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Friday, 15 November, 2024
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इस बार यूपी चुनाव की मंडल-कमंडल की खिचड़ी में ‘नमक’ पैदा कर रहा है नया स्वाद

बेरोजगारी, आवारा पशु से लेकर बुलडोजर, अयोध्या-काशी तक तमाम तरह के मुद्दे उत्तर प्रदेश के मतदाताओं के दिमाग पर हावी हैं लेकिन ऐसा लगता है कि मोदी-योगी ने मुफ्त राशन देकर लोगों के मन से कोविड की परेशानियों की याद भुला दी है.

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गाज़ीपुर/वाराणसी/प्रयागराज/ गोरखपुर: वाराणसी से 115 किलोमीटर उत्तर-पूर्व ज़हूराबाद के शाहबाजपुर गांव में पिछले शुक्रवार को शाम ढल रही थी, जब शारदा देवी मेहमानों का स्वागत करने के लिए अपने घर से बाहर निकलीं. 80 से ऊपर की उम्र की उदार मेजबान शारदा देवी ने मेहमानों को कामधाम की कोई बात तब तक शुरू नहीं करने दी जब तक उन्होंने पानी, चाय, बिस्किट नहीं ले लिये.

यह सब हो गया तब वे सीधे मुद्दे पर आ गईं— ‘हराम का न न खाई… जेका नून खाते हैं, जे देत बा ओका वोट देब.’ उनके परिवार के हर व्यक्ति को राशन की दुकान से हर महीने 10 किलो चावल या गेहूं, एक थैली नमक और चना के साथ रिफाइंड ऑइल मिल रहा है.

शारदा देवी को ज़हूराबाद से चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के नाम नहीं मालूम हैं. लेकिन वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शुक्रगुजार हैं कि उन्होंने कोविड महामारी के दौरान मुफ्त राशन उपलब्ध करवाया. शारदा देवी के घर से सौ गज दूर चौहान राजपूतों (ओबीसी जाति) के एक समूह ने भी बातचीत में इसी तरह की भावना जाहिर की. लेकिन उनके युवा पड़ोसी अनिल यादव ने इसे खारिज करते हुए सवाल किया, ‘आप ही बताइए, गांव में कितने लोगों को रोजगार मिला? क्या आप एक आदमी का भी नाम ले सकते हैं?’ यादव ने इसे बदलाव लाने वाला चुनाव कहा. लेकिन वे अल्पमत में नज़र आए. पास ही काम कर रहे दो राजमिस्त्री चौहानों के समर्थन में आवाज़ मिलाई.

‘दप्रिंट’ ने गाजीपुर, वाराणसी, प्रयागराज, और गोरखपुर के दौरे में पाया कि लोगों को कई तरह की शिकायतें हैं. सबसे आम शिकायत यह है कि आवारा पशु खेतों में खड़ी फसलों को नष्ट कर रहे हैं. प्रयागराज जिले के हंडिया में बनकट गांव के एक युवक ने कहा, ‘पहले लोग मवेशियों को आते देखकर कहते थे कि मुलायम मौसी आ रही है, अब जब वे आवारा गायों को देखते हैं तो कहते हैं कि योगी बाबा जा रहे हैं.’

लेकिन अवैध कत्लगाहों को बंद करने और मवेशियों की तस्करी करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए, जिसके चलते आवारा पशुओं की समस्या पैदा हुई, क्या लोग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ वोट देंगे? इस सवाल का जवाब इस पर निर्भर होगा कि सवाल किस जाति के व्यक्ति से पूछा गया है और जवाब उलझन भरी बुदबुदाहट से लेकर साफ हां में भी मिल सकता है.

बनकट गांव के एक युवक ने, जो कोविड के हमले से पहले तक मुंबई में किसी कारखाने में मजदूरी कर रहा था, कहा कि ‘यह अलग-अलग आदमी पर निर्भर है. इस गांव में मैं शायद अकेला यादव हूं जो मोदी जी को वोट देगा. मेरी बिरादरी के बाकी सारे लोग अखिलेश का साथ देंगे. ‘उसका फैसला अलग क्यों है, इसकी भी वजह है, ‘क्या मुलायम सिंह जी या अखिलेश ने मुंबई में रह रहे हमलोगों की कभी फिक्र की?’

वहां कुछ किलोमीटर दूर एक ढाबे पर निषाद जाति के एक ग्रामीण ने ढाबे के यादव मालिक की ओर देखते हुए कहा, ‘इन लोगों के पास जमीन है, मवेशी हैं. हमारे पास कुछ नहीं है. तो इससे मुझे क्या फर्क पड़ता है?’


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‘नज़र रखे हुए हैं’

शाहबाजपुर के ग्रामीण अनिल यादव ने बढ़ती बेरोजगारी पर जो गुस्सा जाहिर किया उसे जाति-प्रभावित चुनावी माहौल का असर कहा जा सकता है, लेकिन वे कई लोगों की भी आवाज़ उठाते दिखते हैं.

उत्तर प्रदेश में आप किसी भी युवा से बात कर लीजिए, बेरोजगारी की शिकायत सभी करते मिलेंगे.

इलाहाबाद विश्वविद्यालय परिसर में छात्र नाराज नज़र आए. उन्होंने कहा कि वे जब रोजगार की मांग करते हैं तो उन्हें पुलिस की लाठियां मिलती हैं. पिछले महीने प्रयागराज में पुलिस ने छात्रों को उनके कमरों, हॉस्टलों में घुसकर पीटा. छात्र रेलवे में नियुक्ति की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. ‘दप्रिंट’ ने जब इलाहाबाद विवि परिसर का दौरा किया उस समय पूरे परिसर में खलबली मची हुई थी. बीए सेकंड इयर के छात्र गोपी गौरव और रवि पटेल पुलिस की ज़्यादतियों के खिलाफ गुस्से में दिखे. उनका कहना था कि छात्रों का विरोध ‘जायज’ है. चुनाव के बारे बात करने पर उन्होंने साफ-साफ कुछ नहीं कहा. उनका कहना था, ‘हम उस पार्टी को वोट देंगे, जो छात्रों और उनके भविष्य की परवाह करे. हम नज़र रखे हुए हैं.’

विवि परिसर से बाहर आपको पूरा विमर्श बदला हुआ नज़र आएगा. वहां ‘बाहुबली’ आतीक़ अहमद के अवैध निर्माण को गिराने के लिए योगी सरकार के बुलडोजरों को लेकर चर्चा गरम थी. लोग दहशत के माहौल को खत्म करने की योगी सरकार की कार्रवाई की चर्चा करते मिले.

बुलडोजर की चर्चा गाजीपुर में भी गरम थी, जहां हाल तक एक और बाहुबली तथा हिस्ट्री शीटर मुख्तार अंसारी का दबदबा था. भाजपा का चुनावी गीत ‘एक हाथ में शास्त्र है जिसके, शस्त्र दूसरे हाथ है’ , और हाथ में बंदूक उठाए योगी की तस्वीर माकूल लगती है.

भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर और वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण को अपना चुनावी मुद्दा बनाया है. अतीक़ अहमद और मुख्तार अंसारी के खिलाफ योगी सरकार की कार्रवाई इस कहानी में एक नया रंग भरती है. ऐसा लगता है कि लोग चाहे जिस पहचान के हों, लगभग सभी ने इन कदमों का समर्थन किया है. आम प्रतिक्रिया यही है कि ‘हिंदुओं के लिए तो अच्छा ही कर रहे हैं’. इस तरह की प्रतिक्रिया तभी मिलती है जब आप लोगों से सवाल करते हैं. लोग जब राज्य सरकार के कामकाज पर बात करते हैं तब तात्कालिक सांसरिक मुद्दे उन पर ज्यादा हावी रहते हैं. मुफ्त राशन उनकी तात्कालिक चिंता का विषय है.

रोजाना की ज़िंदगी के सवाल

मंडल-कमंडल की खिचड़ी में ‘नमक’ तो महत्व रखता ही है. और यह ‘नमक’ है—‘ई-श्रमिक’ कार्डधारियों को मिलने वाले 1,000 रुपये; प्रधानमंत्री किसान योजना के तहत दो-दो हजार रु. की चार किस्तों में मिलने वाली राशि की एक किस्त; जनधन खाताधारियों में महिलाओं को हर महीने वाले 500 रु.; और तमाम दूसरे कार्यक्रमों से मिलने वाले लाभ. लेकिन इन सबकी कौन कितनी तारीफ करता है या इनसे कौन कितना संतुष्ट है, यह इस पर निर्भर है कि वह किस जाति का है. गाजीपुर के आसमानीचक गांव के दलित रविन कुमार बहुत नाराज थे क्योंकि उन्हें ‘ई-श्रमिक’ योजना के तहत कुछ नहीं मिला. उन्होंने बताया कि उन्हें राशन की दुकान वाले ने केवल 3 किलो गेहूं या चावल दिया. उन्होंने यह नहीं बताया कि उनके हिसाब से कौन पार्टी ठीक है लेकिन उन्होंने कहा कि ‘2024 में तो मोदी जी को वोट दूंगा मगर इस चुनाव के बारे में कुछ नहीं कह सकता.’

लेकिन उन्होंने जब ‘सिस्टम’ के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर किया तो उनके इर्दगिर्द खड़ी करीब आधा दर्जन महिलाओं ने उनकी बातों से सहमति जताई. जब इन महिलाओं से पूछा गया कि ‘आप लोग किस बिरादरी से हैं’, तो एक ने जवाब दिया, ‘बसपा’.

यूपी के 2017 के चुनाव में तो गांवों से लेकर शहरों तक चर्चाओं में मोदी, नोटबंदी, पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में आतंकवादियों के अड्डों पर सर्जिकल हमलों पर ही बात होती थी, मगर 2022 के चुनाव में चर्चा रोजाना की जिंदगी के सवालों— मुफ्त राशन, बेरोजगारी, आवारा पशुओं के कारण समस्या, कानून-व्यवस्था, और बेशक मोदी—पर हो रही है. जब तक पूछा न जाए तब तक लोग अयोध्या, काशी, या बिरादरी की बात नहीं करते. हकीकत यह है कि नमक की वफादारी भी इस पर निर्भर है कि वे किस पहचान के हैं. उदाहरण के लिए शारदा देवी (ब्राह्मण), अनिल (यादव), रविन कुमार (दलित) को ही ले लीजिए. अब अयोध्या और काशी उनके फैसले को कितना प्रभावित करेंगे यह कोई भी अंदाजा लगा सकता है.

जहां तक कोविड महामारी और नदियों या उनके किनारे पड़े शवों की बात है, वे सब बीती हुई बातें हो गईं. शारदा देवी से पूछिए कि जब सरकार के लोग कहीं नहीं दिख रहे थे तब वे महामारी से कैसे निबटीं, तो उनका जवाब मिलेगा, ‘हमरा के कोरोना-फोरोना ना बा, ना हम जाबी (मास्क) लगावेली. हमरा लड़का दुबई में डेली जाबी बदलेला.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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