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Monday, 16 December, 2024
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यूक्रेन संकट ने भारत के लिए जुटाया निवेशकों को लुभाने का अच्छा मौका

एक लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत की विदेश नीति, आंतरिक स्थिरता, कम लागत में व्यवसाय करने की सुविधा, के साथ कार्बन उत्सर्जन में कटौती आदि उसके लिए विदेशी निवेश हासिल करने में मददगार हो सकते हैं.

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रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया में अनिश्चितता बढ़ा दी है और यह विकसित देशों के निवेशकों में अपने ही देश के प्रति पक्षपात को बढ़ावा दे सकता है. अब तीसरी दुनिया देशों के मुकाबले अमेरिका और यूरोप में ज्यादा पूंजी-निवेश हो सकता है.

लेकिन युद्ध के बाद विदेश में निवेश की जाने वाली पूंजी— विदेशी संस्थागत निवेश (एफआईआई) और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई)— के लिए भारत को एक लोकतान्त्रिक देश होने के नाते उसकी स्वतंत्र विदेश नीति, आंतरिक स्थिरता, काम लागत में व्यवसाय करने की सुविधा, और कार्बन उत्सर्जन में कमी करने की उसकी प्रतिबद्धता के कारण ज्यादा आकर्षक स्थान बनाता है.

तात्कालिक संदर्भ में कहा जा सकता है कि युद्ध ‘जोखिम वाली स्थिति’ पैदा करता है और अल्पकालिक दृष्टि से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक उभरते बाज़ारों को छोड़कर अमेरिकी डॉलर जैसे सुरक्षित ‘एसेट्स’ की ओर लौट सकते हैं. संस्थागत निवेशका को अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा अपनी मुद्रा नीति को सख्त बनाए जाने के बाद तभी से भारत से बाहर जाने लगे थे जब युद्ध शुरू भी नहीं हुआ था. रूस और ईरान के साथ भारत के कारोबार के कारण उसके खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंध लगाए जाने की आशंका से जोखिम और बढ़ गया है.

इसके साथ ही, जींसों की कीमतों में वृद्धि, रूस के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंधों और तनाव जारी रहने के कारण व्यापक अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता के चलते प्रबल आशंका है कि निवेशक हालात में सुधार के बाद ही निवेश के बारे में फैसला करेंगे.

युद्ध खत्म होने के बाद, अन्य वजहों से भी भारत एक लोकतंत्र होने के कारण निवेश के लिए आकर्षक साबित हो सकता है. इसके अलावा भारत की भू-सामरिक स्थिति को इस क्षेत्र में चीन के साथ संतुलन बिठाने लायक माना जाता है. भारत निवेशकों के लिए माहौल सुधारने की कोशिश में जुटा है, और अधिक आर्थिक सुधार उसे अधिक आकर्षक बना सकते है.


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मजबूत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश

भारत में एफडीआई पिछले कुछ वर्षों से मजबूत रहा है. वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय के अनुमानों के मुताबिक, 2014-21 के बीच सात वर्षों में यहां 440.27 अरब डॉलर का एफडीआई आया, जो पिछले 21 वर्षों में कुल एफडीआई के 58 प्रतिशत के बराबर है. नीति बनाने वालों ने विदेशी निवेश को मजबूती देने के कई उपाय किए, जैसे कॉर्पोरेट टैक्स कम करना, नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन के जरिए इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास का वादा करना, आदि.

चीन से फंड

चीन में रियल एस्टेट डेवलपर एवरग्रांद के वित्तीय संकट के बाद और चीन में आर्थिक सुस्ती के दौरान भारत राजनीतिक स्थिरता और अधिक नियमन व्यवस्था के कारण निवेश के आकर्षक गंतव्य के रूप में उभरा.

चीन ने कंपनियों द्वारा यूजर डाटा के इस्तेमाल को लेकर कानून को हाल में सख्त बनाया है. अलीबाबा ग्रुप होल्डिंग्स लिमिटेड और टेन्सेंट होल्डिंग्स लिमिटेड जैसी टेक कंपनियों पर नियमन के शिकंजे ने चीन को पसंदीदा निवेश स्थल के दर्जे से नीचे उतार दिया है. टेक्नोलॉजी केन्द्रित ग्लोबल वेंचर कैपिटल निवेशकों ने भारत के साथ रफ़्तजफ्त बधाई है. एक ताजा शोध रिपोर्ट कहती है कि 2012 में भारत टेक्नोलॉजी केन्द्रित ग्लोबल वेंचर कैपिटल निवेश के मामले में ऊपर चढ़कर तीसरे स्थान पर पहुंच गया है.

एफआईआई निवेशों की नीति में ढील

सरकारी प्रतिभूतियों तक विदेशी निवेशकों की ज्यादा पहुंच बनाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं. सबसे ताजा कदम ‘फुल्ली एक्सेसिबल रूट ‘ (एफएआर) के रूप में उठाया गया है जिसके तहत कुछ अधिसूचित प्रतिभूतियों के मामले में विदेशी निवेश की कोई सीमा नहीं होगी. आगे, सभी प्रतिभूतियों को असीम विदेशी निवेश के लिए खोल दिया जाएगा. इन कदमों को भारतीय बॉन्डों को ग्लोबल बॉन्ड सूचकांक में शामिल किए जाने की पूर्व तैयारी माना जा सकता है. हालांकि ताजा बजट में इसकी घोषणा नहीं की गई, लेकिन सरकार देश के बॉन्डों को ग्लोबल बॉन्ड सूचकांक में शामिल किए जाने के मसले का निपटारा कर रही है.

निर्यात में उछाल

कोविड-19 महामारी के कारण आए व्यवधान के बावजूद भारतीय माल का निर्यात 21 मार्च 2022 को पहली बार 400 अरब डॉलर की सीमा से ऊपर चला गया. 2020-21 में यह 292 अरब डॉलर के बराबर था, जो 2021-22 में 21 मार्च को 37 प्रतिशत बढ़कर 400.08 अरब डॉलर पर पहुंच गया. निर्यातों में विविधता आई है और इनमें इंजीनियरिंग गुड्स, परिधान, गारमेंट आदि शामिल हैं. निर्यात में विविधता और भारी उछाल से भारत में घरेलू और विदेशी निवेशों को प्रोत्साहन मिलेगा.

कार्बन उत्सर्जन घटाने का वादा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल नवंबर में ग्लासगों में ‘सीओपी 26’ के शिखर सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने की पांच सूत्रीय रणनीति प्रस्तुत की थी. महत्वाकांक्षी लक्ष्य जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के मामले में भारत के वादे को स्पष्ट करते हैं, जिससे अक्षय ऊर्जा, विद्युत वाहन, ग्रीन हाइड्रोजन आदि के क्षेत्रों में निवेश के बड़े अवसर खुलेंगे.

भारत 2030 तक सालाना 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने की योजना बना रहा है ताकि जलवायु संबंधी लक्ष्यों को हासिल किया जा सके और भारत पर्यावरण के अनुकूल ईंधन के उत्पादन का केंद्र बने.

बाजार से कुल उधार के हिस्से के रूप में जारी ‘सोवरेन ग्रीन बॉण्ड्स’ कार्बन के उत्सर्जन को घटाने के भारत की रणनीति के अंग होंगे. ये रुपये की प्रधानता वाले बॉन्ड होंगे जो ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के अनुकूल लंबे समय के लिए होंगे. इनसे हुई आवाक को उन परियोजनाओं में लगाया जाएगा जो कार्बन के उत्सर्जन को घटाने में मददगार होंगी.

‘सोवरेन ग्रीन बॉण्ड्स’ को उन ग्लोबल निवेशकों से ब्याज की आमद होगी जिनके पास भारी पूंजी है और जो पर्यावरण-अनुकूल निवेश करना चाहते हैं. इन्हें जारी किए जाने से पहले, कनाडा के कई पेंशन फंड भारत पर दांव लगा रहे हैं और स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश कर रहे हैं.

मौजूदा अंतरराष्ट्रीय हालात के कारण पैदा हुए अवसर भारत के लिए अनुकूल साबित हो सकते हैं. अब यह भारत के नीति नियंताओं के ऊपर है की वे इस अवसर का कितना लाभ उठाते हैं.

(इला पटनायक एक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं. राधिका पांडे एनआईपीएफपी में कंसल्टेंट हैं.व्यक्त विचार निजी हैं.)


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