25 मार्च को नागालैंड के उच्च शिक्षा मंत्री टी.आई.ऐ लोंग्कुमेर ने विधानसभा के बजट सत्र में हिंदी में भाषण देकर इतिहास रच दिया।
नई दिल्ली: नागालैंड में बीजेपी द्वारा समर्थित प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन की सरकार राष्ट्रीय एकता के लिए हिंदी पर काफी जोर दे रही है जबकि राज्य अभी नागा मुद्दे का जो की देश का सबसे पुराना अलगाववादी आन्दोलन है उससे उबरने का रास्ता ढूंढ रही है
25 मार्च को नागालैंड के उच्च शिक्षा मंत्री टी.आई.ऐ लोंग्कुमेर ने विधानसभा के बजट सत्र में हिंदी में भाषण देकर इतिहास रच दिया।
लोंग्कुमेर जो की आरएसएस द्वारा समर्थित जनजाति शिक्षा समिति के अनुयायी हैं, उन्होंने शिक्षा के छेत्र से जुड़े पीयोंग तेम्जें जमीर, जिन्हें हाल ही में हिंदी के विस्तार के लिए राष्ट्रपति राम नाथ कोविद द्वारा पद्मा श्री से सम्मानित किया गया उनको बधाई देने के लिए इंग्लिश या नागामीज की जगह हिंदी में भाषण देने का निर्णय लिया।
पहली बार विधायक बने लोंग्कुमेर जिन्होंने मोकोकचुंग जिले की अलोंग्ताकी विधानसभा से चुनाव जीता है कहा की सरकार हिंदी को उच्च शिक्षण संस्थानों में भी एक विषय के रूप में बढ़ावा देगी जिससे की नागा युवाओं के लिए नौकरी के अवसर बढ़ेंगे।
उन्होंने यह भी कहा कि “नौकरी, उद्योग और अन्य आर्थिक विकास के मामले में हम पहले से ही नागालैंड में परिपूर्ण हैं। शिक्षित नागा लोगों का अपनी मातृभूमि से काफी लगाव है. और हिंदी न बोल पाना हमे पीछे धेकलता है”।
जून 2016 में मोदी सरकार ने उत्तर पूर्व और दक्षिणी भारत में हिंदी का विस्तार करने का निर्णय लिया था।
हिंदी सलाहकार समिति की अध्यक्षता करते हुए, मंत्री जीतेन्द्र सिंह ने कहा की हिंदी में न केवल पुरे देश के लिए बातचीत का माध्यम बनने की छमता है बल्कि इसमें उन युवाओं के लिए काफी अवसर हैं जो कॉर्पोरेट सेक्टर और मल्टी नेशनल कंपनियों में नौकरी चाहते हैं जहाँ हिंदी का ज्ञान होने पर चयन प्रक्रिया में फायदा पहुँचता है।
सेबेस्टियन ज़ुम्वु, जो नागा पीपल्स फ्रंट के प्रेस सचिव हैं ने दिप्रिंट से कहा कि हिंदी के विस्तार के लिए पहली बार जोर 2016 में दिया गया।
जुम्वु ने कहा कि “बीजेपी प्रमुख अमित शाह ने पूर्व मुख्य मंत्री टी.आर जेलीआंग से हर जिले में हिंदी सिखाने वाली संस्थाओं को खोलने पर चर्चा की थी”। एकता बनाने के लिए हिंदी का विस्तार पहला कदम होगा जबकि “नागा समस्या का समाधान भारतीय संविधान के अन्तर्गत ही होगा”
नागालैंड में हिंदी के लिए आन्दोलन कैसे शुरू हुआ
जमीर, दीमापुर में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के प्रधानाचार्य इकलौते नागा हैं जिन्होंने 1970 से हिंदी के विस्तार के लिए चल रहे आन्दोलन का नेतृत्व किया है।
अशोक धन्धरे, वर्धा में एक प्रचारक ने कहा कि महाराष्ट्र के वर्धा संसथान से पढ़े हुए जमीर ने दीमापुर शाखा में एक प्रशिक्षक के रूप में शुरुआत करी थी जो कि 1963 में पंजीकृत हुआ था। जबकि हिंदी के विस्तार का कार्य तो 1954 से शुरू हो गया था।
धन्धरे ने दिप्रिंट से कहा कि अब, नागालैंड में हमारे पास 20 केंद्र हैं जहां से प्रत्येक सितंबर में 3,500-4,000 छात्र परीक्षाओं के लिए उपस्थित होते हैं।
उन्होंने यह भी कहा की “इससे पहले, केवल 8-10 छात्र वर्धा में संस्थान में पढ़ाई करते थे, लेकिन अब हमारे पास नगालैंड से करीब 60 लड़के और लड़कियों हैं”
संस्था का अस्तित्व की शशुरुआत महात्मा गाँधी के 1929 के लाहौर कांग्रेस आन्दोलन से हुई जिसमें हिंदी को देश में एक आम भाषा बनाने की बात कही गयी, खासकर उन राज्यों में जहाँ हिंदी नहीं बोली जाती है। आरपीएस भारत सरकार के मानव संसाधन की हिंदी शिक्षा समिति’ योजना के तहत वित्तपोषित नौ स्वैच्छिक हिंदी संवर्धन संगठनों में से एक है।
उत्तर पूर्व में आरपीएस की पहली शाखा गुवाहाटी में 1938 में खुली थी।
क्या इससे नागा समस्या पर असर पड़ेगा?
“नागा राष्ट्रीय आंदोलन” के संवेदनशील मुद्दे को देखते हुए, हिंदी के आक्रामक प्रचार ने केंद्र सरकार के इरादे के बारे में लोगों के मन में संदेह पैदा कर दिया है। यहां तक कि लॉन्गकूमेर का यह भी मानना है कि स्थानीय लोगों के बीच एक इस मुहीम को धीरे धीरे ही रोपित करना चाहिए जिससे इसे आसान स्वीकृति मिलेगी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि “अगर हम सरकारी और निजी कॉलेजों में प्रत्येक सत्र में हिंदी कार्यशालाएं पेश कर सकें , भले ही एक हफ्ते के लिए, यह हिंदी के प्रचार प्रसार की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।
हालांकि, उन्होंने जोर दिया कि नागा के मुद्दे के राजनीतिक हल का “हिंदी भाषा के साथ कुछ लेनदेन नहीं है”, और साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि भारत सरकार ने पहले ही नागाओं की विशिष्ट स्थिति पर अपनी सहमति जताई है।
लॉन्गकूमेर का यह भी दावा है कि हिंदी सीखने से राष्ट्रीय एकीकरण की प्रक्रिया को बल मिलेगा जिससे कि धीरे धीरे विभिन्न संस्कृतियों को समझना और सम्मान करना शुरू हो जायेगा।
उन्होंने यह भी कहा की “हमें केवल अपने उच्चारण में सुधर करने की जरूरत है हम नागा उच्चारण के साथ हिंदी बोलते हैं यदि हम इसमें सुधार कर लेते हैं, तो हम अन्य भारतीयों की तरह हिंदी का उच्चारण कर सकते हैं और केवल एक मात्र अंतर हमारे चेहरे की बनावट का होगा”।