ज्योतिष के लिए प्रेम, महिला उम्मीदवारों का भय – गौड़ा वंश अपनी एक अलग धुन में रहता है। लेकिन इस सबसे ऊपर इन्होंने अपने राजनीतिक अस्तित्व को पुनः प्राप्त करने की क्षमता का बार-बार प्रदर्शन किया है।
बेंगलुरु: एक दशक से अधिक समय से सत्ता से बाहर चल रहे और मात्र एक महीने पहले किंगमेकर की भूमिका निभाने की उम्मीदों को कायम रखते हुए अपना सर्वश्रेष्ट देने वाला दल जेडी(एस) एक बार फिर कर्नाटक में एक और सरकार में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभर कर सामने आया है।
बुधवार को एच.डी. कुमारस्वामी द्वारा मुख्यमंत्री का पद सँभालने के साथ यह तीसरी मर्तबा है जब जेडी(एस) 1999 में अपनी स्थापना के बाद से बड़ी-बड़ी पार्टियों के बीच न्यूनतम सीटें होने के बावजूद दक्षिणी राज्य में सरकार में प्रमुख भूमिका निभाएगी।
कुमारस्वामी का उन्नयन, कर्नाटक की राजनीति में देवगौड़ा वंश की प्रासंगिक रहने की क्षमता की दुबारा पुष्टि करता है। क्षेत्रीय दलों के लिए एक निर्मम राज्य में सत्ता का मार्ग ढूँढते समय, भाई-भतीजावाद के आरोपों को रद्द करते हुए, संकटपूर्ण मतदान प्रदर्शन पर काबू पाते हुए और लचीली विचारधारा के लिए आरोपित होते हुए, या कभी-कभी तो विचारहीनता के आरोपों के बावजूद परिवार ने पार्टी को एक साथ रखा है।
हालिया समय में कर्नाटक में कोई भी दल अपने आप को जेडी (एस) के बराबर प्रासंगिक रखने में कामयाब नहीं रहा है। करीबी समीक्षकों ने इसे जन्म-जात राजनीतिक अंतर्ज्ञान का गुण बताया है जो परिवार में एक वयोवृद्ध व्यक्ति से लेकर सबसे कम उम्र के सदस्य तक फैला हुआ है।
वरिष्ठ कांग्रेसी और पूर्व मंत्री रोशन बेग का कहना है कि इनका यह अंतर्ज्ञान इतना प्रबल है कि वे अनुमान लगा सकते हैं कि कब उन्हें सत्ता मिलेगी और कब नहीं मिलेगी। गौड़ा के करीबी पारिवारिक मित्र बेग उस समय को याद करते हैं जब उन्होंने 1996 में देवगौड़ा के प्रधानमंत्री बनने से पहले देवगौड़ा सरकार में एक मंत्री के रूप में कार्य किया था।
बेग ने दिप्रिंट को बताया कि “मैं उस समय ट्रेन में था जब देवगौड़ा ने मुझे बताया कि उनके बुरे दिन अब समाप्त हो गये हैं। मुझे आश्चर्य हुआ कि यह कहने से उनका क्या तात्पर्य था? उन्होंने कन्नड़ में यह भी कहा कि ‘हर एक डाली और हर एक पेड़’ उनका नाम दोहराएगा – देवगौड़ा, देवगौड़ा, देवगौड़ा।”
जल्द ही, गौड़ा प्रधानमंत्री बन गये। यद्यपि यह उनका अल्पकालीन कार्यकाल था जो सिर्फ 11 महीने चला और जिसने उन्हें ‘संयोगवश प्रधानमंत्री’ का अनचाहा नाम दिलवा दिया। इसने, कर्नाटक राज्य में दूसरे सबसे बड़े समुदाय वोक्कालिगा के प्रमुख नेता के रूप में उनकी स्थिति को दृढ़ता से पक्का कर दिया। इसने यह भी सुनिश्चित कर दिया कि उनके नाम का उल्लेख किये बिना कर्नाटक की राजनीति पर कोई बातचीत नहीं होगी।
दूरदृष्टि रखने वाला एक ‘विनम्र किसान’
एक स्व-निर्मित व्यक्ति, ‘विनम्र किसान’ की छवि वाले देवगौड़ा सफलता की एक-एक सीढ़ी चढ़कर इस मुकाम तक पहुंचे हैं। उनका पहला राजनीतिक प्रयास पंचायत स्तर पर शुरू हुआ था और आज वह राज्य में फिर से किंगमेकर के रूप में आसीन हैं। यह एक अलग बात है कि इस बार उनका पुत्र ही राजा बना है।
सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा रखने वाले देवगौड़ा ने 1953 में कांग्रेस में शामिल होने से पहले अपने मूल स्थान हर्दनहल्ली पर अपनी छाप छोड़ी। वह बाद में कांग्रेस का हिस्सा थे और आपातकाल के दौरान जेल की सजा काटी थी।
80 के दशक के अंत में देवगौड़ा जनता दल में शामिल हो गये जब कर्नाटक में पार्टी की कमान रामकृष्ण हेगड़े के हाथों में थी। 1996 में प्रधानमंत्री पद की सीमित कार्यावधि के बाद जेडी(एस) की स्थापना के लिए 1999 में वह पार्टी से अलग हो गए। तब से, उनकी पार्टी राज्य में प्रासंगिक रही है। हर बार मतदान सर्वेक्षक इसे ख़ारिज कर देते हैं, हर बार यह उठ कर खड़ी हो जाती है।
अपने सभी चुनावी निर्णयों के लिए, गौड़ा उत्साहपूर्वक ज्योतिषियों से परामर्श करने के लिए जाने जाते हैं और आज तक ऐसा कहा जाता है कि उनके घर में उनकी हरी झंडी के बिना कुछ भी शुरू नहीं होता है।
इस जूनून ने गौड़ा परिवार के एक अनोखे गुण को जन्म दिया है जिसकी उत्पत्ति 2004 विधानसभा चुनावों में हुई थी। गौड़ा वंश चुनाव में महिला प्रतिद्वंदियों से सावधान है। यह तब शुरू हुआ जब देवगौड़ा, कनकपुरा में कांग्रेस के डी.के. शिवकुमार द्वारा समर्थित एक पूर्व क्षेत्रीय टेलीविज़न पत्रकार तेजस्विनी श्रीरमेश द्वारा अपमानित किए गये थे। ऐसा कहा जाता है कि ज्योतिषियों ने तब से परिवार के सदस्यों से ‘महिला कारक’ से गंभीरतापूर्वक सतर्क रहने के लिए कहा है।
लेकिन वहां एक महिला ही हैं जिन्होंने परिवार को एक साथ जोड़ रखा है। देवगौड़ा की पत्नी चेन्नम्मा ने राजनीति से दूर रहते हुए यह सुनिश्चित किया है कि परिवार अच्छे या बुरे समय में एक साथ रहे।
2001 में कथित तौर पर उन पर उनके एक रिश्तेदार लोकेश द्वारा तेजाब से हमला किया गया था, जो उनके परिवार से बदला लेना चाहता था। चेन्नम्मा और उनकी बहू हर्दनहल्ली के एक मंदिर में थीं जब प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार नंदी की मूर्ति के सामने बहाना बनाकर दंडवत लेटे लोकेश ने कथित तौर पर तेजाब से भरा हुआ एक पात्र निकाला और उनके सिरों पर उड़ेल दिया। देवगौड़ा पूजा में उपस्थित नहीं थे जबकि ऐसा वे कभी नहीं करते हैं।
जैसा पिता वैसा पुत्र
देवगौड़ा के चार बेटों और दो बेटियों में से केवल दो ने अपने पिता का राजनीतिक लबादा ओढ़ा है। जहाँ एच.डी. कुमारस्वामी अधिक प्रसिद्द हैं वहीं देवगौड़ा के दूसरे बेटे एच.डी. रेवन्ना का राजनीतिक करियर है जिसमें उनके पिता की छाया दिखाई देती है।
रेवन्ना ने भी जमीनी स्तर से शुरुआत की थी। 1994 में होलेनरसीपुरा विधानसभा सीट जीतने से पहले 80वें दशक के अंत में उन्होंने जिला परिषद के चुनाव लड़े थे। हालाँकि 1999 में उन्हें वहां शिकस्त मिली जो उस निर्वाचन क्षेत्र में उनकी पहली हार थी।
रेवन्ना को एक आज्ञाकारी बेटे के रूप में भी जाना जाता है। यह उनके पिता का अनुरोध था कि उन्होंने 2004 के विधानसभा चुनावों में कुमारस्वामी के लिए जगह बनाई थी। उस वर्ष जेडी(एस), कांग्रेस के मुख्यमंत्री धरम सिंह के नेतृत्व में सरकार का एक हिस्सा थी।
होलेनरसीपुरा के एक स्थानीय नेता नंदीश गौड़ा ने कहा कि “यदि देवगौड़ा रेवन्ना से लक्ष्मण रेखा को पार न करने के लिए कहते हैं, तो वह कभी इसे पार नहीं करेंगे।” 2004 में राज्य लोक निर्माण विभाग मंत्री बनाकर रेवन्ना को उनके धैर्य के लिए पुरस्कृत किया गया था।
उनकी पत्नी भवानी ने भी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को बरकरार रखा। उन्होंने 2016 में शुरुआत की और हासन जिला पंचायत चुनाव जीता लेकिन उनके ससुर ने उन्हें 2018 के विधानसभा चुनावों के लिए टिकट देने से इंकार कर दिया।
पारिवारिक नगर हासन से अपने बेटे प्रज्वल को टिकट देने से मना करने के कारण भवानी की उनके देवर कुमारस्वामी के साथ बहस हो गई। कुमारस्वामी ने महसूस किया कि जूनियर गौड़ा को कार्यकर्ता स्तर से अपना रास्ता बनाना चाहिए। ऐसा लगता है कि परिवार ने झगड़े को हल कर लिया है और देव गौड़ा अब 2019 के लोकसभा चुनावों में प्रज्वल के भव्य प्रवेश की तैयारी कर रहे हैं।
समय को समझने वाला व्यक्ति
जेडी (एस) प्रमुख के बच्चों में कुमारस्वामी उनके तीसरे बेटे हैं, जो उनके चुने हुए राजनीतिक उत्तराधिकारी मालूम पड़ते हैं। उन्हें अपने पिता के साथ अपना रास्ता तय करने के लिए जाना जाता है, कई लोग कहते हैं कि राजनेता के रूप में कुमारस्वामी के तेजोमय उदय के पीछे उनका महत्वाकांक्षी, राजनीतिक रूप से चतुर और गणनात्मक मस्तिष्क है।
भूतपूर्व फिल्म निर्माता, कुमारस्वामी ने अपनी राजनीतिक शुरुआत में 1996 में कनकपुरा लोकसभा सीट जीती थी। ऐसा कहा जाता है कि आम चुनावों के दौरान देवगौड़ा को उस सीट से खड़ा करने के लिए कोई पर्याप्त सक्षम व्यक्ति नहीं मिल सका था। कुमारस्वामी पहले से ही अपने पिता और बड़े भाई रेवन्ना के साथ मिलकर काम कर रहे थे। पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ उनका संपर्क और उनकी प्रतिभा देवगौड़ा की नजरों में चढ़ गई और उन्होंने उन्हें मैदान में उतारने का फैसला कर लिया।
कुमारस्वामी के चतुर राजनीतिक कौशल प्रदर्शन को देखकर 2006 में उनके पिता ने उन्हें जेडी (एस) प्रमुख नियुक्त किया। उन्होंने कांग्रेस गठबंधन की सरकार से अपने पार्टी विधायकों को बाहर निकाला और बीजेपी की मदद से मुख्यमंत्री बन गये।
कुमारस्वामी की पत्नी अनीता भी राजनेता हैं, लेकिन संयोग से। उन्होंने शुरुआत में अपने पति के फिल्म और सिनेमा हॉल के व्यवसाय को संभाला लेकिन 1996 में चुनाव अभियान में भी उनका साथ दिया। अनीता को देवगौड़ा के करीब माना जाता है, क्योंकि कुमारस्वामी ने कथित तौर पर 2006 में कन्नड़ अभिनेत्री राधिका से दूसरी शादी कर ली थी।
इस शादी को अदालत में चुनौती दी गई थी, लेकिन साक्ष्य की कमी के चलते यह मामला रद्द कर दिया गया। पूरे झगड़े ने अनीता को देवगौड़ा के करीब ला दिया, जिन्होंने महसूस किया कि उनके बेटे ने अपनी पहली पत्नी के साथ ठीक नहीं किया।
अनीता ने 2008 में राजनीति की शुरुआत की जब उन्होंने मधुगिरि विधानसभा क्षेत्र से उप-चुनाव जीता। हालांकि उन्हें 2013 के राज्य चुनावों में और 2014 के लोकसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। रामनगरम से अपने पति की दूसरी सीट से अब उनके चुनाव लड़ने की उम्मीद है, जहाँ शीघ्र ही चुनाव होंगे।
अनीता के बेटे निखिल गौड़ा कर्नाटक में एक फिल्म स्टार हैं जिन्होंने अपनी पहली फिल्म की सफलता के बाद जैगुआर निखिल का उपनाम अर्जित किया है।
स्पॉटलाइट से दूर
देवगौड़ा के अन्य बच्चे राजनीतिक कीड़े के दंश से प्रभावित नहीं हैं। उनके सबसे बड़े पुत्र, एच.डी. बालकृष्ण गौड़ा कर्नाटक प्रशासनिक सेवा (केएएस) में अधिकारी थे जिनको सेवानिवृत्त होने से पहले आईएएस कैडर में पदोन्नत किया गया था। यद्यपि वह पूरी तरह गैर-राजनीतिक बने रहे हैं और यह सुनिश्चित किया है कि उनका परिवार भी राजनीति से दूर रहे, हालांकि उनके पिता और उनके भाई राजनीतिक मामलों पर उनसे सलाह लेते हैं।
दो बेटियों में से पहली, अनुसूया जिनका विवाह मशहूर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. सी.एन. मंजूनाथ से हुआ जो कि जयदेव इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोवैस्कुलर साइंसेज के निदेशक भी हैं और यह अस्पताल बेंगलुरु के शीर्ष अस्पतालों में से एक है। दूसरी बेटी शैलजा का विवाह आर्थोपेडिक सर्जन डॉ एचएस चंद्रशेखर से हुआ है। वे भी राजनीतिक चमक से दूर रहे हैं।
परिवार में सबसे साधारण सदस्य उनके सबसे छोटे भाई डॉ. एच.डी. रमेश, एक रेडियोलॉजिस्ट हैं जो बेंगलुरू के पद्मनाभनगर में देवगौड़ा हास्पिटल नाम का एक फैमली नर्सिंग होम चलाते है।
यह अस्पताल बेंगलुरु में उनके परिवार की ताकत का प्रतीक है। यह शहर में एक बड़ा लैंडमार्क है जो परिवार को आश्रय देता है और परिवार द्वारा संचालित देवगौड़ा के पेट्रोल पम्प से आधे किलोमीटर की दूरी पर है।
Read in English: Superstitious & suspicious of women rivals: Meet the Gowda family back on top in Karnataka