नयी दिल्ली, 16 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि ‘एक रैंक-एक पेंशन’ (ओआरओपी) से संबंधित भगत सिंह कोश्यारी समिति की रिपोर्ट राज्यसभा में पेश की गयी थी और इस ‘‘रिपोर्ट को सरकारी नीति के बयान के रूप में लागू नहीं किया जा सकता है।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसा कोई कानूनी आदेश नहीं है कि समान रैंक वाले पेंशनभोगियों को उतनी ही पेंशन दी जाए।
न्यायालय ने रक्षा बलों में ओआरओपी देने का केंद्र का फैसला बरकरार रखा है।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा, ‘‘अब यह समझने की जरूरत है कि कोश्यारी समिति की रिपोर्ट याचिका समिति द्वारा राज्यसभा को सौंपी गई एक रिपोर्ट है। रिपोर्ट को सरकारी नीति के बयान के रूप में लागू नहीं किया जा सकता है।’ पीठ ने कहा कि केंद्र द्वारा तीन रक्षा बलों के प्रमुखों को भेजे गए सात नवंबर, 2015 के पत्राचार को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि यह केंद्र सरकार द्वारा तैयार की गई नीति के मूल इरादे के विपरीत है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि भगत सिंह कोश्यारी समिति की रिपोर्ट, 10 दिसंबर, 2011 को राज्यसभा में पेश की गई थी और यह ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, मांग का कारण, संसदीय समिति के दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती है, जिसने सशस्त्र बलों से संबंधित कर्मियों के लिए ओआरओपी को अपनाने का प्रस्ताव रखा था और इसके अलावा, रिपोर्ट को सरकारी नीति के एक बयान के रूप में नहीं माना जा सकता है।
न्यायालय ने यह माना कि संघ द्वारा अनुच्छेद 73 या राज्य द्वारा अनुच्छेद 162 के संदर्भ में तैयार की गई सरकारी नीति को सरकार के नीति दस्तावेजों से आधिकारिक रूप से आंका जाना है, जो वर्तमान मामले में सात नवंबर, 2015 का पत्राचार है।
उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला ‘इंडियन एक्स-सर्विसमेन मूवमेंट’ (आईईएसएम) द्वारा वकील बालाजी श्रीनिवासन के माध्यम से ओआरओपी के केंद्र के फार्मूले के खिलाफ दायर याचिका पर आया।
न्यायालय ने केंद्र द्वारा अपनाए गए ‘वन रैंक-वन पेंशन’ (ओआरओपी) सिद्धांत को बरकरार रखते हुए कहा कि इसमें न तो कोई ‘‘संवैधानिक दोष’’ है औ न ही यह ‘‘मनमाना’’ है।
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देवेंद्र अनूप
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