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Saturday, 16 November, 2024
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जीबी रोड की महिलाओं की बच्चियों के व्यक्तित्व विकास लिये कार्यक्रम शुरू

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नयी दिल्ली, 20 फरवरी (भाषा) आरएसएस की संस्था सेवा भारती ने जीबी रोड पर रहने वाली महिलाओं की बच्चियों की शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ-साथ उनके व्यक्तित्व के हर पहलू के विकास के लिए ‘अपराजिता’ नाम से एक कार्यक्रम की शुरूआत की है।

संस्था के महासचिव सुशील गुप्ता ने बताया कि गारस्टिन बास्टिन रोड या जीबी रोड में पिछले डेढ़ सौ वर्षों से देह व्यापार होता है। इस दौरान यहां अगर कुछ बदला है तो सिर्फ इसका नाम, जिसे 1965 में स्वामी श्रद्धानंद मार्ग कर दिया गया था। यहां चाहे अनचाहे देह व्यापार में झोंकी गई लड़कियों की सुध लेने वाला कोई नहीं है।

उन्होंने बताया कि पिछले साल संस्था ने पुलिस, उच्च न्यायालय के कुछ अधिवक्ताओं और दिल्ली विश्विवद्यालय के कुछ व्याख्याताओं के सहयोग से ‘अपराजिता’ नाम से एक कार्यक्रम की शुरूआत की।

संस्था ने अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से जीबी रोड पर रहने वाली महिलाओं को इस बात के लिए मनाया कि अपनी बच्चियों के बेहतर भविष्य के लिए वह उन्हें खुद से और इस माहौल से दूर कर दें।

गुप्ता ने कहा कि शुरू में नौ महिलाओं ने इसके लिए सहमति जताई और उनकी पांच से सात साल की बच्चियों के रहने के लिए दक्षिण दिल्ली में साकेत के आनंद निकेतन इलाके में एक फ्लोर किराए पर लिया गया। संस्था से जुड़ी महिला कार्यकर्ताओं ने बच्चियों की देखभाल की जिम्मेदारी संभाली।

संस्था से जुड़ी डॉ. संगीता ने बताया कि शुरू में बच्चियां अपनी मांओं से अलग नहीं रहना चाहती थीं। इसी वजह से कुछ समय बाद दो बच्चियों को वापस भेज देना पड़ा, लेकिन बाकी सात ने धीरे-धीरे नये माहौल को अपनाना शुरू कर दिया। समय समय पर विशेषज्ञों से उनकी काउंसलिंग कराई गई और अब वह सामान्य बच्चियों की तरह पढ़ती, खेलती और शरारतें करती हैं।

इन्हीं बच्चियों में शामिल आकांक्षा की मां दीपमाला ने बताया, ‘‘ शुरू में मन में डर था कि अपनी बेटियों को इन अनजान लोगों के हाथों में कैसे सौंप दें, लेकिन फिर लगा कि यहां भी तो इनका कोई अपना नहीं है और यहां रहते हुए भी उनके साथ कुछ अच्छा तो होने नहीं वाला है। फिर यह उम्मीद भी बंधी कि हमसे दूर जाकर शायद उनका और आगे जाकर हमारा जीवन सुधर सकता है।’’

वीरा और मानवी की मां हिना ने कहा, ‘‘हमारे साथ रहते हुए तो उन्हें हमारे रास्ते पर ही चलना है। अभी छोटी हैं तो कभी कूड़ा बीनती हैं, तो कभी भीख मांगती हैं। बड़ी हो जाएंगी तो इसी अंधेरी दुनिया का हिस्सा बन जाएंगी। किस्मत ने उन्हें एक अच्छी जिंदगी जीने का मौका दिया है, यही सोचकर मैंने अपनी दोनों बेटियों को इनके पास भेजने का फैसला किया।’’

गुप्ता ने बताया कि अभी यह योजना प्रयोग के तौर पर शुरू की गई है और आने वाले समय में इसमें और बच्चियों को भी शामिल किया जाएगा।

भाषा एकता दिलीप नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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