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Friday, 22 November, 2024
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भारत की निगाहें और अधिक सैन्य उपग्रहों पर- सुरक्षित संचार, 24 घंटे सीमा निगरानी है लक्ष्य

रक्षा ख़रीद परिषद ने मंगलवार को देश में ही डिज़ाइन और निर्मित किए गए, GSAT 7बी की ख़रीद के पहले क़दम को मंज़ूरी दे दी, जो सेना के लिए एक अति-आधुनिक, मल्टीबैण्ड, सैन्य ग्रेड उपग्रह होगा.

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नई दिल्ली: युद्ध के ज़्यादा से ज़्यादा तकनीक-उन्मुख होने के साथ, जिसका एक प्रमुख तत्व संचार का एक निर्बाध और सुरक्षित नेटवर्क होता है, भारत अगले दो-तीन वर्षों में कई उपग्रह लॉन्च करने की तैयारी कर रहा है. ये ख़ुलासा रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने दिप्रिंट से किया है.

सूत्रों ने बताया कि ये उपग्रह केवल संचार के लिए नहीं होंगे, बल्कि भारत की सीमाओं की चौबीसों घंटे निगरानी भी करेंगे, जो विशेषता फिलहाल भारत के पास नहीं है.

मंगलवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में प्रमुख ख़रीद पैनल रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने भारत में ही डिज़ाइन, विकसित, और निर्मित किए गए, जीसैट 7बी के लिए आवश्यकता की स्वीकृति (ख़रीद का पहला क़दम) प्रदान कर दी, जो सेना के लिए एक अति-आधुनिक, मल्टीबैण्ड, सैन्य ग्रेड उपग्रह होगा.

लॉन्च हो जाने के बाद, ये सेना का पहला विशेष संचार उपग्रह होगा, जो बल के लिए एक फोर्स मल्टीप्लायर और सुरक्षित संचार सहायता का काम करेगा, चूंकि ये नेटवर्क-उन्मुख युद्ध परिदृश्य में अंदर गहराई तक चला जाता है.

सूत्रों ने समझाया कि जीसैट 7बी उपग्रह, जिसकी सेना लंबे समय से मांग करती आ रही है, अगले दो-तीन वर्षों में लॉन्च कर दिया जाएगा, और न केवल बल के भीतर बल्कि दूसरी दो सेवाओं- नैसेना और वायुसेना को भी एकीकृत संचार उपलब्ध कराएगा.

सूत्रों ने बताया कि सेटेलाइट पर 4,635 करोड़ रुपए ख़र्च होंगे, और इसकी दो इकाइयां होगी. एक को अंतरिक्ष में संचालित किया जाएगा, जबकि दूसरा ज़मीन पर होगा.

सूत्रों का कहना था कि सेना उपग्रह से जुड़े ड्रोन्स की ख़रीद पर भी विचार कर रही है, और एक समर्पित उपग्रह संचालन में अहम भूमिका निभाएगा.

आगामी डिफेंस स्पेस एजेंसी- जो चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) के आधीन है, जिसका पद अभी ख़ाली है- बलों के सभी उपग्रहों के बीच समन्वय करेगी.


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नौसेना और IAF के प्रयोग में उपग्रह

पिछले साल नवंबर में, डीएसी ने जीसैट-7सी उपग्रह के लिए भारतीय वायुसेना (आईएएफ) के एक प्रस्ताव को मंज़ूरी दी थी.

वर्तमान में बल जीसैट-7ए (जिसे एंग्री बर्ड भी कहा जाता है) का इस्तेमाल करता है, जिसे 2018 में लॉन्च किया गया था. ये उपग्रह वायुसेना के लिए समर्पित है, लेकिन इसकी क़रीब 30 प्रतिशत क्षमता का इस्तेमाल थलसेना करती है.

ये उपग्रह आईएएफ के विभिन्न प्लेटफॉर्म्स को जोड़ता है, जैसे विमान, चॉपर्स, ड्रोन्स, हवाई पूर्व चेतावनी और नियंत्रण प्रणाली तथा रडार आदि. जीसैट-7 के बाद, जिसे 2013 में नौसेना के लिए लॉन्च किया गया था, ये भारतीय सेना के लिए दूसरा समर्पित उपग्रह था.

रुक्मिणी नाम से जाना जाने वाला जीसैट-7, सभी नौसैनिक संचालनों के लिए एक प्राथमिक संचार लिंक है.

नौसेना ने पहले ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के साथ, इसके प्रतिस्थापन के लिए क़रार कर लिया है, जिसे जीसैट-7आर कहा जाएगा. सूत्रों ने कहा कि प्रतिस्थापन की आवश्यकता इसलिए है कि जीसैट-7 की जीवन अवधि अगले दो वर्षों में पूरी हो जाएगी.

सूत्रों ने आगे कहा कि इसरो इस साल कुछ और सैन्य उपग्रह लॉन्च करेगी, जिनका फोकस निगरानी पर होगा. भारत में फिलहाल इस उद्देश्य के लिए कार्टोसैट और रिसैट श्रृंखला के उपग्रह इस्तेमाल किए जाते हैं.

अपनी सीमाओं, ख़ासकर चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर हो रही गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए, भारत अपने और मित्र देशों के उपग्रहों का इस्तेमाल करता है.

इस साल फरवरी में, पोलर सेटेलाइट लॉन्च वेहिकल (पीएसएलवी)-सी-52 ने, सतीश धवन स्पेस सेंटर श्रीहरिकोटा से, ईओएस-04 उपग्रह को सफलतापूर्वक लॉन्च किया, जो एक पृथ्वी अवलोकन प्रणाली है.

भारत ने रक्षा उपकरणों के लिए ख़रीद नियम बदले

मंगलवार को डीएसी ने ख़रीद मैन्युअल, रक्षा ख़रीद प्रक्रिया (डीएपी)-2020 में भी नीतिगत बदलाव किए, जिनके अंतर्गत रक्षा बलों के आधुनिकीकरण की तमाम आवश्यकताएं, ‘स्वदेशी स्रोतों से पूरी की जानी हैं, और आयात का सहारा अपवाद स्वरूप ही लिया जाएगा’.

मंगलवार को रक्षा मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, कि रक्षा मंत्रालय पर वित्तीय बोझ को कम करने के लिए, इंटेग्रिटी पैक्ट बैंक गारंटी (आईपीबीजी) की ज़रूरत को ख़त्म कर दिया गया है, और क़रार की स्टेज पर बोली प्रतिभूति और पीसीआईपी कवर-अप के तौर पर बयाना राशि (ईएमडी) को लाया जाएगा.

ईएमडी केवल 100 करोड़ रुपए और उससे ऊपर के प्रस्तावों पर लागू होगी, और एमएसएमईज़ तथा स्टार्ट-अप्स को ईएमडी से छूट रहेगी. बयान में कहा गया कि डीएसी ने, इनोवेशंस फॉर डिफेंस स्टार्ट-अप्स/एमएसएमईज़ से ख़रीद के लिए एक नई सरलीकृत प्रक्रिया को भी मंज़ूरी दे दी.

मंत्रालय ने ये भी कहा कि नए नियमों से ख़रीद प्रक्रिया में तेज़ी आएगी, क्योंकि समय सीमाओं को दो साल से अधिक से घटाकर 5 महीने कर दिया गया है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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