नई दिल्ली: बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) का पूरे उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड में सफाया हो गया है. पार्टी सुप्रीमो मायावती, जिन्होंने पहले कहा था कि बीएसपी को उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत मिलेगा, दोपहर 12.15 बजे तक के चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, पार्टी यूपी में केवल 5 सीटों, पंजाब में शून्य,और उत्तराखंड में 2 सीटों पर आगे चल रही है.
यूपी में पार्टी का प्रदर्शन, जहां पश्चिमी और पूर्वी हिस्सों में इसका एक मज़बूत आधार माना जाता है, 2017 के विधान सभा चुनावों में इसके प्रदर्शन से काफी दूर है, जब उसने 19 सीटें जीतीं थीं और उसका वोट शेयर 22.3 प्रतिशत रहा था.
यूपी में पिछले कुछ चुनावों में, बीएसपी के प्रदर्शन में गिरावट ही आई है. पार्टी ने 2007 में राज्य में सरकार बनाई थी, जब उसे 403 में से 206 सीटें मिलीं थीं. लेकिन उसके बाद से उनका सीट शेयर गिरता रहा है, और पार्टी को 2012 में 80 सीटें, 2017 में 19, और अब 2022 में उससे भी कम सीटें मिली हैं.
पंजाब में, पार्टी हमेशा से नाकाम ही रही है, और 1997 से उसने राज्य विधानसभा में एक भी सीट नहीं जीती है. 2017 के असेम्बली चुनावों में, उसे 1.52 प्रतिशत वोट शेयर मिला था. इस बार शिरोमणि अकाली दल के साथ इसके गठबंधन से, एक बेहतर प्रदर्शन की उम्मीदें जगी थीं, लेकिन बीएसपी को अभी तक 1.92 प्रतिशत वोट शेयर ही मिल पाया है.
2017 के उत्तराखंड असेम्बली चुनावों में, पार्टी को 6.99 प्रतिशत वोट शेयर मिला था, जो अब तक घटकर 4.78 प्रतिशत पर आ चुका है. फिलहाल राज्य विधान सभा में शून्य सीटों के बाद, बीएसपी इस बार अपना खाता खोल सकती है. (लंबित अंतिम नतीजे).
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उत्तर प्रदेश में पार्टी के प्रदर्शन का विश्लेषण करते हुए, राजनीतिक विश्लेषक और विद्वान सुधा पई ने समझाया, कि ये नतीजे राज्य में बीएसपी के पतन को दर्शाते हैं, जहां वो कभी आसानी के साथ 20 प्रतिशत वोट शेयर हासिल करती थी. अब दोपहर 12.15 बजे तक पार्टी का वोट शेयर गिरकर 12.86 प्रतिशत पर आ गया है.
पई ने कहा, ‘इस वोट प्रतिशत के साथ ये एक स्पष्ट संकेत है, कि जाटव बीएसपी का साथ छोड़ रहे हैं. बीएसपी अच्छा नहीं कर रही है और पतन की ओर अग्रसर है, चूंकि ये अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है. लेकिन, मैं पार्टी को इतनी जल्दी ख़ारिज नहीं करूंगी’.
पई ने समझाया कि मतदाताओं के बीच एक धारणा है कि बीएसपी कमज़ोर हो गई है, इसलिए बेहतर है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का रुख़ कर लिया जाए. उन्होंने संकेत दिया कि बहुत से बीएसपी वोट बीजेपी को चले गए. उन्होंने आगे समझाया कि नक़द कल्याण योजनाएं बीजेपी के लिए फायदेमंद रही हैं, क्योंकि हाशिए के अधिकांश दलित मतदाता सबसे ग़रीब हैं, और उन्हें नक़दी की ज़रूरत है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पहले एक इंटरव्यू में कहा था, कि बीएसपी अभी भी यूपी में एक प्रासंगिक पार्टी है, और उसे मुसलमानों तथा जाटवों के काफी वोट मिलेंगे.
इसका अर्थ निकालते हुए पई ने कहा, कि हालांकि मायावती अभी भी सूबे की एक बड़ी नेता हैं, लेकिन यूपी में कोई प्रदेश-व्यापी बीएसपी आंदोलन नहीं है, और पश्चिमी तथा पूर्वी यूपी में बहुत से छोटे दलित समूह अपने पैर जमा रहे हैं. भले ही फिलहाल वो कामयाब न रहें, लेकिन अंत में वो मायावती की जगह ले सकते हैं.
‘BSP कभी भी UP के बाहर के दलितों को नहीं समझ पाई’
यूपी के विपरीत, जहां बीएसपी ने एक बार सरकार बनाई है, और अतीत में एक मुख्य भूमिका में रही है, पंजाब में उसका अस्तिव हमेशा ना के बराबर रहा है, जहां उसने आख़िरी बार 1992 में, एक विधान सभा सीट जीती थी.
पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रो. राजीव लोचन ने समझाया, कि इसके पीछे का कारण ये था कि पंजाब का अपना दलित आंदोलन है, और दूसरे, सूबे में जाति विभाजन नाम की चीज़ नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘अगर पार्टी खुद को एक दलित पार्टी के तौर पर पेश करती है, तो सूबे में उसका कोई भविष्य नहीं है. लोग हमेशा से बीएसपी के प्रति उदासीन रहे हैं, और पार्टी पूरी तरह अप्रासंगिक है. पंजाब की राजनीतिक में निभाने के लिए उसकी कोई भूमिका नहीं है’.
ये समझाते हुए कि बीएसपी पंजाब में हमेशा नाकाम क्यों रही है, उसी यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर आशुतोष कुमार ने कहा, कि मायावती ने पंजाब में बीएसपी के भीतर, किसी नेता को कभी उभरने नहीं दिया.
उन्होंने कहा, ‘पंजाब में, आप किसी एक समुदाय को सनसनीख़ेज़ नहीं बना सकते, चूंकि एससी समुदाय के भीतर भी लोग बटे हुए हैं, केवल जाति के आधार पर ही नहीं, बल्कि धर्म के आधार पर भी’.
पंजाब और उत्तराखंड में बीएसपी के ख़राब प्रदर्शन का अर्थ नकालते हुए पई ने कहा: ‘बीएसपी कभी भी यूपी से बाहर, दलितों को समझने में कामयाब नहीं रही है’.
उत्तराखंड में, पार्टी 2 सीटों पर आगे चल रही है, जिसका कारण पई ने ये बताया कि राज्य की आबादी में ब्राह्मण बड़ी संख्या में हैं, इसलिए राजनीतिक शासन उन्हीं की सियासत पर आधारित था, जिसे पहले कांग्रेस ने कब्ज़ाया हुआ था, और अब वो बीजेपी के पाले में हैं.
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