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Friday, 22 November, 2024
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बीमारियों की समय से पहचान और सटीक परिणाम: भारत की स्वास्थ्य सेवा को कैसे बदल रहा है AI

कोविड के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं में AI एक महत्वपूर्ण भूमिका में नजर आया. दूसरी लहर में अस्पतालों ने इसका इस्तेमाल फेफड़ों को हुए नुकसान का पता लगाने के लिए किया. अब ये तकनीक सिर्फ रेडियोलॉजी तक सीमित नहीं रही है. कई बीमारियों की जांच और रोकथाम में ये एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.

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नई दिल्ली: अगर हम कुछ समय पहले की बात करें तो स्वास्थ्य सेवाएं डॉक्टरों, दवाओं और डायग्नोस्टिक्स के बारे में हुआ करती थीं. लेकिन इस महामारी के बाद इसमें एक नया नाम जुड़ गया है- आर्टिफिशल इंटेलिजेंस यानी एआई.

ये तकनीक उद्योगों के कई क्षेत्रों का एक बड़ा हिस्सा है और आज इसका इस्तेमाल भारत के कई अस्पतालों में विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है. एआई तकनीक न केवल स्कैन की रीडिंग करने बल्कि बीमारियों के संकेतों का पता लगाने और उनका जोखिम कम करने का काम भी कर रही है.

कोविड -19 ने स्वास्थ्य सेवा में एआई की भूमिका को मजबूत किया है. अस्पतालों ने इसके जरिए फेफड़ों को होने वाले नुकसान के स्तर का भी पता लगाया है. खासकर दूसरी लहर के दौरान जब सारसकोव-2 वायरस के डेल्टा वेरिएंट फेफड़ों को तेजी से नुकसान पहुंचा रहा था.

हालांकि एआई का इस्तेमाल अभी भी ज्यादातर रेडियोलॉजी में ही किया जा रहा है, विशेष रूप से टीबी (तपेदिक) जैसी बीमारियों के लिए. लेकिन अब ये अन्य बीमारियों की जांच, उनकी रोकथाम, समय रहते हृदय रोग के जोखिम के बारे में बताने और जानकारी देने का काम भी कर रहा है. इसका उपयोग अन्य उद्देश्यों के लिए तेजी बढ़ा है.

भारत सरकार भी अचानक से फैलने वाली बीमारियों पर नज़र रखने में मदद करने के लिए एआई पर बड़ा दांव लगा रही है. फिलहाल नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी) एक निजी कंपनी के साथ मिलकर एक ऐसा उपकरण तैयार कर रहे हैं, जो स्वास्थ्य से संबंधित सभी मीडिया रिपोर्टों को स्कैन करेगा. इसके जरिए 33 तरह की उन बीमारियों एक डेटाबेस बनाया जाएगा, जो अचानक से तेजी से फैलती हैं. इनमें से कुछ ऐसी हैं जो महामारी का रूप ले सकती हैं. इंटीग्रेटेड डिजीज सर्विलांस प्रोग्राम (आईडीएसपी) के तहत इन पर निगरानी रखी जाती है.

Graphic: Ramandeep Kaur/ThePrint
ग्राफिक: रमनदीप कौर/दिप्रिंट

एआई उपकरण विकसित करने वाले अधिकांश अस्पतालों और कंपनियों का ये सफर लगभग चार साल पहले रेडियोलॉजी के साथ शुरू हुआ था.

मैक्स हेल्थकेयर, में मुख्य तकनीकी अधिकारी डॉ भरत अग्रवाल ने कहा, ‘ शुरुआत में एआई का इस्तेमाल सिर्फ रेडियोलॉजी में होता था. इसका एक खास फीचर है जिसे हम सभी जानते हैं- चेहरा पहचानना. हमने इमेज आइडेंटिफिकेशन के लिए एआई का इस्तेमाल शुरू किया और फिर निष्कर्षों को मान्य करने के लिए कंपनियों के साथ करार किया. कोविड महामारी के दौरान, खासकर दूसरी लहर में हमने एआई की मदद से सीटी स्कैन का विश्लेषण किया. हमने इसके जरिए यह पता लगाया कि फेफड़ों में संक्रमण कितनी डिग्री का है’


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वह बताते हैं, ‘एआई से टीबी की जांच को लेकर हम काफी रिसर्च कर रहे हैं. इसके लिए कई हेल्थकेअर स्टार्टअप के साथ गठजोड़ भी किया गया है. मानसिक बीमारियों और मस्तिष्क के कॉग्निटिव डिसऑर्डर का पता लगाने के लिए एआई कितना कारगर हो सकता है, इस पर भी विचार किया जा रहा हैं.’

देश के कई इलाकों की स्थिति जस की तस

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत के 17 साल बाद भी भारत के ग्रामीण इलाके बुनियादी ढांचे और जनशक्ति की कमी से जूझ रहे हैं. क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों का कहना है कि इन इलाकों में एआई का इस्तेमाल काफी फायदेमंद साबित हो सकता है.

एआई- से जुड़ी कंपनी Deeptek.ai  को 2017 में शुरू किया गया था. फर्म के भागीदारों में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) से ग्रेजुएट अजीत पाटिल और रेडियोलॉजिस्ट डॉ अमित खरात हैं. पाटिल ने कहा कि कंपनी जिन कई परियोजनाओं पर काम कर रही है उनमें से एक कंपनी चेन्नई से है. ये टीबी स्क्रीनिंग के लिए AI का उपयोग करती है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारा इस तरह का पहला प्रोजेक्ट चेन्नई में है. हम टीबी स्क्रीनिंग के लिए ‘स्टॉप टीबी’ साझेदारी के साथ काम कर रहे हैं. पहले 1 लाख स्कैन में पता लगाने की दर लगभग 50 थी, लेकिन अब एआई के साथ, यह 500 हो गई है. फिलहाल उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्लीनिकों के लिए भी  ऐसा ही एक समाधान लेकर आ रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि आने वाले समय में, एआई बिना ड्राइवर वाली कारों की तरह, खुद से सारे काम कर सकता है. यहां मानव विशेषज्ञों की भूमिका सिर्फ सत्यापन तक सीमित होकर रह जाएगी.

वह आगे कहते हैं कि ‘यह तकनीक भारत जैसे देश के लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि पूरे देश में सिर्फ 12,00 रेडियोलॉजिस्ट हैं. वास्तव में पूरी दुनिया में रेडियोलॉजिस्ट की कमी है.’

हेल्थकेयर सेक्टर से जुड़ी एक अन्य कंपनी qure.ai के सीईओ प्रशांत वारियर ने दिप्रिंट को बताया कि उनकी कंपनी मौजूदा समय में लगभग 600 साइट प्रोजेक्ट पर काम कर रही है. इसमें टीबी स्क्रीनिंग, फेफड़ों के कैंसर का जल्दी पता लगाना और स्ट्रोक के मरीजों तक तुरंत इलाज पहुंचाने में मदद करना शामिल है.

न्यूरोलॉजिकल मरीजों के लिए कंपनी की एक qER नामक एआई तकनीक है, जो ब्रेन ब्लीड्स, क्रेनियल फ्रैक्चर और स्ट्रोक जैसी गंभीर स्थितियों के बारे में सटीक जानकारी दे सकती है. इससे आपातकालीन देखभाल में जुटे डॉक्टरों को उन मरीजों को प्राथमिकता देने में मदद मिल सकती है, जिन पर तत्काल ध्यान दिए जाने की जरूरत होती है.

वाधवानी एआई, भारत सरकार के साथ साझेदारी में कई टीबी प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है. इसमें न केवल रेडियोलॉजिकल उपकरण बल्कि ‘लॉस टू फॉलो अप’ से जुड़े रिस्क के बारे में पहले से ही बता देना वाली तकनीक भी शामिल है. ये उन लोगों के लिए है, जो फॉलो-अप अपॉइंटमेंट के लिए नहीं आते हैं. यह टीबी जैसी बीमारी के इलाज के लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें इलाज की लंबे समय तक जरूरत होती है. टीबी का इलाज 6-9 महीने तक चल सकता है. बीच में ही इलाज छोड़ देने वाले बहुत से मरीज अक्सर साइड इफेक्ट की शिकायत करते हैं.

वाधवानी एआई के एक प्रवक्ता ने दिप्रिंट को बताया, ‘ हम एक ऐसी तकनीक बनाने जा रहे हैं जो  फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को कम वजन वाले नवजात शिशुओं की पहचान करने और उनके विकास की निगरानी करने में मदद करेगी. इसके लिए बस एक स्मार्टफोन की जरूरत होगी. यह तकनीक जियो-टैग के साथ, सटीक और बिना किसी छेड़छाड़ के समय पर बच्चे के वजन का अनुमान लगाने में मददगार साबित होगी.

प्रवक्ता ने बताया, ‘2019 में पूरी दुनिया में, अपने जन्म के पहले महीने में 24 लाख बच्चों की मृत्यु हुई थी- प्रतिदिन लगभग 6700 नवजात शिशुओं ने दम तोड़ा . शोध से पता चला कि अगर जन्म के बाद पहले सप्ताह में बच्चे के वजन पर नजर रखी जाती तो इनमें से बहुत सी होने वाली मौतों को रोका जा सकता था. भारत जैसे देशों में ये एक बड़ी समस्या है, जहां अभी भी बड़ी संख्या में बच्चों का जन्म घर पर ही कराया जाता है. न तो इसके लिए कोई प्रशिक्षित दाई होती है और न ही कोई अन्य सुविधा.’

महामारी के दौरान, कंपनी ने लैब टेस्ट से पहले कोविड मरीजों की पहचान करने में मदद करने के लिए एआई जुड़ी एक खास तकनीक भी विकसित की थी. ये तकनीक खांसी की आवाज से कोविड की पहचान कर देती है, व्यक्ति भले ही असिम्प्टोमटिक क्यों न हो.


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चुनौतियां

डॉ अग्रवाल ने कहा, हालांकि, आगे रास्ता लंबा है और चुनौतियां भी काफी हैं.

वह कहते हैं, ‘अभी हमारा सिस्टम एआई के इस्तेमाल के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है, यहां तक कि आईटी भी नहीं हैं. संचार तीव्र और सटीक हो, ये सुनिश्चित करने की जरूरत है. हालांकि समय के साथ, जैसे-जैसे डेटाबेस व्यापक होता जाएगा, सटीकता की दर बढ़ती चली जाएगी. इसके कई फायदे हैं.’

‘यह मशीन लर्निंग है, इसलिए यहां भूल-चूक होने जैसा कुछ नहीं है. लेकिन सोचने-विचारने की क्षमता का न होना, सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकता है. एक डॉक्टर की तरह, एआई डेटासेट/आकृतियों से परे हटकर नहीं सोच सकता है.’

सबसे लोकप्रिय हेल्थकेअर एआई प्रोग्राम आईबीएम का वाटसन था. इसका इस्तेमाल कैंसर का पता लगाने के लिए किया जाता है. फ्यूचर हेल्थकेयर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में, अमेरिकी शोधकर्ताओं ने लिखा: ‘आईबीएम के वाटसन का कैंसर की जांच, उपचार और सही दवाओं पर फोकस था. इसकी वजह से ये मीडिया में भी खासा चर्चा में रहा. वाटसन मशीन लर्निंग और एनएलपी (प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण) दोनों का इस्तेमाल करता है.’

वह आगे कहते हैं, ‘हालांकि, इस तकनीक को लेकर शुरुआत में जो उत्साह पैदा हुआ था, वो जल्द ही फीका हो गया. ग्राहकों को वाटसन की तकनीक मुश्किल लगी. उन्हें अलग-अलग तरह के कैंसर के इलाज और देखभाल प्रक्रियाओं को सिखाने में कठिनाई का एहसास हुआ है.

अलग-अलग तरह के कैंसर को पहचानना और उसका इलाज करना मुश्किल भरा हो सकता है क्योंकि वाटसन एक एकल उत्पाद नहीं है, बल्कि एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (एपीआई) के जरिए दी जाने वाली ‘ कॉग्निटिव सर्विसस’ का एक सेट है, जिसमें भाषण और भाषा, दृष्टिकोण और मशीन लर्निंग-आधारित डेटा-विश्लेषण कार्यक्रम शामिल हैं. अधिकांश पर्यवेक्षकों को लगता है कि वाटसन एपीआई तकनीकी रूप से सक्षम हैं, लेकिन कैंसर का इलाज करना एक अति महत्वाकांक्षी उद्देश्य था.’

डेटा सुरक्षा और डेटा गोपनीयता के बारे में चिंताओं को देखते हुए एआई के लिए प्राथमिक चुनौती डेटा संग्रह है.

वाधवानी एआई के प्रवक्ता ने समझाया, ‘मशीन लर्निंग सिस्टम और एआई में इस्तेमाल किए जाने वाले एल्गोरिदम केवल डेटा के अनुसार काम करते है. उच्च गुणवत्ता वाले एल्गोरिदम के लिए उच्च गुणवत्ता वाला डेटा काफी महत्वपूर्ण है. उच्च गुणवत्ता वाले डेटा को लेकर चर्चा तो काफी होती है लेकिन उच्च गुणवत्ता का क्या मतलब है ये कोई नहीं बताता.’

प्रवक्ता ने कहा, ‘तथ्य ये है कि सभी तरह के डेटा संग्रह में कई तरीके से गड़बड़ियां हो सकती हैं. एआई का जो इस्तेमाल कर रहे हैं उन्हें यह जानना होगा कि डेटा के सोर्स क्या हैं और उसमें क्या खामियां हो सकती हैं. अधूरे या एकतरफा डेटा पर आधारित एआई सिस्टम गलत परिणाम दे सकते है और ये लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन होगा. एआई सिस्टम में उपयोग किए गए डेटा के बारे में पारदर्शी होने से संभावित अधिकारों के हनन को रोकने में मदद मिलती है. यह बड़े डेटा के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहां कभी-कभी डेटा अधिक होने पर थोड़ी-बहुत गड़बड़ी को नजरअंदाज कर दिया जाता है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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