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Sunday, 17 November, 2024
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‘अब हथियार उठाओ’; कैसे राजपूत-हिंदुत्व वाले डीजे गानों के जरिए दादरी का यह गायक युवाओं को उकसा रहा

राजनैतिक और सामाजिक रूप से अस्थिर माने जाने वाले पश्चिम यूपी में उपेंद्र राणा के हिट वीडियो राजपूती हिंदुत्व का एक बाहुबली किस्म का ब्रांड बेचते हैं, और इनमें डीजे बीट्स से साथ बंदूकों, तलवारों, बाइक के स्टंट और अपनी-अपनी मांसल भुजाओं को प्रदर्शित करने वाले लोगों की तस्वीरें भी लगी होती हैं.

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दादरी: हिन्दू धार्मिक नेता यति नरसिंहानंद द्वारा हरिद्वार में मंच पर भाषण देने और मुसलमानों के खिलाफ हथियार उठाने का आह्वान करने के महीनों पहले, उन्हें एक लोकप्रिय संगीत वीडियो में दिखाया गया था जिसमें वे कुछ ऐसा ही ‘संदेश’ देते नजर आते है. लेकिन यहां उनका वह ‘संदेश’ उत्तर प्रदेश के राजपूती हिंदुत्व पॉप की नयी सनसनी माने जा रहे उपेंद्र राणा के ऑटोट्यून द्वारा संवारे गए गाने के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया गया था.

पश्चिमी यूपी के डासना कसबे, जहां यह ऊंची पहुंच वाले पुजारी रहते हैं, से 15 किलोमीटर की दुरी पर दादरी ब्लॉक में स्थित रसूलपुर गांव में बने अपने घर पर दिप्रिंट से बात करते हुए राणा ने बताया कि यह वीडियो, जिसे यूट्यूब पर 1.5 लाख से अधिक बार देखा जा चुका है, नरसिंहानंद की सहमति के बाद ही बनाया गया था.

पूर्व में एक लोक गायक रहे राणा ने कहा, ‘मैं उनसे उनके मंदिर में मिला था. वह मेरे लिए एक गुरु की तरह हैं. जब मैंने उनसे कहा कि मैं उन पर एक वीडियो बनाना चाहता हूं, तो उन्होंने मुझे अपने आशीर्वाद के रूप में 2,100 रुपये दिए.‘

गहरे रंग की पतलून के साथ एक साधारण सफेद शर्ट पहने, मध्यम आयु वर्ग के और थोड़ी सी दाढ़ी-मूंछ रखे हुए राणा इस वीडियो में किसी दोस्ताना बैंक क्लर्क की ही तरह नजर आते हैं, बशर्ते आप उनके द्वारा कभी-कभी लहराए जा रहे तलवार और बंदूक तथा खून के प्यासे बोलों, धर्म के खतिर आगे बढ़ के अब हथियार उठाओ (जिन्हें वह उत्साही धुन के साथ गाते हैं), को नजरअंदाज कर दे.

‘नरसिंहानंद जगावे’ शीर्षक वाले इस गाने को गाजियाबाद (यूपी) के उस डासना देवी मंदिर में फिल्माया गया था, जहां के महंत स्वयं यति नरसिंहानंद हैं. इसमें नारंगी रंग के कपडे पहने इस साधु को दिखाया गया है जो ज्यादातर पृष्ठभूमि में बैठे रहते हैं, और साथ ही राणा हिंदू धर्म के एकमात्र रक्षक के रूप में उनकी प्रशंसा करते नजर आते हैं.

हालांकि, 44-वर्षीय राणा के व्यक्तित्व के बारे में कुछ भी असाधारण नहीं है, लेकिन वह इस ठाकुर/राजपूत-प्रभुत्व वाले इलाके में एक प्रकार का ‘आइकॉन’ बन गए हैं और यहां उनके गीत और उनकी कानों को भेदती हुई आवाज जोर-शोर से गूंजती रहती है.

वास्तव में, उन्होंने एक तरह की नई शैली को शुरूआत कर दी है: जिसे ‘डीजे राजपूत सांग’ कहा जा रहा है. तेज डांस बीट्स, ड्रोन शॉट्स, बंदूकें, तलवारें, मोटरबाइक स्टंट, और कैमरे पर अपनी मांसपेशियों को प्रदर्शित करते हुए तंग टी-शर्ट पहने हुए पुरुषों को दिखाने वाले राणा के संगीत वीडियो अक्सर आक्रामक रूप से ठाकुर/राजपूत पहचान के दबदबे को बढ़ावा देते हैं.

वह इस लड़ाका जाति के गौरवशाली इतिहास के बारे में गाते हैं, और साथ ही योगी आदित्यनाथ जैसे आधुनिक ठाकुर विजेताओं का गुणगान करते हुए उन लोगों से हथियार उठाने को कहते हैं जो अपनी विरासत को भूल गए हैं. ‘हिंदू गौरव’ का मुद्दा अक्सर उनके द्वारा उठाये इन विषयों के साथ फिट बैठता है. खुद राणा कहना है कि यति नरसिंहानंद राजपूत नहीं हैं, लेकिन उनकी विचारधारा उन मूल्यों से मेल खाती है, जिन पर यह गायक विश्वास करता है.

अतीत में सांप्रदायिक दंगों और भीड़ द्वारा पीट-पीट काट हत्या कर दिए जाने (लिंचिंग) की घटनाओं के साक्षी रहे तथा देश के सामाजिक और राजनीतिक रूप से अस्थिर माने जाने इस क्षेत्र में उनके गीत आग में घी डालने का काम रहे हैं.


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स्थानीय स्टारडम तक का धीमा सफर

2019 की गर्मियों के सबसे चरम समय में, उपेंद्र राणा पास के ही एक गांव में ‘हम ठाकुर सुपरस्टार’ नामक एक नए गीत के लिए एक वीडियो शूट करने की तैयारी कर रहे थे. उन्हें एक्स्ट्रा के रूप में उनके पीछे खड़े होने के लिए कुछ युवाओं की जरुरत थी और उन्होंने अपने दल में शामिल लड़कों में से एक को अपने कुछ दोस्तों को बुलाने के लिए कहा. यह बात तुरंत ही फैल गई और आनन-फानन में 250 से अधिक लोग इकठ्ठा हो गए.

राणा कहते हैं, ‘वे सभी वीडियो का हिस्सा बनाना चाहते थे. मैंने कैमरामैन से ज़ूम आउट करने और उन सभी को शॉट में लेने के लिए कहा. इन लोगों का मुझ पर एक तरह का अंध विश्वास है.’

उपेंद्र राणा अपने रहने वाले कमरे में, जहां दीवारों पर राजपूत नायकों के चित्र और उनके संगीत वीडियो के पोस्टर लगे हैं | फोटो: सोनल मथारू | दिप्रिंट

पर वे बताते हैं कि यह लोकप्रियता उन्हें अपने वर्षों के संघर्ष और घर के भीतर से लगायी जाने वाली वर्जनाओं से लड़ने के बाद मिली है.

जब राणा 14 वर्ष के थे तभी से वह उनके गांव में अपने कला का प्रदर्शन करने वाले स्थानीय रागिनी (एक लोक गायन उप-शैली) गायकों से प्रभावित रहते थे. उन्होंने उनसे निजी तौर पर सीखना शुरू कर दिया और 21 साल की उम्र में शादी हो जाने बाद उन्होंने संगीत में अपना करियर बनाने के लिए कॉलेज की पढाई छोड़ दी.

हालांकि, अनियमित रूप से आयोजित होने वाले ग्राम-स्तरीय मंच के कार्यक्रम आर्थिक रूप से गुजारे लायक नहीं थे और इस लिए उन्होंने एक एनटीपीसी (नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन) संयंत्र, जो उनके घर के करीब स्थापित किया गया था, में ठेकेदार का काम पकड़ लिया.

साल 2007 में, उन्होंने एक स्थानीय स्तर की म्यूजिक कंपनी के साथ अपना पहला म्यूजिक कैसेट रिकॉर्ड करने में कामयाबी हासिल की और इसके लगभग एक दशक बाद उन्होंने एक ऐसी संगीत कंपनी के साथ करार किया जिसका अपना खुद का एक यूट्यूब चैनल था. यह उनके लिए बाजी पलटना वाला मोहरा साबित हुआ. उनके गीत, जो इतिहास के संदर्भों से प्रेरणा ग्रहण करते थे, काफी अधिक शेयर किए गए और 2019 तक, उन्होंने अपने लिए अलग से एक चैनल – ‘उपेंद्र राणा’ – के निर्माण का फैसला कर लिया.

उपेंद्र राणा के घर का प्रवेश द्वार उनके संगीत, राजपूत और YouTube क्रेडिट की घोषणा करता है | फोटो: सोनल मथारू | दिप्रिंट

उनके द्वारा अपलोड किए गए पहले गीत की मिली उदासीन प्रतिक्रिया के बाद उन्हें उनके युवा दर्शकों, जिनमें ज्यादातर उनके गांव के ठाकुर लड़के थे, से कुछ सुझाव प्राप्त हुए जिन्होंने उन्हें अपने संगीत में नए जमाने की ‘ठुमक’ पेश करने के लिए कहा.

राणा, जो खुद को महाराजा राणा प्रताप का वंशज मानते हैं, कहते हैं, ‘मेरे ज्यादातर प्रशंसक मुझसे छोटी उम्र के हैं. उन्होंने ही मुझे बताया कि अब कोई लोक संगीत नहीं सुनता. वे सब डीजे बीट्स वाले गाने चाहते थे.’

यह फार्मूला काम कर गया. सिंथ लूप्स और भांगड़ा इफ़ेक्टस के साथ फिल्माया गया राणा का अगला गाना, ‘ठाकुर कौम बड़ी मर्दानी’, 50 लाख व्यूज की सीमा को पार कर गया.

राणा के लिए यह कुछ ऐसा था जैसे उसने सफलता के खजाने की गुप्त चाभी प्राप्त कर ली हो. आम तौर पर ठाकुर वर्चस्व के विषय पर आधारित उनके गीत, अब इसके अपग्रेडेड संगीत के साथ बड़े पैमाने पर लोगों को लुभाने लगे थे.

अब कोई उसे रोक नहीं सकता था. एक के बाद एक गाने आते चले गए और सब के व्यूज लाखों में थे. ‘हम ठाकुर सुपरस्टार’  वाले गाने ने तो 220 लाख व्यूज के साथ उनके पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए.

राणा के एक प्रशंसक रिंकू राणा, जो उनके गांव में ही रहता है, ने कहा, ‘उनके गाने हर जगह बजाए जाते हैं. अगर कोई भक्ति समारोह भी होता है, तो पहले पूजा गीत बजाया जाता है, फिर उपेंद्र राणा के गीत.

’हालांकि, राणा की लोकप्रियता यूं ही नहीं बढ़ती जा रही थी.


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ठाकुर शक्ति‘ को भुनाना

पश्चिमी यूपी लंबे समय से सांप्रदायिक तनाव से परेशान रहा है, लेकिन राज्य में समाजवादी पार्टी के शासनकाल के तहत हुईं दो प्रमुख घटनाओं  – 2013 में हुआ मुजफ्फरनगर दंगा और 2015 में मोहम्मद अखलाक की भीड़ द्वारा हत्या – ने इस क्षेत्र में जाति और धार्मिक समूहों के बीच मौजूद दरारों को सतह पर ला दिया.

अखलाक की हत्या में गिरफ्तार किए गए 18 लोगों में से ज्यादातर ठाकुर बिरादरी के थे, और दादरी में प्रचलित आम जनभावना यह थी कि वे ही इस मामले में असली ‘पीड़ित’  थे और राज्य की सरकारी मशीनरी उनकी सुरक्षा करने में विफल रही थी.

रसूलपुर गांव निवासी रिंकू राणा ने आरोप लगाया कि, ‘पुलिस ने इस इलाके के लड़कों को गिरफ्तार किया और उन्हें बुरी तरह पीटा गया.’

साल 2017 में, जब भाजपा के योगी आदित्यनाथ, जो जाति के आधार पर ठाकुर हैं,  मुख्यमंत्री बने तो राणा जैसे लोगों के लिए यह एक नए सवेरे जैसा था. पिछली बार इस जाति के किसी व्यक्ति द्वारा राज्य का नेतृत्व किये जाने के बाद लगभग दो दशक हो गए थे (योगी से पहले उत्तर प्रदेश के अंतिम राजपूत सीएम 2000-2002  तक पद पर रहे राजनाथ सिंह थे) और योगी के आने से ठाकुर पहचान को बढ़ावा मिला.

राणा के गीत भी अधिक आक्रामक हो गए और ठाकुरों की ताकत को दर्शाने लगे. साथ ही वे इस डर को भी दर्शाते हैं कि अगर सही तरह की मर्दानगी का प्रदर्शन नहीं किया गया तो यह सामाजिक स्थिति उनसे फिर छीन ली जा सकती है.

दादरी में अपने घर के बाहर उपेंद्र राणा (नीले रंग में) अपने बेटे (ग्रे रंग में) के साथ। ग्रामीण रिंकू राणा (सबसे बाएं) और विवेक राघव वीडियो में इस्तेमाल की गई कुछ तलवारें दिखाते हैं | फोटो: सोनल मथारू | दिप्रिंट

हथियारों के साथ तैयार रहने के लिए दिए जाने वाले मौखिक उपदेशों के साथ-साथ बंदूकों, तलवारों और मांसपेशियों के इस प्रदर्शन ने लक्षित दर्शकों के बीच सशक्तिकरण की भावना दी है. ये लक्षित दर्शक ज्यादातर ठाकुर युवा हैं जो या तो अर्ध-नियोजित या बेरोजगार हैं और इस प्रकार उनकी जाति और विरासत को छोड़कर आम तौर पर नुक्सान वाली स्थिति में ही हैं.

जब कुछ ही नौकरियां नौजूद हों और सस्ती आने वाली एक ही चीज हो – फोन डेटा –  तो अपने गौरवशाली अतीत को फिर से प्राप्त करने और एक कल्पित ‘दुश्मन’ को हराने के बारे में पेश किये गए आकर्षक गाने कुछ हद तक सांत्वना और ताकत प्रदान करते हैं, हालांकि अक्सर उनमें लोगों को गुमराह ही किया जाता है.

जी.बी. पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान के निदेशक तथा राजनीति पर कई पुस्तकों के लेखक, प्रोफेसर  बद्री नारायण,कहते हैं, ‘सामान्य अर्थों में हिंदुत्व के मायने बदल गए हैं. लोगों में इतिहास की भावना होती है और यह संगीत के माध्यम से अधिक लोकप्रियता के साथ उन तक पहुंचता है. इसे कला प्रदर्शन के साथ जोड़ना लोगों के लिए इसे और आकर्षक बनाता है.’

राणा इस सामाजिक-राजनीतिक प्रवृत्ति के स्पष्ट लाभार्थी हैं. उनके संगीत, जिसकी वजह से कभी उन्हें दया की नज़रों से देखा गया था, ने अब उन्हें एक स्थानीय हस्ती बना दिया है और वास्तव में तो इसने उन्हें अपने यूट्यूब चैनल से पैसे कमाने की भी सहूलियत प्रदान की है. राणा कहते हैं कि उन्होंने पहली बार अपने म्यूजिक चैनल से जनवरी 2020 में कमाई की थी,  जब उन्होंने 28,000 रुपये कमाए थे.

छुटभैये हिंदू और ठाकुर संगठनों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में अब उन्हें प्रमुख अतिथि और वक्ता के रूप में आमंत्रित किया जाता है. उनकी इंस्टाग्राम तस्वीरों में उनकी गर्दन में गेंदे की मालाएं लटकती हुई दिखाई देती हैं, और साथ ही उनके उत्सुक प्रशंसक तस्वीरों के लिए उनके बगल में पोज देते नजर आते हैं.

उन्हें अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा, जो राजपूत समुदाय के अधिकारों की वकालत करने वाला एक संगठन है, के प्रदेश उपाध्याक्ष के रूप में भी नियुक्त किया गया है.


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‘मैं अपने गानों के माध्यम से इतिहास सही करता हूं’

यूट्यूब पर सफलता का स्वाद चखने से पहले, राणा अक्सर राष्ट्रवादी प्रताप सेना द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेते थे, जो खुद को हिंदुओं की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध एक सामाजिक संगठन कहता है. 2015 में गठित इस संगठन पर अखलाक द्वारा गोमांस खाने के संदेह की वजह से लोगों को उसकी लिंचिंग के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था.

इस संगठन के गौतम बुद्ध नगर के जिला प्रभारी वीर सिंह शिशोदिया कहते हैं,  ‘मैं ही राणा को इस सेना में लाया. वह हमारे लिए लाइव प्रदर्शन करते थे. साल 2015 की घटना के बाद, उनकी लोकप्रियता में वृद्धि हुई.’

राणा ने स्वीकार किया कि वह इस संगठन के कार्यक्रमों में प्रदर्शन करते थे और ‘भीड़ इकट्ठा करने’ में मदद करते थे, लेकिन उनका योगदान वहीं तक सीमित था.

वैसे भी, अखलाक की हत्या अब एक लुप्त होती याद जैसी है और राणा ने अब अपनी ‘योद्धा’ वाली प्रवृत्ति को सांस्कृतिक युद्ध के मैदान में स्थानांतरित कर लिया है. जब भी ऐसा कोई संकेत मिलता है कि प्रतिद्वंद्वी जातिय समुदाय, जैसे गुज्जर (जिन्हें गुर्जर के रूप में भी लिखा जाता है) और अहीर, उनसे थोड़ा आगे बढ़ रहे हैं, तो वह सार्वजनिक भावनाओं को जगाने के लिए धमाकेदार गीतों के साथ बीच में कूद पड़ते हैं.

राणा कहते हैं, ‘गुर्जरों ने विकास के लिए अपनी जमीन बेचकर आर्थिक रूप से काफी फायदा उठाया है, लेकिन उनके पास कोई सामाजिक पूंजी नहीं है. अपने सामाजिक कद को बढ़ाने के लिए वे अपने साथ हम क्षत्रियों को जोड़ते हैं. यह एक चलन बन गया है.’

जब गुर्जरों और राजपूतों के बीच इस बारे में तकरार हुई कि नौवीं शताब्दी के राजा मिहिर भोज ‘किस समुदाय’ के थे, तो राणा तुरंत हरकत में आ गये.

यह विवाद तब शुरू हुआ, जब दादरी के एक कॉलेज में योगी आदित्यनाथ ने एक ऐसी पट्टिका के साथ इस ऐतिहासिक पुरुष की प्रतिमा का अनावरण किया, जिसमें उन्हें ‘गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज’ के रूप में वर्णित किया गया था. बाद में, ‘गुर्जर’ शब्द को हटाने के लिए मूर्ति पर लिखा हुआ विवरण बदल दिया गया था लेकिन राणा ने इस मामले को यहीं रफा-दफा नहीं होने दिया. उन्होंने एक गीत जारी किया कि कैसे मिहिर भोज एक क्षत्रिय कुल में पैदा हुए थे और कैसे विद्वान लोग इस अन्याय के बारे में कुछ नहीं बोल रहे हैं.

उन्होंने कहा,  ‘मैं अपने गानों के जरिए इतिहास को सही करता हूं. भारत ने मुस्लिम शिक्षा मंत्रियों का कार्यकाल देखा है जिन्होंने हमारे राजाओं के नाम इतिहास से हटा दिए. इसलिए मैं उन्हें अपने गीतों के माध्यम से सामने लाता हूं.’

वे स्पष्ट रूप से उस बात से उत्तेजित हैं जिसे वह तथाकथित नीची जाति के समूहों द्वारा क्षत्रिय गौरव को हथियाने वाले प्रयासों के रूप में देखते हैं. वे कहते हैं, ‘मैं अपने गीतों के माध्यम से इतिहास को सही करता हूं. भारत ने मुस्लिम शिक्षा मंत्रियों के कार्यकाल को देखा है जिन्होंने हमारे राजाओं के नाम इतिहास से हटा दिए हैं. इसलिए मैं उन्हें अपने गीतों के माध्यम से सामने लाता हूं.’

‘बेशक, लड़ाई दोनों तरफ से होती है’

इस साल 1 जनवरी को राणा ने राजपूत योद्धा पोरस की वीरता पर एक गीत जारी किया. इसके एक हफ्ते बाद अहीर जाति के लोगों के एक समूह ने गौतम बौद्ध नगर के जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय में शिकायत दर्ज कराई कि राणा के यूट्यूब चैनल से इस गाने को हटा दिया जाए.

राणा कहते हैं कि उस समय पीछे पूरा ठाकुर समुदाय उनके पीछे लामबंद हो गया था.

इतिहास की दो किताबें जो यह बताती हैं कि पोरस वास्तव में एक राजपूत थे को निकालते हुए, राणा ने कहा, ‘मेरे खिलाफ यह मामला एक जांच की तरह था कि जरूरत पड़ने पर कौन मेरे साथ खड़ा होगा. पूरा क्षत्रिय समाज मेरे समर्थन में सामने आया. यहां तक कि दो निर्वाचित प्रतिनिधियों ने भी मुझे फोन किया और मुझसे पूछा कि क्या मुझे उनकी मदद की जरूरत है?’

पूर्व पत्रकार और लेखक दिलीप मंडल कहते हैं, ‘राजपूत अतीत को गौरवान्वित करने की यह तात्कालिक आवश्यकता इस वजह से है क्योंकि यह जाति अपने आप को आधुनिक बनाने की प्रक्रिया में हार गई है.’

इस बारे में समझाते हुए मंडल बताते हैं, ‘ब्राह्मणों के पास वैश्विक स्तर के सीईओ हैं, बनियों के पास आर्थिक ताकत है, लेकिन ठाकुरों के पास ऐसा कुछ भी नहीं है. ले दे के उनका अतीत ही उनका एकमात्र गौरव है… वर्तमान हालत इस समुदाय के लिए उतनी गौरवशाली नहीं है.’

वे कहते हैं, ‘उस गौरव और स्थिति को पुनः प्राप्त करने के लिए दी जा रही आवाज अधिक से अधिक तेज, अधिक से अधिक आक्रामक होती जा रही है.’

डीजे की थाप पर होने वाले युद्ध घोष

सीधी कार्रवाई और एकता दिखाने के लिए राणा के इस ‘तीखे और आक्रामक’ आह्वान ने उन्हें न केवल प्रशंसक, बल्कि चाहने वालों के रूप में ऐसे ‘पैदल सैनिक’ भी उपलब्ध कराएं है, जो उन्हें अपने ‘जागरण’ के लिए श्रेय देते हैं.

रिंकू राणा कहते हैं, ‘उपेंद्र भैया के गीतों ने राजपूत समाज को एकजुट किया है. उनके गीतों ने हमारे अंदर हमारे अतीत के बारे में यह जागरूकता लाई है… पहले राजपूत समाज को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी.’ उसके दोस्त भी उससे सहमत दिखते हैं.

राणा और उनके समर्थकों का सपना सिर्फ पट्टिकाओं या इतिहास की किताबों में राजपूतों के अनुकूल शब्द शामिल करवाना नहीं है, बल्कि एक ऐसे हिंदू राष्ट्र का है जहां क्षत्रिय योद्धा उठ खड़े होते हैं और ‘जिहादी’ दुश्मनों परास्त कर देते हैं- उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन्हें अपनी क्षमता का लोहा मनवाने लिए कोई आधुनिक अकबर या औरंगजेब खोजने की कड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है.

यदि कोई एक व्यक्ति है जिसमें उनकी ये सारी कल्पनाएं समाहित हैं, तो वह हैं योगी आदित्यनाथ हैं, जो अब राज्य में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में अपना दूसरा कार्यकाल शुरू करने के लिए तैयार हैं.

राणा कहते हैं कि वह राजनेताओं के बारे में गीत नहीं लिखते हैं, लेकिन योगी इसके अपवाद हैं. यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा को विजेता घोषित किए जाने के एक दिन बाद, 11 मार्च को,  राणा ने इस ठाकुर नेता पर एक गीत अपलोड किया, जिसने उनके यूट्यूब मेट्रिक्स में एक नया मील का पत्थर जोड़ा. गाने के रिलीज (अपलोड) होने के 24 घंटे के अंदर ही इसे दो लाख व्यूज मिल चुके हैं. उनका पिछला रिकॉर्ड 40,000 व्यूज का था.

राणा गर्व के साथ कहते हैं, ‘योगी ने दिखा दिया है कि केवल ठाकुर ही राज कर सकते हैं.’

राणा के अनुसार एक नौकरशाह, जिनका नाम उन्होंने नहीं बताने की शर्त रखी, ने उन्हें आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए लखनऊ ले जाने की पेशकश की थी. वे आगे कहते हैं, ‘मैंने उनसे पूछा कि क्या योगीजी ने मेरा वीडियो देखा है. यदि उन्होंने देखा है तो मेरी बैठक अधिक संतोषप्रद होगी और वो मुझे पहचान पाएंगे.’


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