कोलकाता, 10 मार्च (भाषा) तिब्बत पर चीनी ‘आक्रमण’ और भारत की सीमा में उसकी ‘घुसपैठ’ के खिलाफ बृहस्पतिवार को यहां चीन के वाणिज्य दूतावास के बाहर तिब्बतियों और भारतीय नागरिकों ने विरोध प्रदर्शन किये।
सेंट्रल तिब्बत ऑर्गेनाइजेशन के हिस्से के तौर पर इंडो-तिब्बतन कोऑर्डिनेशन ऑफिस (आईटीसीओ) के नेतृत्व में प्रदर्शनकारियों ने तिब्बती और भारतीय झंडे लहराकर विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों के हाथों में दलाई लामा की तस्वीरें भी थीं। एक समय ऐसा था जब यहां पचास साल पहले चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष माओ से-तुंग की प्रशंसा में दीवारों पर नारे लिखे होते थे।
प्रदर्शन ऐसे समय पर हो रहे हैं जब ल्हासा में 1959 में चीनी हमले के खिलाफ तिब्बतियों के विरोध की वर्षगांठ भी है। गौरतलब है कि चीनी हमले के कारण दलाई लामा और उनके अनगिनत अनुयायियों को भागकर भारत में शरण लेना पड़ा था।
आईटीसीओ के समन्वयक जिग्मे त्सुलत्रिम ने कहा, ‘‘हम चाहेंगे कि भारत, तिब्बत को मान्यता दे। यह स्वतंत्र देश था और ‘दुनिया की छत’ के नाम से मशहूर यह देश पीएलए द्वारा कब्जे में लिये जाने तक भारत और चीन के बीच प्रतिरोधक देश (बफर स्टेट) की भूमिका निभाता था।’’
आईटीसीओ के पूर्वी क्षेत्र की संयोजक रुबी मुखर्जी ने लद्दाख एवं अरुणाचल प्रदेश में चीनी सेना की घुसपैठ के बढ़ते मामलों का उल्लेख करते हुए कहा कि ये घुसपैठ दोनों एशियाई महाशक्तियों (भारत और चीन) के बीच ‘बफर स्टेट’ की आवश्यकता को प्रदर्शित करती हैं।
उन्होंने तिब्बतियों को आधिकारिक तौर पर शरणार्थी का दर्जा दिये जाने और दलाई लामा को भारत रत्न से सम्मानित करने की भी मांग की।
मुखर्जी ने कहा कि भारत को तिब्बत के मामलों की निगरानी के लिए उसी तरह एक मंत्री नियुक्त करने पर विचार करना चाहिए, जैसा हाल ही में अमेरिका ने किया है।
सम्पर्क किये जाने पर चीन के वाणिज्य दूतावास के अधिकारियों ने प्रदर्शन को लेकर कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया।
भाषा
सुरेश मनीषा
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