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Tuesday, 5 November, 2024
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3 राज्यों में बीजेपी के साथ साझा सरकार चलाने वाली एनपीपी मणिपुर चुनाव में खिलाफ क्यों है

नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) मणिपुर में सीएम बिरेन सिंह के बीजेपी नेतृत्व वाली सरकार में साझीदार है. लेकिन इस बार के चुनावों में उसने 60 सीटों में से 38 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. जबकि 2017 में उसके 9 उम्मीदवार मैदान में थे.

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उखरुल-इंफालः मणिपुर के चुनाव में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सहयोगी पार्टी एनपीपी, बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ रही है.

मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा के नेतृत्व वाली पार्टी को चुनाव आयोग ने 2019 में भारत के आठवें राजनीतिक दल के रूप में मान्यता दी थी. अब इस बार 60 में से 38 सीटों पर उम्मीदवार खड़े करके उन्होंने मणिपुर में अपनी महत्वाकांक्षा को साफ कर दिया है. पिछले 2017 के चुनाव में उनकी पार्टी ने नौ सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे.

गौरतलब है कि एनपीपी और बीजेपी मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में मिलकर सरकार चला रहे हैं. साथ ही, एनपीपी बीजेपी के नेतृत्व वाले नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस (एनईडीए) का हिस्सा भी है.

मेघालय में बीजेपी संगमा के नेतृत्व वाली एनपीपी सरकार की सहयोगी है. जबकि अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी उसकी वरिष्ठ सहयोगी पार्टी है.

लेटपाव हावोकिप के पार्टी छोड़ने से पहले तक इस विधानसभा में एनपीपी के चार विधायक थे. लेटपाव हावोकिप ने चुनाव से पहले बीजेपी ज्वाइन कर लिया था.

एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार में एनपीपी की अच्छी हिस्सेदारी है. एनपीपी के वरिष्ठ नेता यमनाम जॉयकुमार सिंह उपमुख्यमंत्री हैं.

संगमा मणिपुर में अपने सहयोगी दल के खिलाफ चुनाव लड़ने की बात को लेकर कहते हैं कि वह संदेश देना चाहते हैं कि उत्तर-पूर्व की बात केंद्र सुने.

संगमा ने पिछले हफ्ते उखरुल के भीड़ भरे ऑडिटोरियम में वहां की प्रभावी जनजातीय समूह, तंगखुल नागा समुदाय के लोगों को संबोधित करते हुए कहा था, ‘हम लोगों को यह बताना चाह रहे हैं कि उत्तर-पूर्व के लोगों को साथ आना चाहिए. इससे एक संदेश जाएगा जिसके लिए हमें एक राजनीतिक मंच की जरूरत है. अगर उत्तर-पूर्व के सांसद एकजुट होते हैं तो दिल्ली की सरकार हमारी बात को ठीक से सुनेगी.’


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दिप्रिंट ने मणिपुर में एनपीपी के सफर, उसके बीजेपी के साथ तनावपूर्ण गठबंधन और आगामी चुनावों में उसकी क्या स्थिति रहेगी वह बताने की कोशिश यहां पर की है.

मणिपुर में एनपीपी का 33 साल पुराना इतिहास

एनपीपी के घोषणापत्र में दावा किया गया है, ‘पार्टी का उद्देश्य एक सामान्य एजेंडा बनाने का है और उत्तर-पूर्व के लोगों के मुद्दों को लेकर एक सामूहिक आवाज़ और सरोकारों को उठाना है.’

पार्टी का गठन 1989 में किया गया था. यूरीपोक में ब्रजमोहन देव शर्मा मंडप के नेतृत्व में हुई एक बैठक में नांथोमबांम इबोम्चा सिंह को पार्टी अध्यक्ष चुना गया.

गठन के एक साल के अंदर ही एनपीपी ने मणिपुर की पांच सीटों पर चुनाव लड़ी. चुनाव में वी हंगखालियन चूराचंदपुर से एनपीपी के पहले विधायक बने. उन्हें आरके रणबीर सिंह की नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री बनाया गया.

एनपीपी ने 2002 के चुनाव को छोड़कर, 1995, 2000, 2007, 2012, और 2017 के चुनावों में हिस्सेदारी की. 1995 में दो सीटें, 2012 में तीन सीटें और 2017 में चार सीटें प्राप्त हुई थीं, जबकि 2000 और 2012 में उसका खाता नहीं खुल सका था.

साल 2013 में पूर्व लोकसभा स्पीकर पी.ए.संगमा ने शरद पवार की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (एनसीपी) को छोड़कर पार्टी की कमान संभाली.

उस समय संगमा ने कहा था, ‘हालांकि पार्टी सबके लिए है और कोई भी इसका सदस्य हो सकता है, लेकिन इसमें जनजातियों को प्रमुखता दी जाएगी.’

कई वर्षों से एनपीपी को मणिपुर के पहाड़ी सीटों पर जीत मिलती आई है. लेकिन 2017 में उसे पहाड़ी पर दो और शेष जगह से दो सीटें प्राप्त हुई थीं.

बीजेपी के साथ मतभेदों की शुरुआत

साल 2017 के चुनावों में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला.

कांग्रेस 28 सीटें लेकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी (31 के जरूरी बहुमत से तीन कम), बीजेपी को 21 सीटें मिलीं थीं, तब उसनें नागा पीपुल्स फ्रंट (4), एनपीपी (4) और लोक जनशक्ति पार्टी (1) के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए गठबंधन बना लिया.

उस समय तक कोनराड संगमा अपने पिता की मौत के बाद पार्टी की बागडोर संभाल चुके थे. उन्होंने कहा था कि एनपीपी का बीजेपी के साथ गठबंधन होन के कारण यह स्वाभाविक था कि मणिपुर में सभी पार्टियां साथ मिलकर काम करें.

एनपीपी के सभी चार विधायकों जॉयकुमार सिंह, लेटपाओ हाओकिप, जयंतकुमार सिंह और एन. कायसी को कैबिनेट में जगह मिली. राज्य के पूर्व डीजीपी जॉयकुमार सिंह को उप मुख्यमंत्री बनाया गया.

लेकिन पिछले कुछ वर्षों से बीजेपी और एनपीपी के बीच रिश्तों में खटास आने लगी.

जॉयकुमार सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘बीजेपी ने यह सवाल उठाना शुरू कर दिया कि क्यों एनपीपी के सभी चार विधायकों को कैबिनेट में जगह दी गई. वे भूल गए कि उनकी सरकार हमारे सहयोग से ही बनी थी.’

Manipur Deputy CM and former DGP Yumnam Joykumar Singh holds up his campaign poster | Photo: Praveen Jain | ThePrint
मणिपुर के डिप्टी सीएम और पूर्व डीजीपी युमनाम जॉयकुमार सिंह ने अपना प्रचार पोस्टर पकड़े हुए | फोटो: प्रवीण जैन | दिप्रिंट

संबंधों में खटास अप्रैल 2020 से आनी शुरू हुई जब जॉयकुमार सिंह से सभी पद छीन लिए गए. उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान कथित रूप से चावल वितरण को लेकर, मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के खिलाफ कुछ विवादित बयान दिए थे. कुछ महीनों के बाद एनपीपी विधायकों ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया.

सिंह ने कहा, ‘हमने गठबंधन का साथ छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया. साथ ही सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत कर दिया. दुर्भाग्य से कांग्रेस भी अपने लोगों को एकजुट करने में असफल रही.’

बाद में, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मध्यस्थता और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व शर्मा और कोनराड संगमा के बीच बातचीत के बाद, चार विधायक गठबंधन सरकार में फिर से शामिल हो गए. हालांकि, सितंबर, 2020 में मंत्रिमंडल के पुनर्गठन के बाद एनपीपी कोटे के दो मंत्रियों को मंत्री पद से हटा दिया गया था.

दिप्रिंट ने एनपीपी के आरोपों पर मुख्यमंत्री बीरेन सिंह और बीजेपी के मंत्री बिश्वजीत थोंगम की प्रतिक्रिया जाननी चाही, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

हालांकि, केन्द्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने दिप्रिंट के साथ एक बातचीत में गठबंधन के सहयोगियों के बीच किसी तरह के मतभेद से इनकार किया था. भूपेंद्र यादव मणिपुर चुनाव की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘इस निर्णय पर नहीं पहुंचना चाहिए. पिछले पांच वर्षों में हमने कड़ी मेहनत की है और लोगों का विश्वास जीता है, इसलिए हमने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया. लेकिन, अपने सहयोगियों के साथ हमारे रिश्ते पर असर नहीं हुआ है.’

कोनराड संगमा ने भी दिप्रिंट से कहा कि चुनाव के बाद बीजेपी के साथ गठबंधन चुनाव परिणाम पर निर्भर करता है.

हालांकि, एनपीपी की बीजेपी के साथ राजनीतिक प्रतिस्पर्धा सिर्फ़ मणिपुर तक ही सीमित नहीं है. मेघालय में पिछले उपचुनाव के आखिरी चरण में दोनों पार्टियों ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा था. मेघालय में भी दोनों पार्टी गठबंधन में हैं.

दिप्रिंट के एडिटर इन चीफ शेखर गुप्ता के साथ ‘ऑफ द कफ’ कार्यक्रम में संगमा ने कहा था कि ‘बीजेपी अब तक उत्तर-पूर्व के समीकरणों को समझ नहीं पाई है.’

उन्होंने कहा था, ‘अगर आप जानते हैं कि बीजेपी उत्तर-पूर्व के समीकरणों को अपनाने और समझने में समर्थ रहती है और वह उस तरह का स्थान देकर और लचीलापन दिखाती है, तो हम देखेंगे कि क्या हो सकता है. लेकिन इस तरह कि बात होती नहीं दिखती.’


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‘एक उत्तर-पूर्व, एक आवाज’

बीजेपी और एनपीपी के बीच रिश्ते में कड़वाहट तब और बढ़ गई जब बीरेन सिंह की नेतृत्व वाली पार्टी ने सभी 60 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला किया. हाल ही में असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा था कि नेशनल पीपुल्स पार्टी एक मूल्यहीन पार्टी है और उसके उम्मीदवारों को वोट देने का मतलब अपना वोट बेकार करना है.

हालांकि, एनपीपी नेताओं को लगता है कि इस बार जीतने की संभावना ज्यादा है.

जॉयकुमार सिंह ने कहा कि उन्होंने इस बार 38 सीटों पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है, कई लोग बीजेपी से परेशान हो चुके हैं. इनमें 11 सीटें पहाड़ी क्षेत्रों में हैं और 27 इंफाल और गैर-पड़ाड़ी क्षेत्रों में हैं.

सिंह ने कहा, ‘मैंने देखा है कि लोग बीजेपी सरकार से निराश हो चुके हैं. कांग्रेस की मौजूदगी भी यहां पर नहीं है. जब हम ‘एक उत्तर पूर्व, एक आवाज का नारा देते हैं, तो लोग इसे पसंद करते हैं. हमारी उपस्थिति और लोकप्रियता दोनों बढ़ी है.’

पार्टी अपने चुनावी घोषणा-पत्र के साथ ही चुनाव अभियान में भी ‘एक उत्तर-पूर्व और एक आवाज’ के एजेंडा पर जोर देती है. इसके नेता लगातार यह दावा करते रहे हैं कि उत्तर-पूर्व की संगठित राजनीतिक ताकत ही नई दिल्ली में इस क्षेत्र के हितों की रक्षा के लिए लॉबीइंग कर सकती है. संगमा ने एक रैली में अपनी पार्टी के बारे में कहा कि न सिर्फ़ ‘यह उत्तर-पूर्व के लिए बनी है’ बल्कि ‘यह उत्तर-पूर्व में बनी’ भी है.’ उनका इशारा अप्रत्यक्ष तौर पर बीजेपी और कांग्रेस जैसी दिल्ली से चलने वाली पार्टियों की ओर था.

Meghalaya CM Conrad Sangma in Manipur's Ukhrul | Photo: Praveen Jain | ThePrint
मेघालय के सीएम कोनराड संगमा मणिपुर के उखरुल में | फोटो- प्रवीण जैन | दिप्रिंट

उन्होंने अपने चुनावी घोषणा पत्र में मणिपुर के पहाड़ी और मैदानी इलाकों के बीच के फर्क को खत्म करने और आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट को समाप्त करने की बात भी कही है.

संगमा ने दिप्रिंट से कहा, ‘यह (AFSPA) राजनीति नहीं है. यह वाजिब मुद्दा है और एक राजनीतिक पार्टी और जनता का नेता होने के नाते मैं महसूस करता हूं कि आज की स्थिति में AFSPA की कोई ज़रूरत नहीं है.’

जॉयकुमार सिंह की बेटी और एनपीपी की युवा अध्यक्ष रितिका युमनाम ने कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद हमने उम्मीदवार की संख्या बढ़ाने का निर्णय लिया. उन्होंने कहा कि शुरुआत में उनका ध्यान बाहरी मणिपुर लोकसभा सीट के जनजाति बहुल पहाड़ी क्षेत्रों पर नहीं था और समय के साथ इस इलाके में नागा पीपुल्स फ्रंट इस इलाके में मजबूत होती गई.

उन्होंने कहा, ‘लेकिन हमने (लोकसभा चुनाव में) पाया कि एनपीपी को काफी तरजीह दी गई थी. जब हम उन इलाकों में कैंपेन कर रहे थे, हमने पाया कि खासतौर पर युवा वर्ग हमें पसंद करता है.’

एनपीपी के विस्तार की एक और वजह है. बीजेपी की ओर से उम्मीदवारों की सूची जारी होने के बाद कई नेता नाराज हो गए. इससे पहले एनपीपी ने 20 उम्मीदवारों की सूची जारी की थी. लेकिन, पार्टी ने इसके बाद दो और सूची जारी की जिसमें कई बीजेपी नेताओं को शामिल किया गया.

जॉयकुमार सिंह के मुताबिक, बीजेपी छोड़कर एनपीपी में शामिल होने वाले 60 से 70 फीसदी उम्मीदवारों के जीतने की संभावना है. एनपीपी उम्मीद कर रही है कि 20 सीटों के साथ वह राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी. इस बात की चर्चा भी है कि एनपीपी कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकती है. कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह भी कह चुके हैं कि एनपीपी जैसी ‘समान-विचारों वाली पार्टियों’ के साथ गठबंधन करने में उन्हें कोई परहेज नहीं है.

राजनीतिक पर्यवेक्षक और इंफाल रिव्यू ऑफ आर्ट्स एंड पॉलिटिक्स के संपादक प्रदीप फांजौबम ने कहा कि राजनीतिक समीकरणों में उल्लेखनीय बदलाव आया है.

उन्होंने कहा, ‘कभी हम लोगों को लगता था कि बीजेपी के लिए यह (चुनाव) बेहद आसान होगा, क्योंकि वे केन्द्र और राज्य दोनों में सत्ता में हैं. लेकिन टिकट के बंटवारे के बाद बीजेपी का वोटबैंक बंट चुका है, तो समीकरण काफी बदल गए हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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