बेंगलुरु: हिजाब पर पाबंदी के मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश ने राज्य के मुस्लिम संगठनों को निराश कर दिया है. कर्नाटक हाई कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने मंगलवार को अपने फैसले में कहा कि हिजाब पहनना इस्लाम में धार्मिक प्रथाओं का अभिन्न हिस्सा नहीं है. और इसके साथ ही कोर्ट ने कक्षाओं में धार्मिक कपड़े पहनकर आने पर प्रतिबंध लगाने वाले सरकारी आदेश को बरकरार रखा.
याचिका दायर करने वाले छात्रों के वकील जहां प्रतिबंध के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की तैयारी कर रहे हैं, वहीं, कर्नाटक सरकार ने छात्रों से ‘फैसले का सम्मान करने’ और कक्षाओं में लौटने का अनुरोध किया है.
गौरतलब है कि मुस्लिम छात्राओं की तरफ से हिजाब पहनने का अधिकार देने की मांग करने और हिंदू संगठनों द्वारा इसके खिलाफ प्रदर्शन किए जाने से गत फरवरी में कर्नाटक में हिंसक घटनाएं भड़क उठी थीं, जिससे कई जिलों में जिला प्रशासन को निषेधाज्ञा लागू करने और स्कूल-कॉलेजों को बंद करने बाध्य होना पड़ा था.
हाई कोर्ट की तरफ से मंगलवार को अपना फैसला सुनाए जाने के बाद मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने स्टूडेंट्स से कॉलेजों लौटने की अपील की. बोम्मई ने कहा, ‘हाई कोर्ट ने यूनिफॉर्म को बरकरार रखा है और कहा है कि हिजाब किसी आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है. यह हमारे बच्चों के भविष्य और शिक्षा का सवाल है. बच्चों के लिए शिक्षा से बढ़कर कुछ भी नहीं है. तीन न्यायाधीशों की बेंच के आदेश का पालन होना चाहिए और हमें इसे लागू करना चाहिए. इसमें सभी को सहयोग करना चाहिए और शांति बनाए रखनी चाहिए.’
कर्नाटक के प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मंत्री बी.सी. नागेश ने भी जोर देकर कहा कि कर्नाटक शिक्षा अधिनियम में किसी तरह की कमियों और विरोधाभासों को हाई कोर्ट के आदेश के आधार पर दूर किया जाएगा.
नागेश ने कहा, ‘सालों से हम यही जानते हैं कि यूनिफॉर्म छात्रों के बीच राष्ट्रवादी मानसिकता विकसित करने में सहायक होती है. बच्चों को इस देश का नागरिक होने का एहसास दिलाने में यूनिफॉर्म अहम भूमिका निभाती है. इसके खिलाफ जिन छात्राओं को गुमराह किया गया था, उनकी काउंसलिंग की जाएगी. हमारी अपील है कि वे स्कूल-कॉलेजों में लौटें और अपनी शिक्षा जारी रखें.’
इस बीच, कर्नाटक के गृह मंत्री अरागा ज्ञानेंद्र ने हाई कोर्ट के आदेश को ‘ऐतिहासिक’ करार दिया है. फैसले के बाद लोगों से शांति बनाए रखने की अपील करते हुए ज्ञानेंद्र ने संवाददाताओं से कहा, ‘इस फैसले ने छात्राओं के लिए शिक्षा के अधिकारों को बरकरार रखा है.’
राज्य के महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने भी गृह मंत्री की राय से सहमति जताते हुए फैसले को ‘ऐतिहासिक’ बताया, और कहा कि ‘कोर्ट ने माना है कि संस्थागत अनुशासन व्यक्तिगत पसंद से ऊपर है.’
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हालांकि, मुस्लिम संगठनों ने हाई कोर्ट के फैसले को ‘बेहद निराशाजनक’ करार दिया है. उडुपी के तमाम मुस्लिम संगठनों के संयुक्त मोर्चा उडुपी मुस्लिम ओक्कुटा के अध्यक्ष इब्राहिम साहिब कोटा ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम इस्लाम में हिजाब के गैर-जरूरी होने को लेकर कोर्ट की गलतफहमी से बहुत आहत हैं. यह फैसला बेहतर भविष्य की उम्मीद में पढ़ाई कर रही हजारों मुस्लिम छात्राओं के लिए प्रतिकूल साबित होगा. कोर्ट का आदेश हमारे बच्चों के लिए एक झटका है, लेकिन हमने न्यायपालिका में अपना भरोसा नहीं खोया है.’
इस मामले में याचिकाकर्ता उडुपी महिला पीयू (प्री यूनिवर्सिटी) कॉलेज की छात्राएं हैं, और उन्होंने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
Met my clients in Hijab matter in Udupi. Moving to SC soon In sha Allah. These girls will In sha Allah continue their education while exercising their rights to wear Hijab. These girls have not lost hope in Courts and Constitution.#Hijab pic.twitter.com/MFVJkQGj5T
— Anas Tanwir (बुकरात वकील) (@Vakeel_Sb) March 15, 2022
एक याचिकाकर्ता के वकील अभिषेक जनार्दन ने कहा, ‘हाई कोर्ट ने कहा है कि हिजाब पहनना आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है जिसे संविधान के अनुच्छेद 25 या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता 19 (1) (ए) के तहत संरक्षित माना जाए. हमें उनकी तरफ से दिए गए तर्क को समझना होगा और फिर अपना अगला कदम तय करना होगा.’
इस बीच, इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की छात्र इकाई कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, जो कानूनी लड़ाई में याचिकाकर्ताओं की मदद कर रही थी, ने फैसले को संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने वाला करार दिया है. सीएफआई अध्यक्ष एम.एस. साजिद ने गुरुवार को ट्वीट कर कहा, ‘कर्नाटक हाई कोर्ट ने नागरिकों को संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया है. हम ऐसे फैसले को कभी स्वीकार नहीं करेंगे जो संविधान के खिलाफ है और व्यक्तिगत अधिकारों के दमन के प्रयासों के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेंगे. हम धर्मनिरपेक्ष लोगों से इस संवैधानिक लड़ाई में शामिल होने की अपील करते हैं.’
Karnataka HC denies the constitutional rights of the citizens. We never accept the verdict that stands against the constitution and will continue the fight against the attempts to suppress individual rights. We appeal to the secular-minded to join this constitutional fight.
— MS Sajid (@SajidbinSayed) March 15, 2022
हाई कोर्ट के फैसले के बाद संभावित गड़बड़ियों की आशंका को देखते हुए कर्नाटक के विभिन्न जिलों में निषेधाज्ञा लागू कर दी गई है और कम से कम छह जिलों में स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए हैं.
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