नयी दिल्ली, 21 मार्च (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने द्वारका की एक आवासीय सोसायटी में पिछले दो दशक से रह रहे तीन लोगों को राहत देते हुए कहा कि इस चरण में फ्लैट खाली करने का निर्देश देकर उन्हें निराश करना उचित नहीं होगा।
तीनों याचिकाकर्ता सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार को मंदाकिनी ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी में उनकी सदस्यता को नियमित करने का निर्देश देने की मांग कर रहे थे।
उच्च न्यायालय ने तीनों याचिकाकर्ताओं को अपनी-अपनी सहकारी समिति के माध्यम से सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार को उनकी सदस्यता के कानूनी सत्यापन के लिए ऐसे सभी प्रासंगिक दस्तावेज उपलब्ध कराने के निर्देश दिए, जो उस तारीख को वांछित थे, जब उन्होंने सदस्यता के लिए आवेदन किया था।
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा की पीठ ने याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे प्रधानमंत्री राहत कोष में एक-एक लाख रुपये जमा कराएं और अपनी सदस्यता के सत्यापन का आवेदन सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार के पास भेजते समय उसमें जमा राशि की रसीद की प्रतियां भी शामिल करें।
पीठ ने कहा कि सहकारी समितियों द्वारा प्रासंगिक दस्तावेज उपलब्ध कराने के छह हफ्ते के भीतर सत्यापन की प्रक्रिया पूरी कर ली जानी चाहिए।
अदालत ने स्पष्ट किया कि अगर इनमें से प्रत्येक याचिकाकर्ता दिल्ली सहकारी समिति अधिनियम के प्रावधानों और अन्य नियमों के तहत दायर आवेदन की तारीख पर सदस्य बनने के योग्य था, क्योंकि वह उस तारीख को काम कर रहा था तो सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार उसकी सदस्यता को नियमित करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को जनवरी 2005 में द्वारका की मंदाकिनी ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी के सदस्य के रूप में नामांकित करने का निर्णय लिया गया था, जिसके बारे में रजिस्ट्रार को भी सूचित किया गया था।
उसने कहा कि इसके बाद सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार ने संबंधित नियमों का पालन नहीं करने का आरोप लगाते हुए सोसायटी को कारण बताओ नोटिस जारी किया था।
पीठ ने कहा कि हालांकि, कारण बताओ नोटिस जारी करने के अलावा रजिस्ट्रार ने सहकारी समिति को कोई निर्देश जारी करने की अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं किया और यहां तक कि जब 2014 में एक प्रशासक की नियुक्ति के साथ इसके प्रबंधन को हटा दिया गया, तब भी उन्होंने इन याचिकाकर्ताओं की सदस्यता को रद्द करने लिए कोई कदम नहीं उठाया।
अदालत ने कहा, “अगर जनवरी 2005 में सूचना मिलने के तुरंत बाद याचिकाकर्ताओं और संबंधित समितियों के खिलाफ कार्रवाई की जाती और उन्हें जल्द ही समिति से हटा दिया जाता तो वे या तो उसी समिति या फिर किसी अन्य समिति की सदस्यता हासिल करने के रास्ते तलाशते या फिर रहने के लिए दूसरी संपत्ति खरीदते।”
पीठ ने कहा कि वर्षों से रजिस्ट्रार की निष्क्रियता के चलते यह स्थिति उपजी है कि याचिकाकर्ता फ्लैट की लागत वहन करने और उस पर कब्जा करने के बाद भी अपनी सदस्यता के नियमित होने का इंतजार कर रहे हैं।
पीठ ने कहा, “हमारे विचार में, समय बीतने के साथ याचिकाकर्ताओं के पक्ष में भूमिका तैयार हुई है, क्योंकि यह बहुत अनुचित होगा कि वे अपनी सदस्यता और खुद को आवंटित किए गए फ्लैट को सदस्य बनने और कीमत का भुगतान करने के 18 साल बाद छोड़ दें।”
भाषा पारुल अनूप
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