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Friday, 22 November, 2024
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भारत यूक्रेन में फंसे भारतीयों के पहले जत्थे को वापस लाएगा, लेकिन आगे लोगों को निकालने में कई बाधाएं हैं

निकासी प्रक्रिया इसलिए मुश्किल हो रही है क्योंकि यूक्रेन ने अपना एयरस्पेस बंद कर दिया है. सार्वजनिक परिवहन पूरी तरह अस्त-व्यस्त होने से भी स्थितियां जटिल हो गई हैं.

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नई दिल्ली: संकटग्रस्त यूक्रेन से निकाले गए भारतीय नागरिकों का पहला जत्था शुक्रवार को पड़ोसी देश रोमानिया पहुंच गया, जिसके एक दिन पहले ही रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध की घोषणा की थी.

नरेंद्र मोदी सरकार को जहां रूसी हमले के मामले में स्पष्ट स्टैंड लेने के लिए बाहरी दबाव का सामना करना पड़ रहा है, वहीं घरेलू मोर्चे पर उसे वहां फंसे छात्रों सहित हजारों भारतीयों को निकालने का संकट झेलना पड़ रहा है.

आधिकारिक सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि रूस की तरफ से यूक्रेन के कीव, खार्किव और मारियुपोल आदि शहरों पर बमबारी कर देश के एक बड़े हिस्से में जनजीवन अस्तव्यस्त कर दिए जाने के एक दिन बाद शुक्रवार को ही भारतीय विदेश मंत्रालय (एमईए) ने पश्चिमी यूक्रेन के ल्वीव और चेर्नित्सी शहरों में अपने कैंप कार्यालयों को सक्रिय कर दिया.

विदेश मंत्रालय प्रवक्ता अरिंदम बागची ने शुक्रवार को एक ट्वीट में पहले जत्थे को निकाले जाने की जानकारी देते हुए कहा, ‘भारतीय अधिकारी …अब उनकी भारत वापसी के लिए आगे बुखारेस्ट की यात्रा की सुविधा मुहैया कराएंगे.’


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यूक्रेन से निकाले गए लोगों, जिनमें अधिकांश छात्र हैं, को विदेश मंत्रालय के विशेष शिविरों द्वारा संचालित 5-6 बसों में बैठाकर रोमानियाई सीमा तक पहुंचाया गया. उनके रविवार देर रात या सोमवार सुबह भारत पहुंचने की उम्मीद है, जो कि वहां आव्रजन की स्थिति पर निर्भर करेगा.

हमले से पहले सुरक्षा स्थितियों को लेकर पूर्व चेतावनियों के मद्देनजर यूक्रेन में रहने वाले करीब 20,000 भारतीय नागरिकों में से केवल 4000 ही वहां से निकालने में सक्षम हो पाए.

इस बीच, डैनिलो हैलिट्स्की मेडिकल यूनिवर्सिटी, ल्वीव में पढ़ने वाले 40 भारतीय छात्रों का एक समूह पैदल ही यूक्रेन-पोलैंड सीमा तक पहुंचने में कामयाब रहा. एएनआई के मुताबिक, उन्हें कथित तौर पर एक कालेज बस ने सीमा चौकी के करीब 8 किलोमीटर दूर छोड़ दिया था.

यूक्रेन द्वारा अपना हवाई क्षेत्र बंद किए जाने से निकासी प्रक्रिया मुश्किल हो गई है. गुरुवार को यूक्रेन से भारतीयों को वापस लाने के लिए उड़ान भरने वाले एयर इंडिया के एक विमान को दिल्ली लौटा दिया गया था.

नतीजतन, विदेश मंत्रालय को गुरुवार को वहां से लोगों को निकालने के लिए वैकल्पिक मार्ग तलाशने पड़े. तत्काल एक नियंत्रण कक्ष भी स्थापित किया गया और यह 24×7 काम कर रहा है.

विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को रूसी-भाषी अधिकारियों की एक टीम को यूक्रेन की उन जमीनी सीमाओं पर भेजा जहां युद्ध का प्रभाव अभी कम ही है.

रोमानियाई सीमा के अलावा, विदेश मंत्रालय के अधिकारी पोलैंड में क्राकोविएक जमीनी सीमा पर भी तैनात होंगे. वहीं, एक दल जल्द ही हंगरी में यूक्रेन के जकारपट्टिया ओब्लास्ट में उजहोरोड के सामने जाहोनी सीमा चौकी पर पहुंचेगा, और स्लोवाकिया में वैस्ने नेमेके सीमा के पास पहुंचने वाले भारतीयों को सुरक्षित निकालने की कोशिश करेगा.

विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को अतिरिक्त रूसी भाषी अधिकारियों को यूक्रेन में अपने कैंप कार्यालयों में भेजा है.

हालांकि, यूक्रेन में सार्वजनिक परिवहन पूरी तरह से ठप होने के कारण छात्रों के लिए इन सीमावर्ती इलाकों तक पहुंचना आसान नहीं होगा, क्योंकि हजारों की संख्या में यूक्रेनियन डरकर यहां-वहां भाग रहे हैं.

सूत्रों के मुताबिक, फंसे भारतीयों को निकालने के लिए उड़ानों की व्यवस्था की जा रही है और इस पर आने वाला खर्च पूरी तरह सरकार ही वहन करेगी.

इस बीच, युद्ध क्षेत्र में फंसे भारतीय नागरिकों को निकालने का मुद्दा राजनीतिक रूप से गर्मा गया है.

कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार यूक्रेन में फंसे भारतीयों को सुरक्षित निकालने में सक्षम नहीं है और इससे दुनियाभर में भारत की छवि खराब हुई है. वहीं, पार्टी की छात्र शाखा एनएसयूआई ने शुक्रवार को विदेश मंत्रालय के सामने विरोध प्रदर्शन किया, जबकि अभिभावकों ने सरकार से मदद की गुहार लगाई.

जयशंकर ने यूक्रेन से कहा—कूटनीति और बातचीत का समर्थन करेगा भारत

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को अपने यूक्रेनी समकक्ष दिमित्रो कुलेबा से फोन पर बात की और भारतीय नागरिकों को सुरक्षित निकालने के मुद्दे पर चर्चा की.

उन्होंने कुलेबा से यह भी कहा कि इस पूरे संकट में भारत ‘कूटनीति और वार्ता के रास्ते’ का समर्थन करेगा.

जयशंकर ने सीमावर्ती देशों के विदेश मंत्रियों से भी बात की है जहां से भारतीय नागरिकों को निकाला जाएगा.

खार्किव में बमबारी से बचने के लिए शेल्टरों में रह रहे छात्र

दिप्रिंट ने खार्किव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे दो छात्रों से बात की, जिन्होंने बताया कि बमबारी से बचने के लिए वे अपने छात्रावास के एक बम शेल्टर में रह रहे हैं, और दूसरों से पूरी तरह कट गए हैं.

खार्किव सीमा के पास डोनबास क्षेत्र के उत्तर में दिल के आकार जैसा एक छोटा-सा शहर है जहां जबर्दस्त लड़ाई जारी है.

दो दिनों से अंडरग्राउंड बम शेल्टर में छिपी 20 वर्षीय इशिता चौधरी ने दिप्रिंट को फोन पर बताया, ‘बम शेल्टर में चलने या खड़े होने की जगह नहीं है, क्योंकि छत बहुत नीची है.’ उसने बताया कि शुक्रवार को उन लोगों को बताया गया कि निकटतम मेट्रो स्टेशन मिसाइल हमले में ध्वस्त हो गया है.

इशिता ने कहा, ‘हमें हर तीन घंटे में गोलाबारी की आवाज सुनाई देती है. हमें इंतजार करना पड़ता है कि कब दौड़कर मेस जाकर खाना खाकर आएं. कभी-कभी, जब हम मेस में होते हैं और गोलाबारी शुरू हो जाती है तो हमें वहीं रुकने को कहा जाता है जिसमें लंबा समय लग जाता है.’

इशिता चौधरी ने आगे कहा कि उसके माता-पिता चाहते हैं कि वह किसी तरह पोलैंड या हंगरी पहुंच जाए, लेकिन अभी कुछ दिनों तक यह संभव नहीं लग रहा. उसने कहा, ‘मेरा पूरा परिवार, यहां तक कि मेरी 10 साल की बहन भी मुझसे पूछती रहती है कि मैं कब लौटूंगी. यह एक बहुत ही कठिन स्थिति है.’

17 वर्षीय आदित्य अग्रवाल भी खार्किव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले उन छात्रों में शामिल है जो इस समय यूक्रेन में फंसे हुए हैं.

अभी भूमिगत बम शेल्टर में शरण लेकर रहे अग्रवाल ने दिप्रिंट को एक व्हाट्सएप कॉल पर बताया, ‘मैं एमबीबीएस डिग्री के लिए पिछले नवंबर में यूक्रेन आया था. हमें पता तो था कि यूक्रेन और रूस के बीच तनाव चल रहा है, लेकिन सोचा कि यह भारत-चीन सीमा तनाव की तरह है, जो रिहायशी इलाकों तक नहीं पहुंचेगा. हमने इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचा.’

उसने आगे कहा, ‘पिछले कुछ हफ्तों से हम ऐसी अटकलें सुन रहे थे कि 2014 की पुनरावृत्ति हो सकती है (जब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था.) मेरे कुछ दोस्तों ने टिकट बुक कराया और चले गए लेकिन हममें से कुछ लोगों ने रुकने का विकल्प चुना, खासकर जो अस्थायी निवास प्रमाणपत्र (टीआरएस) पाने की कोशिश कर रहे थे.

उसने बताया, ‘कल रात, मेरी भारत लौटने की एक उड़ान थी. मैं कीव जाने की टिकट के साथ बस स्टेशन पर प्रतीक्षा कर रहा था. लेकिन फिर, जब हमला हुआ तो एयरपोर्ट जाने का कोई मौका नहीं मिला. मेरी उड़ान रद्द हो गई और मैं छात्रावास वापस आ गया. इस हफ्ते हर रात, हमने गोलाबारी की आवाजें सुनी हैं.’ साथ ही जोड़ा कि यूनिवर्सिटी में खाद्य सामग्री तो पर्याप्त है, लेकिन इसकी कैंटीन में पानी ‘जल्दी खत्म हो जाता है.’

मूलरूप से जयपुर निवासी अग्रवाल ने कहा कि उसे अपने परिवार की बहुत याद आ रही है. उसने कहा, ‘यूनिवर्सिटी के अधिकारियों ने भारतीय दूतावास से हमें पश्चिमी यूक्रेन ले जाने के लिए कहा है, क्योंकि अभी हम ऐसी जगह हैं जहां नजदीक ही लड़ाई चल रही है. वहां से शायद हमें पोलैंड जैसे पड़ोसी देश से एयरलिफ्ट किया जा सकता है. लेकिन अभी हम केवल इंतजार कर रहे हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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