नई दिल्ली: कोविड वैक्सीन कोर्बेवैक्स, जिसका फिलहाल भारत में 12-14 आयु वर्ग के बच्चों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, उसकी स्वीकृति उसके अंतरिम सुरक्षा और इम्यूनोजेनिसिटी डेटा के आधार पर दी गई थी- ये जानकारी केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने, शुक्रवार को एक लिखित उत्तर में लोकसभा को दी.
इम्युनोजेनिसिटी को एक ऐसे एजेंट की क्षमता के तौर पर परिभाषित किया गया है, जिसे एक इम्यून रेस्पॉन्स पैदा करने के लिए, इंसानी शरीर के अंदर भेजा गया हो.
स्वास्थ्य मंत्रालय तृणमूल कांग्रेस सांसद दीपक अधिकारी द्वारा उठाए गए सवाल का जवाब दे रहा था, जिन्होंने वैक्सीन के लिए सुरक्षा और प्रभावकारिता डेटा की उपलब्धता के बारे में पूछा था और ये भी जानना चाहा था कि क्या इसका पियर रिव्यू किया गया था.
राज्य मंत्री डॉ भारती प्रवीण पवार ने निचले सदन को बताया, ‘5 से 8 आयु वर्ग के बच्चों पर किए गए, दूसरे-तीसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल के अंतरिम सुरक्षा और इम्युनोजेनेसिटी डेटा के आधार पर, राष्ट्रीय नियामक केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने विषय विशेषज्ञ समिति (एसईसी) के परामर्श से, मैसर्स बायोलॉजिकल ई लिमिटेड की सार्स-कोव-2 वैक्सीन (कोर्बीवैक्स) को, आपात स्थिति में 12-18 आयु वर्ग पर प्रतिबंधित उपयोग के लिए, निर्माण की स्वीकृति प्रदान की है.’
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार वैक्सीन का प्रभाव ‘…एक नियंत्रित क्लीनिकल ट्रायल में नापा जाता है और ये इस पर आधारित होता है कि टीका लगे हुए कितने लोगों में ‘बीमारी के लक्षण’ पैदा हुए और इसकी अपेक्षा जिन्हें प्लेसिबो (नक़ली वैक्सीन) दी गई थी, उनमें से कितने लोगों में ऐसे लक्षण देखे गए.’
डब्लूएचओ कहता है कि ‘एक बार स्टडी पूरी हो जाए, तो फिर दोनों समूहों में बीमार लोगों की संख्या की तुलना की जाती है, ताकि बीमार पड़ने के सापेक्ष जोखिम का हिसाब लगाया जा सके, जो इस पर निर्भर करेगा कि प्रतिभागियों को टीके लगे थे या नहीं. इससे हमें प्रभावकारिता या असर का पता चलता है कि वैक्सीन ने बीमार पड़ने के जोखिम को कितना कम किया है. अगर किसी वैक्सीन का असर ज़्यादा है, तो जिस ग्रुप को टीके लगे हैं उसमें कहीं कम लोग बीमार होंगे, अपेक्षाकृत उस ग्रुप के जिसे प्लेसिबो दिया गया था.’
लेकिन, सांसद के सवाल पर सरकार के जवाब में, कोर्बेवैक्स के असर की बात नहीं की गई.
इंट्रामस्कुलर रास्ते से दी जाने वाली कोर्बेवैक्स- जिसकी दो ख़ुराकों के बीच 28 दिन का अंतराल होता है- और जिसका निर्माण हैदराबाद स्थित बायोलॉजिकल ई ने, अमेरिका के बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन, और टेक्सस चिल्ड्रन हॉस्पिटल के साथ मिलकर किया है- एक प्रोटीन सब यूनिट वैक्सीन है, जो एक इम्यून रेस्पॉन्स पैदा करने के लिए, सार्स-कोव-2 के स्पाइक प्रोटीन का कुछ अंश, शरीर के अंदर दाख़िल कर देती हैं.
स्पाइक प्रोटीन कोरोनावायरस का आगे को निकला हुआ वो हिस्सा होता है, जिसके रास्ते से पैथोजन मेज़बान सेल में दाख़िल होते हैं.
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पियर रिव्यू के सवाल को टाला
सरकार ने अपने जवाब में ये भी स्पष्ट नहीं किया कि कोर्बेवैक्स वैक्सीन के डेटा का पियर रिव्यू हुआ है या नहीं.
इस विषय पर एक विशिष्ट सवाल के जवाब में सरकार ने कहा, ‘विशिष्ट वैक्सीन्स के क्लीनिकल ट्रायल निष्कर्षों का पियर रिव्यू, आमतौर पर उस विषय का ज्ञान रखने वाले विशेषज्ञों, तथा वैज्ञानिकों द्वारा किया जाता है, जिन्होंने इन वैक्सीन्स का विकास या निर्माण किया है, या जिनके पास ऐसी वैक्सीन्स और टीकाकरण प्रक्रिया का ज्ञान होता है.’
वैक्सीन को लेकर टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) के रुख़ के बारे में पूछे जाने पर सरकार ने कहा, ‘डोमेन ज्ञान विशेषज्ञों की सिफारिश पर भारत सरकार ने, कोविड-19 टीकाकरण को विस्तार देकर, 16 मार्च 2022 से 12-14 आयु वर्ग के लाभार्थियों को उसमें शामिल कर लिया है.’
एनटीएजीआई विशेषज्ञों की शीर्ष इकाई है, जो सभी वैक्सीन्स के वैज्ञानिक साक्ष्यों का मूल्यांकन करती है, जिसके बाद ही उन्हें किसी राष्ट्रीय कार्यक्रम में शामिल किया जाता है.
ये पूछे जाने पर कि क्या कोर्बेवैक्स ओमीक्रॉन के खिलाफ कारगर है, सरकार ने कहा, ‘देश के अंदर किए गए दूसरे और तीसरे दौर के क्लीनिकल ट्रायल और तीसरे दौर के (इम्यूनोजेनिक सुपीरियॉरिटी) क्लीनिकल ट्रायल में, कोर्बेवैक्स के वूहान, डेल्टा, और बीटा वेरिएंट्स के खिलाफ, एंटीबॉडी (एनएबी) टाइटर्स को निष्क्रिय करने का टेस्ट किया गया है और ये कथित रूप से इम्यूनोजेनिक है.
‘वैक्सीन समेत मौजूदा जवाबी-उपायों पर ओमीक्रॉन वेरिएंट के पड़ने वाले संभावित प्रभाव की जांच, दुनिया भर के तकनीकी समूहों द्वारा की जाती है. राष्ट्रीय कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम में इस्तेमाल वैक्सीन्स, कोविड-19 से उत्पन्न गंभीरता के ख़तरे को रोकने में कारगर बनी हुई हैं.
माना जाता है कि ओमीक्रॉन ने सभी दूसरे सार्स-कोव-2 वेरिएंट्स की जगह ले ली है, और फिलहाल ये भारत में सबसे प्रमुख वेरिएंट बन गया है.
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