नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को घोषणा की है कि चंडीगढ़ प्रशासन के कर्मचारी अब केंद्रीय सिविल सेवा नियमों के तहत काम करेंगे. इसके बाद पंजाब में केंद्र और आम आदमी पार्टी (आप) सरकार आमने-सामने हैं.
शाह ने अपने फैसले के पक्ष में कहा कि इससे कर्मचारियों को ‘बड़े पैमाने’ पर फायदा होगा. कुछ बीजेपी नेताओं ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर यह स्वीकार किया कि चंडीगढ़ के कर्मचारियों को केंद्रीय सिविल सेवा नियमों के तहत लाना, आम आदमी पार्टी को नियंत्रित करने की बड़ी रणनीति का हिस्सा है. पंजाब विधानसभा चुनावों में शानदार जीत के बाद, AAP को राष्ट्रीय राजनीति में खुद के बूते बढ़ सकने वाले विकल्प के तौर पर देखा जाने लगा है.
AAP नेताओं ने इस घोषणा का तीखा विरोध किया है. पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि वह केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ पर राज्य के ‘सही दावे’ की ‘लड़ाई’ के लिए तैयार हैं. इस क्षेत्र में, कुछ समय से यह राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है.
भगवंत मान सरकार की एक वाजिब चिंता यह भी है कि पंजाब प्रशासन के कर्मचारी, चंडीगढ़ के कर्मचारियों के वेतन की बराबरी करने की मांग कर सकते है.
AAP के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को कहा कि इस तरह की मांग की वजह से राज्य सरकार पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा. फिलहाल, राज्य पर 2.82 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है.
चंडीगढ़ की खास स्थिति के मद्देनजर नए नियमों का क्या मतलब है?
चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा दोनों की राजधानी है. हालांकि, यह एक केंद्र शासित प्रदेश है. यहां पर स्वशासन है, जिसका अपना एक एडमिनिस्ट्रेटर होता है. फिलहाल, इस पद को पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित संभाल रहे हैं.
प्रशासन के शीर्ष पदों पर AGMUT (अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश) के कैडर और पंजाब और हरियाणा के प्रशासनिक कैडर के डेप्यूटेशन वाले अधिकारी नियुक्त होते हैं.
इनके मातहत, चंडीगढ़ प्रशासन के तहत 23,000 कर्मचारी आते हैं. ये कर्मचारी स्वास्थ्य, शिक्षा, पुलिस जैसे विभागों और म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में काम करते हैं.
चंडीगढ़ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इससे इन 23,000 कर्मचारियों पर असर होगा, हालांकि फैसले से सिविल सेवा अधिकारियों पर प्रभाव नहीं पड़ेगा.
उस अधिकारी ने कहा कि अभी तक इन 23,000 कर्मचारियों पर पंजाब सेवा नियम लागू होते थे. इसका मतलब है कि चंडीगढ़ प्रशासन के कर्मचारियों के लिए नौकरी की शर्तें, पंजाब सरकार की ओर से पंजाब के कर्मचारियों के लिए तैयार किए गए नियमों के हिसाब से तय की गई थीं. अधिकारी ने कहा, ‘यह अब बदल जाएगा’
शाह ने रविवार को घोषणा की कि सेवा के लागू नियमों को बदलने से, सेवानिवृत्ति की उम्र 58 से बढ़कर 60 साल (कॉलेज के प्रोफेसर के लिए 65 साल) हो जाएगी. महिला कर्मचारियों के लिए बच्चों की देखरेख लिए छुट्टियां बढ़ेगी और इसके अलावा, दूसरे भत्ते में वृद्धि होगी.
AAP के खिलाफ ‘जुझारू रवैया’
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि सेवा के नियमों में बदलाव से कर्मचारियों को फायदा मिलेगा. शाह के इस बयान का चंडीगढ़ के बीजेपी सचिव रविंद्र भट्टी समर्थन करते हैं. उन्होंने दिप्रिंट से कहा कि इससे कर्मचारियों की ओर से ‘लंबे समय से की जा रही मांग’ पूरी होगी.
उन्होंने कहा, ‘इससे सिर्फ़ म्युनिसिपल के कर्मचारियों को ही फायदा नहीं मिलेगा, बल्कि केंद्र शासित प्रदेश (चंडीगढ़) के सभी कर्मचारियों को इससे फायदा मिलेगा.’
भट्टी ने अरविंद केजरीवाल की आलोचना करते हुए कहा, ‘हमने केजरीवाल के ट्रैक रिकॉर्ड को देखा है कि उन्होंने किस तरह से एमसीडी (दिल्ली नगर निगम) के कर्मचारियों की जिंदगी को मुश्किल बना दिया है…. इसलिए केंद्र को यह फैसला लेना पड़ा.’
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘अमरिंदर सिंह (पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री) ने पंजाब में ताल-मेल के साथ काम करने वाली सरकार कायम की, जिन्हें केंद्र-राज्य के संबंधों के बारे में पता था, लेकिन केजरीवाल झगड़ालू हैं जो पूरे देश में अपना विस्तार चाहते हैं… हम चंडीगढ़ म्युनिसिपल कॉरपोरेशन को सशक्त बनाना चाहते हैं’
बीजेपी नेता ने कहा कि इससे पार्टी को AAP के खिलाफ ‘जुझारू रवैया’ विकसित करने में मदद मिलेगी.
बीजेपी ने आठ जनवरी को चंडीगढ़ म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के मेयर, सीनियर डिप्यूटी मेयर और और डिप्यूटी मेयर, इन तीनों शीर्ष पदों पर जीत हासिल की. इसके बावजूद कि बीजेपी को म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के चुनावों में अपने निकटवर्ती प्रतिद्वंदी AAP के मुकाबले कम सीटें मिलीं.
27 दिसंबर को जारी चंडीगढ़ म्युनिसिपल कॉरपोरेशन चुनाव के नतीजों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया. AAP को कुल 35 वार्ड में से 14 पर जीत मिली. वहीं, बीजेपी को 12 वार्डों में जीत मिली. 2016 के म्युनिसिपल कॉरपोरेशन चुनावों में उसे 20 वार्डों में जीत मिली थी. हाल के चुनाव में कांग्रेस को आठ सीटें मिलीं. लेकिन, पार्टी के एक पार्षद हरप्रीत कौर बाबला ने बाद में बीजेपी ज्वाइन कर लिया. शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) को एक वार्ड में जीत मिली थी.
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने सोमवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की घोषणा का विरोध करते हुए कहा कि यह पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के खिलाफ है.
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ‘चरणबद्ध तरीके से चंडीगढ़ प्रशासन में दूसरे राज्यों और सेवाओं के अधिकारियों और कर्मचारियों को शामिल कर रही है.’
पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल चीमा ने बाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि आम आदमी पार्टी केंद्र सरकार के फैसले का विरोध करेगी और इस मुद्दे को लेकर ‘सड़क से संसद’ तक लड़ाई लड़ेगी.
उन्होंने कहा, ‘केंद्र सरकार चंडीगढ़ पर पंजाब के अधिकार के दावों को खत्म करने के लिए सुनियोजित तरीके से कदम उठा रही है.’ उन्होंने भी सीएम मान की तरह ही कहा कि यह पंजाब पुनर्गठन अधिनियम में ‘कही गई बातों के खिलाफ’ है.
AAP ने कहा कि चंडीगढ़ प्रशासन के कर्मचारियों पर कौन से सेवा नियम लागू होंगे. इसका निर्धारण पंजाब पुनर्गठन अधिनियम 1966 से होता है.
यह अधिनियम, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ को पंजाब से अलग करने के बाद, इसकी तय की गई सीमा और प्रशासनिक क्षेत्रों से संबंधित है.
सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध इस अधिनियम के सेक्शन 81 से 85 में, अखिल भारतीय सेवाओं, अन्य सेवाओं, किसी खास पोस्ट पर अधिकारी को बनाए रखने, राज्य लोक सेवा आयोगों के प्रावधान वगैरह का जिक्र है. हालांकि, इसमें यह स्पष्ट नहीं है कि कौन सी सेवा के नियम किन पर लागू होंगे.
पंजाब के दो वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने कहा कि जहां तक विशिष्ट कानूनी मंजूरी का सवाल है, सेवा नियमों का मामला हमेशा एक ग्रे क्षेत्र रहा है.
नाम नहीं छापे जाने की शर्त पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘केंद्र सरकार पहले भी नियमों में बदलाव कर सकती थी. बात सिर्फ़ इतनी है कि उन्होंने इसे अभी करने का फैसला किया है. हो सकता है कि इससे उन्हें राजनीतिक फायदा मिले.’
बीजेपी के कुछ नेताओं को लगता है कि इस कदम से पंजाब सरकार को थोड़ी परेशानी होगी, और हो सकता है कि इसके दूसरे फ़ायदे देखने को मिलें.
बीजेपी के एक दूसरे नेता ने कहा, ‘इस फैसले के बाद, पंजाब के राज्य कर्मचारी भी चंडीगढ़ के कर्मचारी जितना वेतन पाने की मांग में प्रदर्शन कर सकते हैं, इससे पंजाब का बोझ बढ़ेगा.’
AAP इस बात की आशंका के मद्देनजर परेशान ज़रूर है लेकिन, वरिष्ठ नेताओं ने इस मामले में कोई टिप्पणी नहीं की है.
बीजेपी के दूसरे नेता ने कहा कि इस बदलाव से चुनावी फायदे मिल सकते हैं..
उन्होंने कहा, ‘चंडीगढ़ में बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारी हैं. लोकसभा चुनाव के अब सिर्फ़ दो साल बच गए हैं. सत्ता विरोधी लहर की वजह से हो सकता है कि किरण खेर (चंडीगढ़ से बीजेपी के सांसद) न जीत पाएं, लेकिन इस फैसले से बीजेपी के वोट बढ़ गए हैं.’
‘यह पैटर्न का हिस्सा है’
पंजाब सरकार के दूसरे अधिकारी ने कहा कि सेवा नियमों में बदलाव के मुद्दे को अलग से नहीं देखा जाना चाहिए.
अधिकारी ने कहा, ‘हाल ही में केंद्र सरकार ने BBMB (भाखड़ा-ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड) मुद्दे को लेकर एक नोटिफिकेशन जारी किया. इसे भी पंजाब के मामले में हस्तक्षेप के तौर पर देखा गया. इसके तुरंत बाद ये नया फैसला आया है. ऐसे में यह कह सकते हैं कि इसके मद्देनजर राजनीति कोई नई बात नहीं है.’
पिछले महीने बीजेपी को छोड़कर पंजाब के सभी राजनीतिक दलों ने केंद्र सरकार के उस फैसले का विरोध किया जिसमें केंद्र सरकार ने BBMB के दो मुख्य पदों पर नियुक्ति के नियमों को संशोधित करने का फैसला लिया था. BBMB एक संवैधानिक निकाय है (पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के तहत) जो सतलुज और ब्यास नदियों के जल संसाधनों का प्रबंधन करता है.
चीमा ने भी सोमवार को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में BBMB का उदाहरण देते हुए, बीजेपी नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर ‘पंजाब विरोधी फैसले’ लेने का आरोप लगाया. उन्होंने केंद्र सरकार के फैसले को चंडीगढ़ पर पंजाब के ‘अधिकारों’ को छीनने वाला बताया.
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