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Saturday, 5 October, 2024
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तमिलनाडु में वन्नियार से अलग व्यवहार का कोई ठोस आधार नहीं है ; आरक्षण रद्द : न्यायालय

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नयी दिल्ली, 31 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु में अति पिछड़े समुदाय (एमबीसी) वन्नियार को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले में दिए गए 10.5 प्रतिशत आरक्षण को बृहस्पतिवार को रद्द कर दिया और कहा कि उनके साथ अलग व्यवहार करने का कोई ठोस आधार नहीं है।

न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की पीठ ने कहा कि वन्नियाकुल क्षत्रियों को आंतरिक आरक्षण देने के लिए आबादी को एकमात्र आधार बनाया गया है जोकि इस अदालत द्वारा तय कानून के विरूद्ध है।

पीठ ने कहा, ‘‘हमारी राय है कि वन्नियाकुल क्षत्रियों के साथ एमबीसी और गैर-अधिसूचित समूहों के बाकी के 115 समुदायों से अलग व्यवहार करने के लिए उन्हें एक समूह में वर्गीकृत करने का कोई ठोस आधार नहीं है और इसलिए 2021 का अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन है। अत: हम (मद्रास) उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हैं।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि हालांकि जाति आंतरिक आरक्षण का आधार हो सकती है लेकिन यह एकमात्र आधार नहीं हो सकती।

पीठ ने कहा, ‘‘इसी प्रकार, जाति आंतरिक आरक्षण देने की शुरुआत हो सकती है, लेकिन राज्य सरकार को तर्कसंगत तरीके से यह साबित करना होगा कि इसमें (आरक्षण) केवल जाति एकमात्र कारण नहीं है।’’

पीठ ने कहा कि 2021 का यह कानून एमबीसी और डीएनसी समूहों के भीतर (आंतरिक) आरक्षण का अनुपात या प्रतिशत तय करने से जुड़ा है और यह संविधान के अनुच्छेद 342-ए के तहत राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है।

उसने कहा, ‘‘105वें संशोधन कानून से पहले राज्यों को अनुच्छेद 342-ए के तहत एसईबी समूहों को ‘प्रेसिडेंशियल लिस्ट’ में शामिल कर या उसमें से बाहर करके एसईबीसी समूहों (उप-समूहों) की पहचान करने का अधिकार नहीं था।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि एमबीसी और डीएनसी समूहों को दिए गए 20 प्रतिशत आरक्षण में से 10.5 प्रतिशत का आंतरिक आरक्षण लागू करना, पक्के तौर पर अन्यों समुदायों के लिए गलत है।

इससे पहले, उच्चतम न्यायालय ने मामले को वृहद पीठ को सौंपने से इनकार करते हुए कहा था कि उसका मानना है कि इस मामले पर वृहद पीठ के सुनवाई करने की आवश्यकता नहीं है। पीठ ने कहा, ‘‘हम इस मामले को वृहद पीठ के पास भेजने की दलील मानने के पक्ष में नहीं हैं, आप अपनी दलीलें रख सकते हैं।’’

उच्चतम न्यायालय याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए राजी हो गया था और उसने कहा था कि इस आरक्षण के तहत हुए दाखिले या नियुक्तियां प्रभावित नहीं होंगी।

न्यायालय का फैसला तमिलनाडु राज्य, पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) अन्य द्वारा याचिका उन याचिकाओं पर आया है जिसमें वन्नियार को दिया आरक्षण रद्द करने के उच्च न्यायालाय के एक नवंबर 2021 के आदेश को चुनौती दी गयी थी।

उच्च न्यायालय ने कहा था कि राज्य सरकार आबादी पर बिना मात्रात्मक आंकड़ों के वन्नियार को आरक्षण देने वाला ऐसा कानून नहीं ला सकती है।

गौरतलब है कि तमिलनाडु विधानसभा ने पिछले साल फरवरी में वन्नियार समुदाय को 10.5 फीसदी आरक्षण देने के तत्कालीन सत्तारूढ़ अन्ना द्रमुक द्वारा पेश किए विधेयक को पारित कर दिया था। मौजूदा द्रमुक सरकार ने इसके क्रियान्वयन के लिए जुलाई 2021 में एक आदेश पारित किया।

उसने एमबीसी को दिए कुल 20 प्रतिशत आरक्षण को विभाजित कर दिया था और जातियों को फिर से समूहों में बांटकर तीन अलग श्रेणियों में विभाजित किया तथा वन्नियार को 10 प्रतिशत उप-आरक्षण मुहैया कराया था। वन्नियार को पहले वन्नियाकुल क्षत्रिय के नाम से जाना जाता था।

भाषा अर्पणा नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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