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Saturday, 16 November, 2024
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इस्लाम में गोद लेने की प्रथा से क्यों सहमत नहीं होगा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड?

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ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, कानून आयोग को बताने के लिए तैयार है कि गोद लिए गए बच्चे और मां के बीच यौन संबंधों के डर के कारण गोद लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

नई दिल्ली: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) कानून आयोग को यह बताने के लिए तैयार है कि इस्लाम में किसी को गोद लेना प्रतिबंधित है क्योंकि गोद लिए गए बेटे और मां या उसकी बेटी के बीच यौन संबंध होने की संभावना होती है।

21 मई को कानून आयोग और एआईएमपीएलबी के बीच पहली बार हुई एक बैठक में आयोग ने एआईएमपीएलबी से दत्तकग्रहण, विरासत और बाल विवाह सहित अन्य मुद्दों पर इस्लाम की स्थिति स्पष्ट करने को कहा था।

कुछ महीने पहले केंद्र को एक समान नागरिक संहिता पर अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने से पहले एक मंथन अभ्यास के रूप में आयोजित की गई इस बैठक का उद्देश्य कानून आयोग को इस्लाम के कुछ व्यक्तिगत कानूनों की प्रकृति समझाना था।

कानून आयोग के अधिकारियों ने ‘दिप्रिंट’ को संकेत दिया है कि पैनल, केंद्र को अपनी रिपोर्ट में एक समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन की सिफारिश करने के बजाय व्यक्तिगत कानूनों को बदलने की सिफारिश कर सकता है।

एआईएमपीएलबी के सदस्य कमाल फारुकी, जो बैठक में थे, ने ‘दिप्रिंट’ को बताया, “हम आयोग द्वारा सुझाए गए हमारे व्यक्तिगत कानूनों में कुछ उचित बदलावों पर विचार कर सकते हैं, बशर्ते वे इस्लाम के खिलाफ न जाएं।” उन्होंने कहा कि हालाँकि, यदि सुझाए गए कोई भी बदलाव, जैसे गोद लेने की अनुमति, इस्लाम के मौलिक सिद्धांतों के प्रति विरोधात्मक हैं तो वे बोर्ड को स्वीकार्य नहीं होंगे।

इस्लाम गोद लेने पर प्रतिबंध क्यों लगाता है?

फारुकी ने समझाया कि जबकि इस्लाम अनाथों को सहारा प्रदान करता है, और यहां तक कि उन्हें प्रोत्साहित भी करता है लेकिन वे युवावस्था तक पहुँचने के बाद परिवार की इकाई के रूप में आपके साथ नहीं रह सकते। उन्होंने कहा “इस्लाम में, सभी संबंध अल्लाह द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। एक व्यक्ति, जिसके साथ निकाह और यौन संबंध संभव हैं, के साथ शारीरिक अंतरंगता जायज नहीं है। इसलिए दत्तक पुत्र उस घर में नहीं रह सकता है जिस घर में माँ या उस माँ की पुत्री रहती हो।“ उन्होंने पूछा, “क्या होगा यदि एक 60 वर्षीय व्यक्ति की एक युवा पत्नी हो और वे एक पुत्र को गोद ले लें, जो जल्द ही बड़ा हो जाएगा? माँ से उसका क्या रिश्ता होगा?

हालांकि, भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) की संस्थापक जाकिया सोमन का तर्क है कि सेक्स के नजरिए से हर मानवीय रिश्ते को देखना गलत है और यह बोर्ड की रूढ़िवादी सोच का लक्षणसूचक है। उन्होंने कहा “अगर किसी दम्पति के बच्चे नहीं होते हैं, तो वह निश्चित रूप से गोद लेने के हकदार हैं। धर्म के लिए नजरिया समयानुसार बदलता हुआ होना चाहिए।”

हालांकि भारत में, सेक्युलर जुवेनाइल जस्टिस एक्ट (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन) के तहत गोद लेने की अनुमति है, लेकिन यह कहा जाता है कि इस्लाम में ‘दत्तक’ बच्चे को विरासती अधिकार या गोद लेने वाले का नाम लेने की इजाजत नहीं है । हालांकि, 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि इस्लामी व्यक्तिगत कानून निषेध एक मुसलमान को सेक्युलर जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत एक बच्चे को अपनाने से नहीं रोक सकता है।

विरासत का मुद्दा

अन्य मुद्दों, जिन पर बोर्ड की राय मांगी गई थी, उनमें लड़कियों के विरासत अधिकार शामिल थे। मुस्लिम पर्सनल लॉ का एक प्रावधान जिसे दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा रही है, में इस्लाम के अनुसार, एक बेटी अपने भाई की संपत्ति अंश से आधी संपत्ति की हकदार है।

जबकि कानून आयोग ने स्वीकार किया है कि इस्लाम शुरुआत से ही महिलाओं को संपत्ति में अधिकार देने वाला एकमात्र धर्म है, उसने बोर्ड से यह जानना चाहा है कि लड़कियां अपने पुरुष समकक्षों से केवल आधे अंश की हिस्सेदार क्यों हैं।

फारुकी ने समझाया कि “इस्लाम में कन्यादान की अवधारणा नहीं है……। शादी के बाद भी बेटी पिता की जिम्मेदारी बनी रहती है, इसीलिए संपत्ति में उसे एक हिस्सा मिलता है।” उन्होंने आगे बताया, “हालांकि, उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी उसके पति के उपर होती है, इसलिए उसकी सभी जरूरतों का ध्यान उसके पति के द्वारा रखा जाता है।”

फारुकी ने यह भी कहा कि इस्लाम के अनुसार, यहां तक कि यदि कोई महिला अपने पति से अधिक कमाती है, तब भी घरेलू खर्चों की जिम्मेदारी पति के ऊपर होती है, न कि महिला के ऊपर।

बाल विवाह के मुद्दे पर, जो वर्तमान में इस्लाम में निषिद्ध नहीं है, फारुकी ने कहा कि बोर्ड आयोग द्वारा सुझाए गए कुछ बदलावों को अपना सकता है। हालांकि, बाल विवाह पर पूर्ण प्रतिबन्ध एक अच्छा विचार नहीं है क्योंकि इसकी अनुमति उस समय दी जानी चाहिए जब कुछ चरम स्थितियों में बच्चे ने युवावस्था को प्राप्त कर लिया हो।

Read in English : Why the Muslim Personal Law Board will not agree to allow adoption in Islam

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