसी में मोदी की जीत का अहम सूत्रधार माना गया. वह संगठन का काम देखने में माहिर माने जाते है. पार्टी के भीतर कई लोगों ने इस सफलता के पीछे ओझा के सांगठनिक कौशल, बेहतरीन योजना और चतुराई को माना है.

लेकिन ओझा खुद इसका श्रेय लेने से कतराते हैं और दावा करते हैं कि वह तो एक सामान्य भाजपा कार्यकर्ता हैं.

ओझा ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया है. लोगों को पता है कि सिर्फ भाजपा ही कुछ कर सकती है. पीएम मोदी का वाराणसी के साथ एक खास जुड़ाव है और यह उनके कामों में झलकता है.’

वह आगे कहते हैं, ‘जहां तक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र की देख-रेख का सवाल है, तो इसके लिए एक टीम है. जो इस बात का खास ध्यान रखती है कि सभी शिकायतों का तेजी से निपटारा किया जाए. पीएम मोदी हमेशा निर्वाचन क्षेत्र से संबंधित हर मुद्दे पर नजर बनाए रखते हैं. वह वाराणसी के लोगों के साथ नियमित रूप से बातचीत भी करते हैं. यहां हमारी जीत पीएम मोदी में लोगों के भरोसे का सबूत है.’

बीजेपी के अन्य पदाधिकारी ओझा की जमकर तारीफ करते है.


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बीजेपी को छोड़ा और फिर लौट आए

ओझा 1990 के दशक में सक्रिय राजनीति में शामिल हुए थे. उन्हें हिंदुत्व का कट्टर समर्थक माना जाता है. पार्टी के एक पदाधिकारी ने बताया, ‘उन्होंने 1990 के दशक में आरएसएस के अयोध्या आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई थी.’

2007 के विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा छोड़ने वाले ओझा भावनगर से दो बार विधायक रहे हैं.

पार्टी के एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि एक समय विश्व हिंदू परिषद के नेता प्रवीण तोगड़िया, मोदी और ओझा सभी काफी करीबी थे. ‘लेकिन 2002 के बाद चीजें बदलने लगीं. जब मोदी गुजरात को विकास के मॉडल के रूप में दिखाने पर अधिक ध्यान देने लगे और ‘अवैध मंदिरों’ को तोड़े जाने के मामले सामने आए, तब ओझा अलग-थलग महसूस करने लगे थे. उन्होंने 2007 के विधानसभा चुनाव से पहले इस्तीफा दे दिया था. 2002 के बाद मोदी और तोगड़िया के बीच भी मतभेद उभर कर सामने आए थे.’

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, ओझा ने पार्टी का टिकट न मिलने के बाद इस्तीफा दे दिया और मोदी के खिलाफ बगावत कर दी. उस समय मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे.

वह बताते हैं, ‘उन्होंने एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और हार गए. बाद में वह महागुजरात जनता पार्टी (एमजेपी) में शामिल हो गए. पूर्व मंत्री गोरधन जदाफिया ने इस पार्टी की नींव रखी थी. कुछ महीनों बाद ओझा ने यह पार्टी भी छोड़ दी और फिर से भाजपा में शामिल हो गए.’

2008 में मोदी को विहिप के दबाव के चलते मंदिरों को तोड़ने की कार्रवाई को रोकना पड़ा था. इसे एक ‘जीत’ मानते हुए सुनील ओझा ने जश्न मनाया था. वह उस समय एमजेपी के साथ थे.

तब ओझा ने कहा था, ‘यह हिंदुओं की जीत है. हम आज (शुक्रवार) शाम को पथिकाश्रम मंडल में इस जीत का जश्न मनाएंगे. लोगों के गुस्से के आगे मोदी को झुकना पड़ा है और उनके पीछे हटने की वजह यही है. वह 200 से ज्यादा मंदिरों को नष्ट करके काफी नुकसान कर चुके हैं.’

लेकिन वह 2011 में फिर से भाजपा में लौट आए. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘फिर से शामिल होने के बाद, वह मोदी के लिए सबसे खास नेताओं में से एक बन गए. अमित शाह ने उन्हें उत्तर प्रदेश का सह-प्रभारी बनाया था. वह सभी से बड़े प्यार से बात करते हैं और सबका सम्मान करते हैं.’

ओझा को उनके अध्यात्म के लिए भी जाना जाता है.


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कार्य करने की शैली

दिप्रिंट से बात करते हुए, गुजरात भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और भावनगर के पूर्व सांसद, राजेंद्र सिंह राणा ने ओझा को एक ‘तेज राजनीतिक रणनीतिकार’ बताया. ‘वह लोगों की नस-नस से वाकिफ हैं और उनकी यही खासियत उन्हें आगे की योजना बनाने में मदद करती है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘ओझा अपने शुरुआती दिनों में एक बैंक में काम करते थे और आरएसएस, खासकर विहिप से जुड़े हुए थे. वह एक ऐसे व्यक्ति हैं जो संगठन के कामों में न केवल राजनीतिक रूप से बहुत तेज हैं, बल्कि वह ये भी जानते हैं कि लोग क्या चाहते हैं. वह लोगों के मिजाज का अंदाजा लगा सकते हैं और स्थिति का बखूबी विश्लेषण कर सकते हैं. उनकी राजनीतिक सोच कुछ ऐसी है जो वाराणसी में उनके संगठनात्मक कार्यों में भी उनकी मदद कर रही है.’

राणा ने कहा कि ओझा पत्रकारिता से जुड़े हुए थे और पगडंडी नाम से एक गुजराती अखबार चलाते थे.

पार्टी के एक पदाधिकारी ने बताया, ‘जब उन्होंने 2007 में भाजपा छोड़ी, तो अपना सारा ध्यान अखबार की ओर लगा दिया. लेकिन भाजपा में फिर से शामिल होने और वाराणसी की जिम्मेदारी मिलने के बाद से वह इससे दूर हो गए.’ उन्होंने आगे कहा, ‘वाराणसी में पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए, वह पीएम के खास हैं और काफी पावरफुल भी. लेकिन उनका स्वभाव ऐसा है कि उनसे कोई भी आसानी से मिल सकता है.‘

पार्टी के एक अन्य पदाधिकारी ने कहा कि 2014 से ओझा ने वाराणसी को ही अपना घर बना लिया है, हालांकि वह गुजरात भी आते-जाते रहे हैं.

भाजपा की गुजरात इकाई के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ‘राज्य में दो तरह के नेता हैं- एक जो खुद को प्रचारित करना पसंद करते हैं और दूसरे जो अपना काम करने में विश्वास रखते हैं. ओझा खामोशी और मेहनत से अपना काम करते रहे हैं. पीएम के इतने करीबी होने और उनके संसदीय क्षेत्र का कार्यभार संभालने के बावजूद, उन्होंने कभी भी दूसरों की तरह नखरे नहीं किए.’


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वाराणसी में ओझा की जिम्मेदारियां

सुनील ओझा वाराणसी और गोरखपुर क्षेत्रों के सह-प्रभारी हैं. बाकी क्षेत्रों की जिम्मेदारी सत्य कुमार और संजीव चौरसिया के कंधों पर है. यूपी में भाजपा संगठन ने छह अलग-अलग क्षेत्रों – ब्रज, अवध, गोरखपुर, काशी, पश्चिम और कानपुर को निर्धारित किया हुआ है.

गुजरात में पिछले मतभेदों के बावजूद, 2014 में वाराणसी में अपने चुनाव अभियान की निगरानी के लिए ओझा को पीएम मोदी ने चुना था. वह तब से इस जिम्मेदारी को बखूबी संभाले हुए हैं.

भाजपा के एक नेता ने कहा, मोदी के लिए किसी व्यक्ति ने अतीत में बगावत की है या नहीं, यह ‘कोई मायने नहीं रखता’ है.

नेता ने बताया, ‘पीएम मोदी एक व्यक्ति और उसके चरित्र को अच्छे से पहचान लेते हैं. वह जानते है कि ओझा बहुत ही सुलझे हुए और शांत व्यक्ति है. वह हर चीज पर बारीकी से नजर रखते हैं. उनसे जो कुछ भी कहा जाता है वह उसे गांठ बांध लेते हैं. उनका फोकस अपने से ज्यादा वाराणसी में हो रहे काम पर है. पीएम को मेहनती लोग पसंद हैं. वह बहुत महत्वाकांक्षी नहीं है और यह सब उसके पक्ष में काम करता है.’

नेता ने आगे कहा, मोदी जी से बेहतर राजनीति की समझ किसी के पास नहीं है. वह जानते हैं कि नेताओं के कौशल का उपयोग कैसे और कब करना है. वे भले ही पहले बागी रहे हों लेकिन अब उसका इसका कोई महत्व नहीं है.

मोदी के खास व्यक्ति के रूप में, सुनील ओझा वाराणसी संसदीय क्षेत्र में विकास योजनाओं का काम संभाल हुए हैं. पार्टी के एक पदाधिकारी के अनुसार, वह नियमित रूप से प्रधानमंत्री को निर्वाचन क्षेत्र से जुड़ी योजनाओं और मुद्दों के बारे में जानकारी देते रहते हैं.

इसके अलावा, वह जिलों का दौरा करते हैं, और संगठन के कामकाज को लेकर बैठकें करते हैं. मार्च की शुरुआत में मोदी के रोड शो जैसे किसी भी बड़े राजनीतिक कार्यक्रम का दारोमदार उन्हीं के कंधो पर होता है. भाजपा के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘राजनीतिक आयोजनों के लिए बैठकें करने से लेकर कैडर की भागीदारी सुनिश्चित करने तक, सब काम वही देखते हैं. उदाहरण के लिए, भाजपा कैडर के जरिए सभी निवासियों को पीएम मोदी की तरफ से बधाई दी गई थी. ओझा ने इसकी निगरानी की थी. इसके अलावा, वाराणसी और गोरखपुर में सभी कामों की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधो पर है.‘

कार्यकर्ता ने आगे बताया,‘लोगों को शिकायतें दर्ज कराने या लोकसभा क्षेत्र के लिए अपने सुझाव देने के लिए एक संपर्क कार्यालय है. आरएसएस के एक कार्यकर्ता शिव शरण पाठक, वाराणसी में पीएम मोदी के निर्वाचन क्षेत्र के कार्यालय के प्रभारी हैं. स्थानीय जनसंपर्क कार्यालय, जिसे अक्सर ‘मिनी पीएमओ’ कहा जाता है, जनता की सभी शिकायतों का जायजा लेता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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