नई दिल्ली: पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों ने कांग्रेस को उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां उसके लिए आत्मनिरीक्षण करना बेहद जरूरी हो गया है, क्योंकि पार्टी को चार राज्यों में हार का मुंह देखना पड़ा है, जिसमें वह एक प्रमुख दावेदार हुआ करती थी.
पार्टी नेतृत्व खासकर पंजाब में प्रदर्शन को देखते हुए साल के अंत में दो राज्यों- गुजरात और हिमाचल प्रदेश- के विधानसभा चुनावों के साथ-साथ 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर भी रणनीतिक बदलाव पर विचार कर सकता है.
पंजाब में, जहां कांग्रेस सत्ता में थी, आंतरिक कलह के एक लंबे दौर के बाद यह पार्टी आम आदमी पार्टी (आप) से हार गई.
कांग्रेस की राज्य इकाई के भीतर असंतोष उस समय खुलकर सामने आया जब गांधी भाई-बहन राहुल और प्रियंका तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की बजाये नवजोत सिंह सिद्धू के समर्थन में खड़े नजर आए. यह टकराव उस समय जाकर ही थोड़ा थमा जब चुनाव के लिए पार्टी के चेहरे के तौर पर सिद्धू की जगह अमरिंदर के उत्तराधिकारी चरणजीत सिंह चन्नी को चुना गया.
कांग्रेस नेताओं ने दिप्रिंट से कहा कि पार्टी आलाकमान के फैसलों पर उन वरिष्ठ नेताओं की तरफ से सवाल खड़े किए जाएंगे, जिन्होंने उस समय इसका विरोध किया था. लेकिन साथ ही जोड़ा कि पार्टी और उसकी निर्णय लेने प्रक्रिया पर गांधी भाई-बहन की पकड़ घटने की संभावना नहीं है.
विधानसभा चुनावों के नतीजे ऐसे समय आए हैं जब पार्टी कथित तौर पर राहुल गांधी की पार्टी अध्यक्ष के तौर पर वापसी पर विचार कर रही है, जिन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद यह पद छोड़ दिया था.
विश्लेषकों का कहना है कि यदि कांग्रेस 2024 में भाजपा को हराने के लिए वाकई कोई गंभीर प्रयास करना चाहती है तो सबसे पहले तो उसे इस सवाल का जवाब तलाशना होगा कि 2024 में पार्टी का मोर्चा कौन संभालेगा, खासकर तब जबकि क्षेत्रीय खिलाड़ियों के बीच भी प्रमुख विपक्षी दल की जगह हासिल करने की होड़ लगी हुई है.
यह बेहद महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि जिन राज्यों में कांग्रेस विधानसभा स्तर पर नाकाम रही है, वहां वह राष्ट्रीय चुनावों में एक विकल्प के तौर पर उभरने में भी विफल है.
राजनीतिक विश्लेषक और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च नीलांजन सरकार ने दिप्रिंट से कहा, ‘कांग्रेस का जनाधार सिकुड़ रहा है. जहां राज्य स्तर पर इसकी मौजूदगी नहीं है, वहां राष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी कुछ खास संभावनाएं नहीं हैं.’
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पंजाब के नतीजों का संभावित असर और अन्य राज्यों में कैसी होगी आगे की राह
पंजाब में हार के बाद कांग्रेस अब केवल दो राज्यों-राजस्थान और छत्तीसगढ़- में अपने दम पर सत्ता में है और तीन राज्यों महाराष्ट्र, तमिलनाडु और झारखंड की सरकारों में गठबंधन सहयोगी है.
पार्टी नेताओं ने मानना है कि पंजाब की हार के बाद अमरिंदर की तुलना में सिद्धू को तरजीह देने के हाईकमान के फैसले पर पार्टी के अंदर ही सवाल उठाने वाले नेता अब एक बार फिर पार्टी के भीतर और बाहर दोनों जगह अपनी असहमति जता सकते हैं.
चुनाव से पहले ही पंजाब से सांसद मनीष तिवारी जैसे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने राज्य की स्थिति संभालने के लिए उठाए गए कदमों को लेकर आलाकमान के साथ अपने मतभेद जाहिर कर दिए थे. तिवारी ने यह सवाल भी उठाया था कि कांग्रेस के पंजाब के नेता यूक्रेन में फंसे राज्य के छात्रों की मदद क्यों नहीं कर रहे हैं.
फरवरी में सुनील जाखड़, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर जिनकी जगह सिद्धू ने ले ली थी, ने कहा था कि वह चुनावी राजनीति छोड़ रहे हैं, लेकिन पार्टी नहीं. हालांकि, उन्होंने राहुल गांधी और सिद्धू की जगह चन्नी को पार्टी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाने के उनके फैसले की प्रशंसा की.
कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘जी-23 (कांग्रेस के ‘रिफॉर्मर’ का एक समूह), या इसमें जो भी कुछ बचा हैं, उसकी तरफ से निश्चित तौर पर फिर कुछ कहा जाएगा…यह अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी की बहाली को कुछ समय के लिए टाल सकता है क्योंकि ये (जी-23) नेता एक बार फिर चुनाव और सीडब्ल्यूसी (कांग्रेस कार्यसमिति) के पुनर्गठन की बात उठाएंगे. लेकिन इसका पार्टी के निर्णय लेने के तरीके पर असर पड़ने के आसार नहीं है.’
कांग्रेस नेता ने कहा, ‘आने वाले दिनों में पार्टी में प्रियंका की क्या भूमिका होगी, इस पर भी फैसला लिया जाएगा.’
Had a long meeting with @priyankagandhi Ji ?? pic.twitter.com/Wd4FYXFrhr
— Navjot Singh Sidhu (@sherryontopp) June 30, 2021
गांधी परिवार के सिद्धू के पक्ष में होने का संकेत वास्तव में पहली बार तब मिला था जब पंजाब के नेता ने उनके साथ खड़ी प्रियंका गांधी की एक तस्वीर ट्वीट की थी.
इस बीच, ऐसा लगता है कि पार्टी ने गुजरात में अपने अभियान पर पहले ही काम शुरू कर दिया है, जहां इस साल के अंत में चुनाव होने हैं. राहुल गांधी ने पिछले महीने द्वारका में गुजरात कांग्रेस के नेताओं के साथ ‘चिंतन शिविर’ में हिस्सा लिया था.
2024 के लिए कांग्रेस की संभावनाएं
राजनीतिक विश्लेषक नीलांजन सरकार के मुताबिक, पंजाब और अन्य राज्यों में कांग्रेस का खराब प्रदर्शन पार्टी के भविष्य के संदर्भ में दो बातें बताता है.
पहली तो यह है कि सबसे बड़ा नुकसान यह है कि यह जल्द पंजाब में प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका में भी नहीं आ पाएगी. दूसरा यह है कि देश के तमाम राज्यों में कांग्रेस सिकुड़ती जा रही है, जिसका फायदा लंबे समय में क्षेत्रीय विपक्षी नेताओं को ही मिलेगा, भले ही 2024 में ऐसा न हो पाए.
सरकार ने कहा, ‘कांग्रेस के लिए सवाल पंजाब में चुनाव जीतने या हारने से परे है. यह इस बारे में है कि क्या वह पंजाब में धराशायी होती है या नहीं. ऐतिहासिक रूप से जिन राज्यों में कांग्रेस का पतन हुआ है, वह वहां फिर कभी खड़ी नहीं हो पाई है. कांग्रेस जल्द ही पंजाब में अकालियों की तरह अन्य पार्टियों को जगह दे सकती है, खासकर प्रमुख विपक्ष के तौर पर भी.
उनके मुताबिक, ममता बनर्जी और अब अरविंद केजरीवाल जैसे क्षेत्रीय नेता भी 2024 में विपक्ष के प्रमुख चेहरे के तौर पर उभरने की ओर बढ़ रहे हैं.
सरकार ने कहा, ‘केजरीवाल और ममता दोनों एक लंबी पारी खेल रहे हैं. यह सिर्फ 2024 तक सीमित नहीं है. दीर्घकालिक स्तर पर ये एक गैर-कांग्रेसी विपक्ष का हिस्सा हैं, जो इससे आगे भी बढ़ सकता है.’
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