बेंगलुरु, 21 फरवरी (भाषा) कर्नाटक सरकार ने सोमवार को उच्च न्यायालय से कहा कि हिजाब मामले में याचिकाकर्ता न सिर्फ इसे पहनने की अनुमति मांग रही हैं, बल्कि यह घोषणा भी चाहती हैं कि इसे पहनना इस्लाम को मानने वाले सभी लोगों पर धार्मिक रूप से बाध्यकारी है।
राज्य सरकार ने यह भी कहा कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक परंपरा नहीं है और धार्मिक निर्देशों को शैक्षणिक संस्थानों के बाहर रखना चाहिए।
हिजाब मामले की सुनवाई कर रहे कर्नाटक उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ से राज्य के महाधिवक्ता प्रभुलिंग नावडगी ने कहा,‘‘यह एक ऐसा मामला नहीं है जहां याचिकाकर्ता अकेले ही अदालत में आई हैं। वे एक खास पोशाक को एक धार्मिक मंजूरी का हिस्सा बनाना चाहती हैं ताकि यह इस्लाम को मानने वाले हर किसी पर बाध्यकारी हो। यह दावे की गंभीरता है।’’
हिजाब विवाद, शैक्षणिक संस्थानों में उस वक्त तनाव का कारण बन गया जब कुछ छात्राओं ने इसे कक्षाओं के अंदर पहनने की अनुमति मांगी, जबकि हिंदू विद्यार्थियों ने भगवा ‘स्कार्फ’ पर जोर दिया।
महाधिवक्ता ने कहा कि प्रत्येक महिला, जो इस्लाम को मानती हैं, उन्हें धार्मिक परंपरा के अनुसार हिजाब पहनने की जरूरत है, जैसा कि याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है।
उन्होंने दलील दी, ‘‘मैं आलोचना करने वाला और कुछ कहने वाला भला कौन होता हूं, लेकिन मैं काफी जिम्मेदारी के साथ सिर्फ यह कह सकता हूं इस तरह के मामले में जब आप न सिर्फ खुद को, याचिकाकर्ता को, बल्कि आप हर किसी को आबद्ध करना चाहते हैं तो आपको एक संवैधानिक अदालत के समक्ष कहीं अधिक एहतियात बरतने की जरूरत है।’’
महाधिवक्ता के मुताबिक याचिकाकर्ताओं की दलील बेबुनियाद हैं।
नावडगी ने कहा, ‘‘हमारा यह रुख है कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक परंपरा नहीं है। डॉ. भीम राव आंबेडकर ने संविधान सभा में कहा था कि ‘हमे अपने धार्मिक निर्देशों को शैक्षणिक संस्थानों के बाहर रख देना चाहिए।’’
पूर्ण पीठ में मुख्य न्यायाधीश रितुराज अवस्थी, न्यायमूर्ति जे एम खाजी और न्यायामूर्ति कृष्ण एम दीक्षित शामिल हैं।
सिर्फ आवश्यक धार्मिक परंपरा को संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षण मिलता है, जो नागरिकों को अपनी पसंद के धर्म का आचरण करने की गारंटी देता है।
अदालत की कार्यवाही शुरू होने पर मुख्य न्यायाधीश अवस्थी ने कहा कि हिजाब के बारे में कुछ स्पष्टीकरण की जरूरत है।
मुख्य न्यायाधीश ने सवाल किया, ‘‘आपने दलील दी है कि सरकार का आदेश नुकसान नहीं पहुंचाएगा और राज्य सरकार ने हिजाब को प्रतिबंधित नहीं किया है तथा ना ही इस पर कोई पाबंदी लगाई है। सरकारी आदेश में कहा गया है कि छात्राओं को निर्धारित पोशाक पहनना चाहिए। आपका क्या रुख है– हिजाब को शैक्षणिक संस्थानों में अनुमति दी जा सकती है, या नहीं? ’’
नावडगी ने जवाब में कहा कि यदि संस्थानों को इसकी अनुमति दी जाती है तब यह मुद्दा उठने पर सरकार संभवत: कोई निर्णय करेगी।
उल्लेखनीय है कि हाल में राज्य के उडुपी में एक कॉलेज की छह छात्राएं कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित संवाददाता सम्मेलन में शामिल हुई थीं। इसका आयोजन, कक्षा में हिजाब पहन कर प्रवेश की अनुमति देने से कॉलेज प्रशासन के मना करने के विरोध में किया गया था।
इस घटना से चार दिन पहले, उन्होंने प्राचार्य से हिजाब पहन कर कक्षा में आने देने की अनुमति मांगी थी। लेकिन उन्हें अनुमति नहीं दी गई। कॉलेज के प्राचार्य रुद्रे गौड़ा ने कहा था कि अब तक छात्राएं हिजाब पहन कर परिसर में पहुंचती थीं लेकिन कक्षाओं में जाने से पहले उसे हटा देती थीं।
प्राचार्य ने कहा था ‘‘संस्थान की, हिजाब पहनने के बारे में कोई व्यवस्था नहीं है क्योंकि पिछले 35 साल से कक्षा में कोई छात्रा हिजाब नहीं पहनती। यह मांग करने वाली छात्राओं को कुछ बाहरी तत्वों का समर्थन है।’’
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सुभाष नरेश
नरेश
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