नई दिल्ली: ओडिशा ग्रामीण निकाय चुनावों में बीजू जनता दल की ज़बर्दस्त जीत को, पार्टी की बड़ी ज़मीनी कवरेज, ढेर सारी कल्याण योजनाओं और ओडिशा के सीएम तथा पार्टी प्रमुख नवीन पटनायक की व्यक्तिगत भागीदारी से जोड़कर देखा जा रहा है.
सत्तारूढ़ पार्टी ने अपनी सबसे नज़दीकी प्रतिद्वंदी बीजेपी को पूरी तरह से धूल चटा दी, और पार्टी के वरिष्ठ प्रदेश नेता अब कह रहे हैं कि ख़राब फोकस और समन्वय प्रचार में बड़े नेताओं की ग़ैर-मौजूदगी, और मुद्दों पर आधारित किसी संतेषजनक नैरेटिव की कमी, पार्टी की पराजय का कारण रहे. वो आगे कहते हैं कि सीएम पटनायक पर पार्टी के व्यक्तिगत हमले भी खोखले नज़र आते थे.
बीजेडी ने 853 में से 766 सीटें जीत लीं- 90 प्रतिशत का स्ट्राइक रेट और 2017 के चुनावों से 290 सीटों की बढ़ोतरी, जबकि बीजेपी इस बार सिर्फ 42 ज़िला परिषद सीटों पर सिमटकर रह गई. 2017 में उसने 297 सीटों पर जीत हासिल की थी. ये संख्या 2012 में उसकी 36 की तालिका से मिलती है. कांग्रेस, जिसने 2017 में 60 ज़िला परिषद सीटें जीती थीं, इस बार केवल 37 सीटें जीत पाई.
ग्रामीण चुनावों को 2024 के राष्ट्रीय और प्रदेश चुनावों से पहले एक अहम टेस्ट माना जा रहा है, और ओडिशा में कामयाबी हासिल करने की बीजेपी की उम्मीदों को एक कड़ा झटका लगा है.
2017 में बीजेपी ने आठ ज़िलों में ज़िला परिषदें बनाईं थीं जबकि इस बार वो एक भी नहीं बना पाई है. बल्कि ओडिशा के 10 ज़िलों में तो बीजेपी एक भी सीट नहीं जीत पाई है. इस बीच बीजेडी राज्य के सभी 30 ज़िलों में ज़िला परिषदों का गठन करने जा रही है- जो 2024 के असेम्बली और लोकसभा चुनावों से पहले, एक अभूतपूर्व चुनावी जीत है.
कुल मिलाकर, बीजेडी ने 52.73 प्रतिशत वोट प्राप्त किए हैं, जबकि बीजेपी को 30.07 प्रतिशत, और कांग्रेस को 13.57 प्रतिशत वोट मिले हैं.
नतीजों से पता चलता है कि नवीन पटनायक के अंतर्गत, जो मुख्यमंत्री के तौर पर अपने पांचवें कार्यकाल में हैं, मतदाताओं के बीच बीजेडी की अपील में कोई कमी नहीं आई है.
वरिष्ठ नेताओं के गृह ज़िलों में BJP का सफाया
जिन ज़िलों में बीजेपी एक भी ज़िला परिषद सीट नहीं जीत पाई वो हैं – भदरक, देवगढ़, जगतसिंहपुर, जयपुर, झारसुगुड़ा, कोरापुट, मलकानगिरि, मयूरभंज, नबरंगपुर और रायगड़ा.
इसके अलावा, पश्चिमी ओडिशा के अपने गढ़ में भी बीजेपी को ज़बर्दस्त मुंहकी खानी पड़ी. केंद्रीय मंत्री बिश्वेश्वर टुडु (राज्य के उत्तरी हिस्से से), और मयूरभंज से दबंग बीजेपी नेता बसंत पाण्डा, तथा ओडिशा में बीजेपी के सबसे बड़े नेता धर्मेंद्र प्रधान (दो राज्य के पश्चिमी हिस्से से) भी, इस भारी पराजय को नहीं रोक पाए.
बीजेपी ने 2017 में मयूरभंज की कुल 56 सीटों में से 49 सीटें जीतीं थीं, लेकिन 2022 में शून्य पर आ गई. ज़िले में अपना प्रदर्शन सुधारने के लिए पार्टी केंद्रीय मंत्री टुडु पर निर्भर कर रही थी. राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि पहली बार के सांसद को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने के पीछे एक कारण, इस क्षेत्र में पार्टी के पदचिन्हों को मज़बूत करना था.
लेकिन, बीजेडी का अपने महासचिव प्रणब प्रकाश दास को मयूरभंज में तैनात करना, ज़्यादा कारगर साबित हुआ. पार्टी ने फ्लैगशिप बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना (बीएसकेवाई) स्मार्ट हेल्थ कार्ड्स शुरू किए, जिन्होंने मतदाताओं को तुरंत आकर्षित कर लिया.
कालाहांडी में, बीजेपी अपनी पिछली संख्या 33 से गिरकर चार ज़िला परिषद सीटों पर आ गई है.
अंगुल में, जो केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का गृह ज़िला है, बीजेपी को 28 ज़िला परिषद सीटों में से केवल हाथ लगी है.
BJP अंदरूनी कलह और फोकस की कमी का शिकार
बीजेडी की अपेक्षा, जिसके घर-घर प्रचार ने ज़मीनी स्तर को विस्तृत रूप से कवर किया, बीजेपी प्रचार में ख़राब समन्वय नज़र आता था, और ये केवल कुछ नेताओं के ख़ेमे से चलाया जा रहा था.
वो रणनीति 2019 के असेम्बली और लोकसभा चुनावों में काम आई, जब ‘मोदी लहर’ पर सवार होकर बीजेपी ने ओडिशा में आठ लोकसभा सीटें जीत लीं, जिनमें से पांच पश्चिम ओडिशा और उत्तरी ओडिशा के मयूरभंज से थीं.
लेकिन, 2019 से पहले बीजेपी ने 2017 के पंचायत (ग्रामीण निकाय) चुनावों में, 297 सीटें जीतकर बीजेडी के वर्चस्व को चुनौती दी थी. उसने लोकसभा के प्रभावशाली चुनावी परिणामों की ज़मीन तैयार की थी, जहां बीजेपी ने 38.4 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था.
इसके अलावा, उसने असेम्बली चुनावों में 32.5 प्रतिशत वोट प्राप्त किए, और 23 विधान सभा सीटें जीत लीं.
लेकिन, पार्टी नेताओं का कहना है कि 2017 के पंचायत चुनावों के विपरीत, इन ग्रामीण निकाय चुनावों में पार्टी के प्रचार का कोई फोकस नहीं था.
धर्मेंद्र प्रधान ज़्यादातर उत्तर प्रदेश में व्यस्त थे, जहां असेम्बली चुनाव चल रहे हैं, जबकि राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा मणिपुर में प्रचार कर रहे थे. इस बीच, पार्टी सूत्रों ने बताया कि भुबनेश्वर सांसद अपराजिता सारंगी ने, स्थानीय अंदरूनी कलह के चलते प्रचार में हिस्सा नहीं लिया.
बीजेपी की ओडिशा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्या प्रतिमा मिश्रा ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमारे नेता मौक़े से ग़ायब थे, कोई यहां प्रचार करने नहीं आया, जबकि इसके विपरीत पटनायक ख़ुद पंचायत नेताओं के पास गए, और उनकी शिकायतें पूछीं. अगर किसी ने उन्हें राशन या हेल्थ कार्ड न मिलने की बात बताई, तो उन्होंने तुरंत अधिकारियों को उसे मुहैया कराने का निर्देश दिया, बीजेपी कार्यकर्त्ताओं को भी’.
उन्होंने आगे कहा, ‘2017 के विपरीत, जब बीजेपी ने कुशासन और भ्रष्टाचार, पश्चिमी ओडिशा में किसानों के असंतोष, भूख से बच्चों की मौतें, और चिटफंड मामलों में कार्रवाई न होने के इर्द-गिर्द अपना नैरेटिव तैयार किया था, इस बार वो किसी बड़े मुद्दे के बिना चुनाव लड़ रही थी. पटनायक का भी वही पिच था जो मोदी का था- बहुत सारे लाभ जो ग़रीबों को छूते थे’.
एक और नेता ने दिप्रिंट को बताया कि ओडिशा को लेकर केंद्रीय नेतृत्व के बीच भ्रम की स्थिति भी एक कारक है, और बीजेपी आला कमान तथा नवीन पटनायक के बीच मिलनसारी ने, मतदाताओं को भ्रमित कर दिया’.
राष्ट्रपति के अभिभाषण के जवाब में, राज्यसभा में अपना भाषण देते हुए मोदी ने ओडिशा मुख्यमंत्री प्रशंसा की थी.
स्पष्ट है कि केंद्रीय स्तर पर सहयोग, और स्थानीय स्तर पर विरोध ने काडर और मतदाताओं को भ्रमित कर दिया.
ओडिशा के एक और वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से कहा, कि पार्टी के प्रचार में कोई ‘फोकस नहीं’ था, और उसके नेता ‘एकजुट नहीं’ थे.
ओडिशा के एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा कि ‘2017 के पंचायत चुनावों के बाद, ये सोचा गया था कि पार्टी धर्मेंद्र प्रधान को, असेम्बली चुनावों के लिए पटनायक के सामने अपना सीएम चेहरा बनाएगी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. इसलिए, बहुत से लोगों को ऐसा लगा कि पार्टी की दिलचस्पी, असेम्बली चुनावों में सिर्फ एक दोस्ताना लड़ाई में थी’.
नवीन पटनायक के कल्याण मॉडल की जीत
इस बीच, सीएम पटनायक ने भी 2017 के पंचायत नतीजों से सीख हासिल की. तब के विपरीत, जब उन्होंने व्यक्तिगत रूप से प्रचार नहीं किया था, इस बार उन्होंने इसके लिए विशेष प्रयास किए.
बीएसकेवाई स्वास्थ्य बीमा कार्ड्स के अलावा, बीजेडी ने जिन दूसरी सरकारी स्कीमों को आगे बढ़ाया, उनमें घरों के निर्माण व मरम्मत के लिए सहायता, सरकारी नौकरियों के लिए अधिकतम आयु सीमा को 38 वर्ष तक बढ़ाना, और कनिष्ठ अध्यापकों के वेतन में 50 प्रतिशत की वृद्धि आदि शामिल थीं. इस सब ने पटनायक की छवि एक ऐसे सीएम के तौर पर पुख़्ता कर दी, जो लोगों के कल्याण के लिए काम करता है.
एक बीजेडी नेता ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, दिप्रिंट से कहा, ‘बीजेपी का तमाम प्रचार नवीन पटनायक के खिलाफ था, लेकिन उसमें कोई दम नहीं था. लेकिन पटनायक के कल्याण मॉडल के शासन ने लोगों की ज़िंदगियों को छू लिया. कल्याणकारी योजनाओं ने मयूरभंज और पश्चिमी क्षेत्र में पार्टी काडर को मज़बूत किया, और वहां 2017 में बीजेपी को मिले फायदों को उलट दिया’.
लगभग 3.5 करोड़ लोगों को बीएसकेवाई हेल्थ कार्डस मिलने थे, और ये कार्ड्स वितरित करने के लिए पटनायक या तो अलग अलग ज़िलों में ख़ुद गए, या उन्होंने वीडियो कॉनफ्रेंसिंग के ज़रिए ये काम किया.
इसके अलावा, घर मरम्मत स्कीम के लिए ओडिशा सरकार के 1,414 करोड़ के पैकेज ने, पीएम आवास योजना में पैसे के वितरण में भष्टाचार के बीजेपी के आरोप की हवा निकालने में भी मदद की.
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