नयी दिल्ली, 11 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को अपने पूर्व न्यायाधीश ए. के. सीकरी को उच्चाधिकार प्राप्त उस समिति (एचपीसी) का अध्यक्ष नियुक्त किया, जो पूरी हिमालयी घाटी पर चारधाम परियोजना के प्रभाव के बारे में विचार करेगी।
न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने समिति के अध्यक्ष पद से प्रोफेसर रवि चोपड़ा का इस्तीफा मंजूर कर लिया। उन्होंने जनवरी में पत्र लिखकर यह पद छोड़ने की इच्छा जतायी थी।
रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चारधाम परियोजना के तहत 12 हजार करोड़ रुपये खर्च करके चार पवित्र शहरों यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को जोड़ने के लिए सदबहार सड़क बनायी जानी है।
केंद्र की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कहा कि चूंकि यह अदालत न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सीकरी को चारधाम परियोजना से जुड़ी पर्यावरण संबंधी चिंताओं और अन्य मुद्दों पर विचार करने के लिए गठित निगरानी समिति का अध्यक्ष नियुक्त कर चुकी है तो यह बेहतर होगा कि उन्हें उच्चाधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष के तौर पर नियुक्त कर दिया जाए।
पीठ इस सुझाव पर राजी हो गयी और न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सीकरी को एचपीसी का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया।
चोपड़ा को शीर्ष न्यायालय ने आठ अगस्त 2019 को एचपीसी का अध्यक्ष नियुक्त किया था।
न्यायालय ने पिछले साल 14 दिसंबर को उत्तराखंड में सामरिक रूप से महत्वपूर्ण चारधाम राजमार्ग परियोजना के दोहरी लेन चौड़ीकरण की मंजूरी दी थी और कहा था कि देश की सुरक्षा चिंताएं वक्त के साथ बदल सकती हैं और हाल फिलहाल में देश की गंभीर सुरक्षा चुनौतियां सामने आयी हैं।
शीर्ष न्यायालय ने न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सीकरी की अध्यक्षता में निगरानी समिति गठित करते हुए कहा था, ‘‘न्यायिक समीक्षा की इस कवायद में अदालत सशस्त्र बलों की ढांचागत आवश्यकताओं का अनुमान नहीं लगा सकती।’’
यह समिति चीन के साथ लगने वाली सीमा पर इस महत्वाकांक्षी 900 किलोमीटर की परियोजना पर सीधे न्यायालय को जानकारी देगी।
सर्वोच्च अदालत के समक्ष इसके पहले केंद्र सरकार ने दलील दी थी कि यदि सेना अपने मिसाइल लांचर और भारी मशीनरी को उत्तरी भारत-चीन सीमा तक नहीं ले जा सकती, तो वह सरहद की हिफाजत कैसे करेगी। यह भी तर्क दिया था कि अगर सड़क टूट जाती है, तो सेना युद्ध कैसे लड़ेगी।
भाषा संतोष माधव
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