नई दिल्ली: गुरुवार को अरविंद केजरीवाल सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट से कहा कि 10 फरवरी को राष्ट्रीय राजधानी में लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए एक बैठक बुलाई गई है और इसके लिए प्रक्रिया चल रही है. साथ उसने बताया कि इस संबंध में एक नाम की भी सिफारिश की गई है.
दिल्ली सरकार की तरफ से वकील संतोष कुमार त्रिपाठी ने यह दलील एक याचिका की सुनवाई के दौरान दी. याचिका में दिल्ली सरकार को लोकायुक्त को प्राथमिकता पर नियुक्त करने का निर्देश देने की मांग की गई थी. जिसका पद 15 दिसंबर, 2020 से खाली पड़ा है. जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की बेंच मामले की अगली सुनवाई 29 अप्रैल को करेगी.
याचिका में कहा गया है कि लोकायुक्त की नियुक्ति न होने के कारण कार्यालय में भ्रष्टाचार से जुड़ी सैकड़ों शिकायतें पेंडिंग हैं.
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने यह याचिका दायर की है जिसमें आरोप लगाया गया है कि आम आदमी पार्टी ने न सिर्फ 2020 के विधानसभा चुनाव घोषणापत्र में बल्कि 2015 और 2013 चुनावों में भी एक स्वतंत्र और प्रभावी लोकायुक्त का वादा किया था लेकिन वो अभी भी पुराने अप्रभावी 1995 अधिनियम का उपयोग कर रहे हैं.
याचिका में आगे कहा गया है कि राजनीतिक दल तर्कहीन मुफ्त का वादा कर रहे हैं लेकिन जरूरी वादे पूरे नहीं कर रहे हैं. इसलिए, लोकतंत्र और भारतीय गणतंत्र के लिए खतरे को टाला नहीं जा सकता है.’
याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि भारत के केंद्र और चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों के कामकाज और घोषणापत्र को विनियमित करने के लिए कदम नहीं उठाए हैं. इसलिए, न्यायालय ही नागरिकों की एकमात्र उम्मीद है.
इसमें यह भी कहा गया है कि ‘कोर्ट भ्रष्टाचार, काला धन, बेनामी लेनदेन और भ्रष्टाचार के इंडेक्स में भारत की खराब रैंकिंग में सुधार के लिए निर्देश जारी कर सकती है.’
याचिका में आरोप लगाया है कि दिल्ली सरकार रिश्वतखोरी, काला धन, बेनामी संपत्ति, टैक्स चोरी, मुनाफाखोरी समेत अन्य आर्थिक अपराध को खत्म करने के लिए कदम नहीं उठा रही है, लिहाज़ा मौलिक अधिकारों के संरक्षक के नाते अदालत को लोकायुक्त की नियुक्त के मामले में दखल देना पड़ेगा.
याचिका में कहा गया, ‘ऐतिहासिक भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बाद आप का गठन किया गया था लेकिन वही पार्टी लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं कर रही है जो कई मोर्चों पर राज्य के खराब प्रदर्शन की पुष्टि करता है.’
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