कानून आयोग अपनी आने वाली अंतिम रिपोर्ट में सभी धर्मों के निजी कानूनों को बदलने की सिफारिश का प्रस्ताव भेज सकता है।
नई दिल्ली: भारत के कानून आयोग ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर अपनी अंतिम रिपोर्ट में कार्यान्वयन को 10 वर्षों तक आगे बढ़ाने का सुझाव दे सकता है, दिप्रिंट को जानकारी मिली है कि भारत का कानून आयोग धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों में बदलाव की सिफारिश कर सकता है, अगले कुछ महीनो में रिपोर्ट आने की उम्मीद है।
कानून पैनल के एक सूत्र ने कहा, “हम धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों में बदलाव लाने की सिफारिश कर सकते हैं और यूसीसी के कार्यान्वयन के लिए 10 वर्षों का इंतजार करना पड़ सकता है।”
आयोग अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, पूर्व कानून मंत्री सलमान खुर्शीद, पूर्व कांग्रेस नेता आरिफ मोहम्मद खान, बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय सहित कई हितधारकों के साथ परामर्श कर रहा है और इस्लाम में बच्चों का संरक्षण, विरासत, शादी की उम्र इत्यादि जैसे कई मुद्दों पर उनकी कानूनी राय मांगी है।
अपने 2014 के आम चुनावों के घोषणापत्र के वादों को ध्यान में रखते हुए, बीजेपी सरकार ने जून 2016 में कानून आयोग से यह जाँच करने के लिए कहा कि क्या समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को भारत में लागू किया जा सकता है, जो अलग-अलग धार्मिक ग्रंथों और रीति-रिवाजों के आधार पर व्यक्तिगत कानूनों का स्थान लेगा।
इस साल की शुरुआत में आयोग ने हितधारकों से विस्तृत परामर्श की मांग की थी, लेकिन कमीशन ने कहा की वह मुसलमानों के बीच निकाह हलाला और बहुविवाह जैसे विवादित मुद्दों से दूर रहेगी क्योंकि वे पहले ही विचाराधीन हैं और इसलिए आयोग की सीमा से बाहर हैं।
आयोग अपनी रिपोर्ट में इस बात पर जोर देना चाहेगा कि लोकप्रिय समझ के विपरीत यदि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू की गयी तो यह किसी भी प्रकार मुस्लिम विरोधी या इस्लाम विरोधी नहीं होगी।
आयोग के एक सदस्य ने कहा, “इस्लाम के कुछ प्रगतिशील सिद्धांत हैं जिन्हें प्रकाश में लाया जायेगा और अन्य धर्मों पर भी लागू किया जा सकता है। हमने इसे मुस्लिम समूहों को भी बता दिया है।”
उदाहरण के लिए, इस्लामी कानून के तहत, एक व्यक्ति केवल अपनी संपत्ति का एक-तिहाई उस व्यक्ति को दे सकता है जो न तो उसका बच्चा और न ही उसकी पत्नी हो, और अपने परिवार के लिए दो तिहाई की सम्पत्ति रखने के लिए बाध्य है।
एक सदस्य ने कहा, “यह इस्लाम में एक बहुत ही प्रगतिशील पहलू है और हम सिफारिश कर सकते हैं कि इसे हिंदुओं पर भी लागू किया जाए। हिंदू कानून के तहत, एक व्यक्ति अपनी सारी संपत्ति किसी अन्य व्यक्ति के नाम कर सकता है, उस व्यक्ति पर कोई बाध्यता नहीं है कि वह उस सम्पत्ति में से अपने परिवार को उसका कोई हिस्सा दे।
रिपोर्ट में इस्लाम के बारे में एक अन्य पहलू को भी प्रकाशित किया गया है, वह है धर्म, इसमें शुरुआत से ही हिंदू धर्म के विपरीत महिलाओं को संपत्ति का उत्तराधिकारी बनाने का हक है। एक सदस्य ने कहा “हालांकि इस्लाम में महिलाओं को उनके पुरुष (पति) के बराबर का आधा हिस्सा मिलता है, जो कि हमेशा से उनकी विरासत के रूप में उनके अधिकार में था…हिंदू धर्म में यह अधिकार बहुत बाद में आया।
हालांकि, आयोग ने मुस्लिम समूहों से जवाब मांगा है कि बेटियों को बेटों की तुलना में केवल आधे हिस्से का उत्तराधिकार क्यों मिलता है। इस पर समूहों से ईद के बाद जवाब आने की उम्मीद है।
एक अन्य मुद्दा जिस पर कमीशन ने अपनी प्रतिक्रिया मांगी है वह है, इस्लाम के भीतर शादी के लिए न्यूनतम आयु। जबकि बाल विवाह अधिनियम निषेध 2006 के तहत लड़कों और लड़कियों की शादी हेतु न्यूनतम आयु 21और 18 साल निर्धारित है, इस्लामी कानून के अन्तर्गत युवावस्था के बाद विवाह की अनुमति है। एक सूत्र ने कहा, “बाल विवाह (निषेध) अधिनियम एक धर्मनिरपेक्ष कानून है, इसलिए इसे सभी पर लागू होना चाहिए।”
यहां तक कि ईसाइयों के बीच भी कुछ सुधारों की सिफारिश की जा सकती है। उदाहरण के लिए, भारत के ईसाइयों को तलाक देने के लिए पहले दो साल का इंतजार करना पड़ता है, भले ही दोनों पक्षों ने पहले से ही अलग होने का फैसला कर लिया हो। “हम सिफारिश कर सकते हैं कि इस अवधि को घटा कर एक वर्ष तक कर दिया जाए।”
Read in English: Uniform Civil Code could be delayed by 10 years