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Friday, 22 November, 2024
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मैन्युफैक्चरिंग सुधारे बिना भारत को बड़ी शक्ति के रूप में देखना आईएमएफ की बड़ी भूल

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यदि मोदी सरकार भारत की विकास दर में तेजी लाने की उम्मीद करती है,अधिक नौकरियां का सृजन करना चाहती है और राजकोषीय राजस्व को बढ़ावा देना चाहती है तो इसेमैन्यूफैक्चरिंग को सफल बनाना होगा।

मैन्यूफैक्चरिंग में नौकरियों से कोई फर्क नहीं पड़ता! जो कि वास्तव में इस सारांश के सन्दर्भ में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने पिछले महीने अपने नवीनतम वर्ल्ड इकॉनमिक आउटलुक में कहा था।

A picture of TN Ninan, chairman of Business Standard Private Limitedइस सारांश के सन्दर्भ में हवाला देते हुए, “रोजगार को लेकर मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र से सर्विस के क्षेत्र में होने वाले विस्थापन से अर्थव्यवस्था की विस्तृत उत्पादनवृद्धि में कोई बाधा नहीं आती है।और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को आय के उच्च स्तर को प्राप्त करने में किसी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा। भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी इस खबर ने सुर्खिया बनाई।

लेकिन भारत ने उपरोक्त कथन के पहले भाग की सत्यता को साबित किया है: हम एक मजबूत मैन्यूफैक्चरिंग आधार बनाने में विफल रहे इसके पश्चात भी हम उत्पादकता में सुधार कर रहे हैं।मैन्यूफैक्चरिंग में, कुल रोजगार का, केवल 8 प्रतिशत या उससे भी कम है। लकिन, वास्तव में, इसमें खबर क्या है?।

आईएमएफ निम्न बिंदुओ पर ध्यान नहीं देता,पहला,श्रम उत्पादकता में कितना सुधार होगा अगर भारत का श्रमिक, कृषि (रोजगार के तहत पीड़ित) से मैन्यूफैक्चरिंग के लिए विस्थापित हो जाये? दूसरा, रोजगार की द्रष्टि से केवल मैन्यूफैक्चरिंग महत्वपूर्ण नहीं है। धरती पर हर प्रमुख शक्ति एक मैन्यूफैक्चरिंग शक्ति भी होती है। और इसी तरह,चीन दुनिया का एक प्रमुख मैन्यफैक्चरर है, यूरोप में जर्मनी ने इस पर अधिकार जमा रखा है,मैन्यूफैक्चरिंग के माध्यम से जापान और दक्षिण कोरिया ने भीविश्व मेंमहत्वपूर्ण स्थान बनाया है।प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद, ब्रिक्स के दो देशोंमैन्यूफैक्चरिंग की पर्याप्त उपलब्धतानहोनेके कारण विफल रहे है। रूस मैन्यूफैक्चरिंग से सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी) में केवल 14 प्रतिशत का योगदान देता है और ब्राजील 12 प्रतिशत का योगदान देता है जबकि भारत का आंकड़ा 17 प्रतिशत है।ऐतिहासिक रूप से कोई भी देश विश्व की प्रमुख शक्ति नहीं बन पाया हैयदि मैन्यूफैक्चरिंग का योगदान सकल घरेलू उत्पाद में 20 प्रतिशत से भी कम होता है। पूर्वी एशिया के सभी देश इसी मापदंड पर खरे उतरते हैं।

यह संभव है कि चौथी औद्योगिक क्रांति (नई प्रौद्योगिकियो जैसे, 3 डी प्रिंटिंग और कृत्रिम होशियारी,मैन्यूफैक्चरिंग और सर्विसों के एकीकरण) के कारण इतिहास को फिर से लिखा जा सकता है।

ऐप्पल जैसी कंपनी भी है: यह एशिया में अपने मैन्यूफैक्चरिंग आपूर्तिकर्ताओं को अपने यंत्र के खुदरे मूल्य में से एक छोटा सा अंश देता है, जिससे उनको 30 प्रतिशत का लाभ होता है। लेकिन मध्यम आय वाले देशों के लिए ऐप्पल जैसी कंपनियों के आधार पर राष्ट्रीय रणनीतियों को स्थापित करना खतरनाक है।

ऐसा क्यों ? चूंकि एक मैन्यूफैक्चरिंग आधार आमतौर पर सर्विसेस की तुलना में अधिक आगे केऔर पिछलेसंपर्कों को रखता है – यही कारण है कि एक औद्योगिक केंद्र अपने क्षेत्र का चहुमुखी विकास करता है। यह कर के आधार में योगदान देता है,साथ ही साथमैन्यूफैक्चरिंगके निर्यातको भी मजबूतकरता है: थाईलैंड मेंमैन्यूफैक्चरिंगसे आने वाले सकल घरेलू उत्पाद का हिस्सा 27 प्रतिशत है, जिसका तीन-चौथाई निर्यात हो जाता है। भारत के विपरीत इसका व्यापार आधिक्य है।थाई बाहट 1991 से रुपये के मुकाबले मूल्य में दोगुना हो गया है- यह इसका एक संकेत है कि उस देश में कितनी तेजी से उत्पादकता में सुधार हुआ है।

एक सिविल मैन्यूफैक्चरिंग आधार के बिना (शिप बिल्डिंग से लेकर हाई-एंड इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रॉनिक्स तक सबकुछ), भारत रक्षा उपकरणों के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा आयातक बना रहेगा।नई प्रौद्योगिकियों और उत्पादों का विकास स्थानीय उत्पादन इकाइयों पर निर्भर करता है जो नयी खोज करती है और मूल्य श्रृंखला में ऊपर की तरफ बढती है – जैसा किक्रुप(जर्मन उद्योगपति और हथियारों के निर्माता)जर्मनी में पहेले स्टील बनाते थे और अब हथियार बनाने लगे है। कुछ इस तरह का कार्य भारत फोर्ज कर रही है।

इसी प्रकार, इस्पात निर्माण से जहाज निर्माण (जापान, कोरिया और चीन के विभिन्न चरणों में हासिल की गई, और उससे पहले ब्रिटेन और अन्य द्वारा) प्राकृतिक प्रगति भारत में अभी तक नहीं हुई है। नौसेना के निर्माणाधीन जहाजों को बनाने हेतु सही प्रकार की स्टील प्राप्त के लिए वर्षों तक इंतजार करना पड़ा। सैन्य सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है,जो कि उद्योगों के लिये बंज़र भूमि की तरह है।

यह दुखदायी है कि और यही कारण है कि भारत की जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग का हिस्सा वास्तव में मेक इन इंडिया और इससे पूर्ववर्ती यूपीए की नई मैन्यूफैक्चरिंग नीति के बावजूद लगभग अपरिवर्तित रहा है।

यदि मोदी सरकार पिछले दशक की अर्थव्यवस्था की 7+ प्रतिशत की विकास दर से 8 प्रतिशत और उससे भी अधिक की वृद्धि करने की उम्मीद करती हैऔर व्यापार में अपने बड़े और बढ़ते हुए घाटे से छुटकारा पाना चाहती है और साथ-साथ अधिक नौकरियों का निर्माण करने और राजकोषीय राजस्व कोबढ़ाना चाहती है तो इसे आईएमएफ को भूलना होगा और मैन्यूफैक्चरिंग को सफल बनाना होगा। इन्हें अपने चार साल पूरे होने को लेकर जश्न मानाने के बजाय फिर से इसे जांचना चाहिए कि यह अब तक क्यों नहीं हुआ।

बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ विशेष प्रबन्ध द्वारा

Read in English: Bizarrely & wrongly, IMF thinks India can become a big power without fixing manufacturing

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