नई दिल्ली: डॉक्टरों ने दिप्रिंट को बताया है कि भारत में कोविड-19 के पहले मरीज़ का पता चलने के दो साल बाद तक, पहली लहर के मरीज़ अभी भी अपने शरीर में वायरस से हुए नुकसान से जूझ रहे हैं.
कोविड होने के बाद की एक ख़ास शिकायत, जो चिंता का सबब बनकर उभरी है वो है टिन्निटस- कान में एक गूंज की आवाज़- जिसका इलाज न किए जाने पर, सुनाई देना बंद भी हो सकता है.
लॉन्ग कोविड के कुछ ज़्यादा आम लक्षण हैं लगातार थकावट, दिल की अनियमित धड़कनें, और गैस्ट्रोएन्टराइटिस की बीमारियां.
डॉक्टरों का कहना है कि मरीज़ों को अचानक सुनाई देना बंद होने की शिकायतों में पांच-छह गुना का इज़ाफा हुआ है, और उनमें से बहुत लोग ऐसे हैं जिन्हें पहली या दूसरी लहर में कोविड हुआ था.
ओमीक्रॉन संक्रमण से जुड़ी दीर्घ-कालिक जटिलताओं को समझना, अभी बहुत जल्दबाज़ी हो सकती है, लेकिन बीमारी की गंभीरता और लॉन्ग कोविड की अवधि के बीच, कुछ पारस्परिक संबंध ज़रूरत लगता है.
लेकिन, टिन्निटस की शिकायत वो लोग भी कर रहे हैं, जिन्हें केवल हल्की बीमारी हुई थी. पिछले वर्ष के अंत में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा, लॉन्ग कोविड प्रबंधन के लिए जारी दिशा-निर्देशों में इसका उल्लेख नहीं है, हालांकि इस पर कुछ मेडिकल साहित्य ज़रूर उपलब्ध है.
डॉक्युमेंट में लॉन्ग कोविड की परिभाषा इस तरह है: ‘किसी सर्वमान्य परिभाषा की अनुपस्थिति में, आमराय में पोस्ट कोविड सिन्ड्रोम उन संकेतों और लक्षणों को कहा गया है, जो कोविड-19 संक्रमण के दौरान या उसके बाद विकसित होते हैं, और 12 सप्ताह से अधिक समय तक रहते हैं, और जिन्हें वैकल्पिक निदान से नहीं समझा जा सकता’.
हालिया साहित्य में भी कोविड-बाद के मरीज़ों को, थोड़े तीखे या चल रहे लक्षणात्मक कोविड (विकट कोविड-19 से आगे 4-12 सप्ताह), और दीर्घकालिक कोविड या पोस्ट-कोविड सिंड्रोम (विकट कोविड-19 शुरू होने के 12 हफ्ते बाद तक बने रहने वाले लक्षण) में बांटा गया है.
कोविड के बाद टिन्निटस ज़्यादा आम
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पतालों के मेडिसिन कंसल्टेंट डॉ एस चटर्जी ने, लंबे समय तक रहने वाले कोविड लक्षणों में, मायोकार्डिटिस और फेफड़ों की समस्याओं को ज़्यादा आम बताया, लेकिन जिस पहली चीज़ की उन्होंने बात की वो थी टिन्निटस.
‘बहुत सारे लोग ठीक हो गए हैं, लेकिन जो लक्षण अभी तक बने हुए हैं, उनमें एक है कान में गूंज की आवाज़, जिसे टिन्निटस कहते हैं. कोविड के बाद ये कहीं ज़्यादा आम है. दिल से जुड़े हुए भी कुछ लक्षण हैं, जैसे अनियमित धड़कनें आदि, जो छह हफ्ते से तीन महीने तक रह सकती हैं, उन लोगों के लिए जिन्हें हल्की बीमारी थी. लेकिन गंभीर मामलों में ये छह महीने तक बनी रह सकती है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘दूसरी समस्या फेफड़ों की है, ख़ासकर उन लोगों में जिन्हें गंभीर फाइब्रोसिस हुआ था. थकान और सांस की समस्या जैसे लक्षण 1 से 1.5 साल तक बने रह सकते हैं’.
चटर्जी ने कहा, ‘ओमीक्रॉन के लिए, हम लॉन्ग कोविड के बारे में उतना अधिक नहीं जानते, हमारे पास ऐसे लोग आ रहे हैं जिनकी बीमारी के क़रीब तीन-चार सप्ताह बाद भी, नब्ज़ की गति तेज़ है और सांस फूलती है’.
दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में एक ईएनटी प्रोफेसर ने कहा कि ओपीडीज़ के रुक-रुक कर बंद होने की वजह से, कोविड के बाद होने वाले टिन्निटस के बारे में पर्याप्त ब्योरा नहीं है, इनके बीच एक मज़बूत रिश्ता ज़रूर महसूस होता है.
उन्होंने कहा, ‘ये एक ऐसी स्टेज पर आ गया है, कि हम अपने पास आने वाले टिन्निटस के हर मरीज़ से पूछ लेते हैं कि क्या उसे कोविड हुआ था. इससे सुनाई देना बंद भी हो सकता है. लेकिन अच्छी बात ये है कि कभी कभी मरीज़ इसके आदी भी हो जाते हैं’.
उन्होंने आगे कहा, ‘कभी कभी शोर की वजह से वो नींद न आने की शिकायत करते हैं. हम उनसे व्हाइट नॉयज़ के साथ सोने के लिए कहते हैं- उसके लिए या तकिए के नीचे टिक-टिक करती घड़ी रखें, या किसी टैप को टपकता हुआ छोड़ दें. उससे शोर को काटने में मदद मिलती है’.
कोविड के बाद किडनी और तंत्रिका संबंधी समस्याएं
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने, जिन्हें सितंबर 2020 में कोविड हुआ था, दिप्रिंट को बताया कि बीमारी के बाद पेट और आंतों, तथा थकावट से जुड़े लक्षण अभी भी बने हुए हैं
उन्होंने कहा, ‘मेरी भूख कम हो गई है और अभी भी थकान महसूस होती है. मेरा वज़न घट गया है. मैं बेहतर हो रही हूं लेकिन अभी भी पुरानी जैसी अवस्था में नहीं आई हूं’.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी किडनी और तंत्रिकाओं से जुड़ी समस्याओं को, लॉन्ग कोविड से जुड़े लक्षणों की सूची में रखा है.
मंत्रालय का अनुमान है कि क़रीब 46 प्रतिशत मामलों में, अक्यूट किडनी इंजरी का संबंध कोविड से होता है. विभिन्न स्टडीज़ का हवाला देते हुए मंत्रालय का कहना था, कि 10-87 प्रतिशत मरीज़ों में तंत्रिकाओं से जुड़े लक्षण पैदा हो सकते हैं.
टिन्निटस का इलाज न होने पर बहरापन हो सकता है
मैक्स स्मार्ट में ईएनटी विभाग के प्रमुख, डॉ सुमित मृग ने दिप्रिंट से कहा, कि आमतौर से एक साल में उनका विभाग ऐसे 30-40 मरीज़ देखता है, जिन्हें अचानक सुनाई देना बंद हो जाता है,लेकिन अब ये संख्या बढ़कर 200-300 हो गई है.
उन्होंने कहा, ‘जिन मरीज़ों को सभी तीन लहरों में कोविड हुआ था, वो टिन्निटस का अनुभव कर रहे हैं, जो कान के अंदरूनी हिस्से में बालों के सेल्स को नुक़सान पहुंचने से होता है. इसका इलाज हो सकता है बशर्ते कि पहले 24-48 घंटों के अंदर उपचार शुरू हो जाए. लेकिन समस्या ये है कि लॉकडाउन आदि की वजह से, मरीज़ अस्पताल देर से पहुंचे’.
डॉ मृग ने आगे कहा कि एक बार सुनाई देना बंद हो जाए, तो फिर कुछ नहीं किया जा सकता.
उन्होंने कहा, ‘मेरे पास बहुत से डॉक्टर आए हैं जो टीका लगने के बाद भी टिन्निटस की शिकायत करते हैं. इस मामले में एक बड़ी चीज़ है चिंता, इसलिए लोगों को योग और प्रणायाम जैसे तरीक़ों को अपनाने की ज़रूरत है’.
ईएनटी प्रोफेसर की तरह डॉ मृग ने भी कहा, कि कुछ मरीज़ों को कानों में गूंज की वजह से सोने में परेशानी होती है.
स्टडीज़ में कोविड संक्रमण के बाद टिन्निटस के अनुमानित प्रसार को 8 प्रतिशत आंका है.
अमेरिकी शोधकर्त्ताओं ने जुलाई 2021 में,जर्नल ऑफ क्लीनिकल मेडिसिन के एक समीक्षा लेख में लिखा, ‘टिन्निटस या अतिरिक्त कारकों की मौजूदगी के कोई सुसंगत पैटर्न्स देखने को नहीं मिले, जिनसे बीमारियों के प्रभाव की स्टडीज़ में, टिन्निटस के विकसित होने का पता चल पाता. महामारी के प्रभाव की स्टडीज़ में लगातार देखा गया, कि महामारी से जुड़े तनाव और चिंता का टिन्निटस के अनुभवों में योगदान होता है’.
लेख में कहा गया, ‘कोविड-19 के पश्चात टिन्निटस का कुल अनुमानित प्रसार 8 प्रतिशत (सी1: 5 से 13 प्रतिशत) था. चिकित्सा पेशेवरों को जागरूक रहना चाहिए कि, महामारी के बाद या कोविड-19 के पश्चात टिन्निटस ज़्यादा समस्याएं पैदा कर सकता है’.
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