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Friday, 20 September, 2024
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एसीआईएल की ‘वादाखिलाफी’ से असम के 40,000 चाय बागान श्रमिकों का जीवन मुश्किल हुआ

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(रूपेश दत्ता)

गुवाहाटी/नयी दिल्ली, 23 फरवरी (भाषा) ऊपरी असम में 40,000 से अधिक चाय बागान श्रमिक आज अपने नियोक्ताओं की ‘वादाखिलाफी’ की वजह से मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। चाय बागानों के मालिकों द्वारा कल्याणकारी वादों को पूरा करने में तीन साल से अधिक की देरी के कारण ये श्रमिक उचित स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा तक पहुंच के बिना जीर्ण-शीर्ण घरों में रहने के लिए मजबूर हैं। चाय बागानों का ये नियोक्ता – एक प्रमुख वैश्विक समूह है जो धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोपों का सामना कर रहा है।

आदिवासी समुदायों के श्रमिक 182 साल पुरानी असम कंपनी इंडिया लिमिटेड (एसीआईएल) के 14 चाय बागानों में कार्यरत हैं, जिसका राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) की मंजूरी के बाद 2018 में अरबपति बी आर शेट्टी के स्वामित्व वाली बीआरएस वेंचर्स ने अधिग्रहण किया था।

एसीआईएल ने हालांकि आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि प्रबंधन श्रमिकों के जीवन में सुधार के लिए प्रतिबद्ध है और प्रस्तावित कल्याण योजना के कार्यान्वयन में देरी की वजह कोविड-19 महामारी है।

एनसीएलटी में एक समाधान योजना प्रस्तुत करने के बाद बीआरएस वेंचर्स ने वर्ष 2018 में संकटग्रस्त एसीआईएल का अधिग्रहण किया था। बीआरएस को इस अधिग्रहण के छह महीनों के भीतर श्रमिकों के कल्याण पर 150 करोड़ रुपये खर्च करने थे।

इस योजना में प्लांटेशन लेबर एक्ट, 1951 के अनुसार स्टाफ क्वार्टरों का नवीनीकरण, मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पताल का निर्माण, पेयजल सुविधाएं, मजदूर कल्याण, ग्रैच्यूटी और उपयुक्त भविष्य निधि व्यवस्था शामिल थी।

जब सरकार और निजी कंपनियां इस क्षेत्र में उद्यम करते हैं तो उनके लिए इसका पालन करना अनिवार्य हो जाता है।

श्रमिकों ने दावा किया कि उन्हें कंपनी द्वारा उनके लिए तैयार की गई विस्तृत कल्याण योजना के बारे में लिखित आश्वासन दिया गया था और इसमें इस क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देना भी शामिल था।

हालांकि, मानसून के मौसम में बाढ़ के कारण अपने स्टाफ क्वार्टर को छोड़ना और ऊंची भूमि पर जाना और अपने ढहते घरों के अंदर सर्दियां को झेलना एक गंभीर वास्तविकता है जिसका उन्हें हर साल सामना करना पड़ता है।

श्रमिकों के बच्चों के लिए पूरी तरह से कार्यरत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और शैक्षणिक संस्थानों की कमी है – जिसके बारे में अधिग्रहण के दौरान बीआरएस वेंचर्स द्वारा आश्वासन दिया गया था।

श्रमिकों का प्रतिनिधित्व करने वाली यूनियनों के नेताओं के अनुसार, बीआरएस वेंचर्स, जो ब्रिटेन और संयुक्त अरब अमीरात में धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोपों का सामना कर रही है, ने वर्ष 2018 में चाय बागानों को अपने कब्जे में ले लिया था।

उन्होंने दावा किया कि सभी बोलीदाताओं में से एसीआईएल ने स्वेच्छा से दैनिक संचालन में शामिल श्रमिकों और अन्य कर्मचारियों के कल्याण पर 150 करोड़ रुपये खर्च करने की इच्छा जताई थी।

लेकिन एक बार अधिग्रहण हो जाने के बाद बीआरएस वेंचर्स ने चाय बागानों के श्रमिकों को दिए गए आश्वासन को नजरअंदाज कर दिया। चाय बागान 14,000 हेक्टेयर में फैले हुए हैं और यहां सालाना 1.5 करोड़ किलोग्राम प्रीमियम चाय का उत्पादन होता है।

भारत के चाय उत्पादन में आधे से अधिक का योगदान अकेले असम का होता है। राज्य में चाय का अनुमानित वार्षिक औसत उत्पादन लगभग 63-70 करोड़ किलोग्राम है।

भाषा राजेश राजेश अजय

अजय

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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