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Thursday, 21 November, 2024
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मोदी, नेहरू, वाजपेयी- किसने लिखी ज्यादा किताबें?

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नेहरू के पत्रों या जेल में लिखी उनकी किताबों से लेकर परीक्षा के तनाव से परेशान छात्रों के लिए मोदी की किताब तक भारत के प्रधानमंत्रियों ने अपनी रचनाओं में विविध विषयों को छुआ है.

नई दिल्ली: भारत के प्रधानमंत्रियों ने अपने विचारों को प्रायः जनता तक पहुंचाने के लिए लेखन का भी सहारा लिया है. अभी हाल में नरेंद्र मोदी ने 2019 में पहली बार मतदाता बनने जा रहे युवाओं को रिझाने की कोशिश में ‘एग्जाम वारियर्स’ लिखी है. यह किताब उन्हें स्वयंसेवक वाले कड़े अनुशासन का पाठ सिखाती है, जिससे उन्हें बोर्ड परीक्षाओं में कामयाबी पाने में मदद मिल सकती है.

‘एग्जाम वारियर्स’ के प्रकाशन से एक लेखक के तौर पर मोदी के अवतार के बारे में चर्चाएं होने लगी हैं. जहां तक संख्या का सवाल है, उन्होंने खुद को एक उर्वर लेखक के रूप में स्थापित कर लिया है. किताबों की संख्या के मामले में मोदी और अटल बिहारी वाजपेयी ने नेहरू को पीछे छोड़ दिया है.

मानस गुरुंग द्वारा चित्रण

किसने क्या लिखा

वाजपेयी ने 11 किताबें लिखी है, जिनमें कई बहुचर्चित कविता संग्रह हैं. मसलन ‘क्या खोया, क्या पाया’(1999) और ‘21 कविताएं’ (2003).
मोदी ने अपनी कविताओं और डायरी की किताबों को मिलाकर 14 किताबें दी है.

नेहरू अंग्रेजी राज के दौरान जेलों में लिखी अपनी किताबों के लिए मशहूर हैं. गौर करने वाली बात यह है कि उन्हें हर दिन निश्चित मात्रा में कागज-कलम दी जाती थी. नेहरू की कृतियों को देश-विदेश में व्यापक प्रशंसा मिली.

मानस गुरुंग द्वारा चित्रण

हालांकि दोनों भाजपा नेताओं ने नेहरू से ज्यादा किताबें दी हैं लेकिन कोई भी नेहरू की 595 पृष्ठ की किताब ‘भारत की खोज’ की बराबरी नहीं कर पाया है, जिसमें उन्होंने प्राचीन काल से लेकर अंग्रेजी राज तक भारत के इतिहास को प्रस्तुत करने में वेदों-उपनिषदों के अपने ज्ञान का उपयोग किया है. नेहरू ने आत्मकथा (1936) के अलावा ‘विश्व इतिहास की झलक’ (1934) नामक पुस्तकें भी लिखी है.

नेहरू की पुत्री तथा भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने चार पुस्तकें लिखी है- ‘माइ ट्रुथ’ (1982), ‘पीपुल ऐंड प्रॉब्लम्स’ (1982), ‘एटरनल इंडिया’ (1980), ‘ऑफ मैन ऐंड हिज एनवायर्मेंट’ (1973). किसानों के मसलों को भारतीय राजनीति की मुख्य धारा में लाने वाले चरण सिंह ने ग्रामीण भारत तथा किसानों की समस्याओं पर आठ पुस्तकें लिखी. ‘इंडियाज इकोनॉमिक पॉलिसी- द गांधियन ब्लूप्रिंट’ (1978) और ‘एबोलीशन ऑफ जमींदारी’ (1947) उनकी सबसे ज्यादा पढ़ी गई किताबें हैं.

वी.पी. सिंह ने 2006 में अपना कविता संग्रह ‘एवरी टाइम आइ वोक अप’ प्रकाशित करवाई, जिसमें प्रेम तथा लगाव पर उनकी भावप्रवण कविताएं शामिल हैं. वे एक कुशल चित्रकार भी थे. उनकी रचनाओं का संकलन तथा प्रसार हुआ. चंद्रशेखर ने भारत की सामाजिक तथा राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर तीन किताबें, और आत्मकथा ‘जिंदगी का करवां’ (2002) भी लिखी. 1977 में उन्होंने अपनी जेल डारी भी प्रकाशित करवाई. पी.वी. नरसिंहराव की तीन किताबें हैं, जिनमें एक बाबरी मस्जिद विध्वंस को लेकर है. प्रधानमंत्री बनने से पहले दो बार विदेश मंत्री रह चुके इंद्र कुमार गुजराल भारतीय विदेश नीति पर जम कर लेखन किया. उनकी किताबें हैं- ‘कंटिन्युइटी ऐंड चेज’ (2003), ‘व्यूप्वाइंट: सिविलाइजेशन, डेमोक्रेसी ऐंड फॉरेन पाॅलिसी’ (2004). उन्होंने आत्मकथा ‘मैटर्स ऑफ डिस्क्रीशन’ (2011) भी लिखी.

शायद किसी प्रधानमंत्री द्वारा सबसे अलग किस्म की किताब लिखी मोरारजी देसाई ने. उन्होंने ‘मिरैकल्स ऑफयूरिन थेरेपी’ किताब लिखी क्योंकि वे मूत्र उपचार का अभ्यास भी करते थे. यह इतना सफल रहा कि उन्होंने इसके फायदे को पाठकों तक पहुंचाना लाजिमी समझा. उन्होने ‘द स्टोरी ऑफ माइ लइफ’ (1974) और ‘नेचर क्योर’ (1978) भी लिखी. प्रख्यात अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने ‘इंडियाज एक्सपोर्ट ट्रेंड्स’ और ‘प्रॉस्पेक्ट्स फॉर सस्टेेन्ड ग्रोथ’ (ऑक्सफोर्ड, 1964) लिखी है. लाल बहदुर शास्त्री, राजीव गांधी और एच.डी. देवेगौड़ा ने कोई किताब नहीं लिखी.

लीक से हट कर

मोदी और वाजपेयी दो मामलं में लीक से हटे नजर आते हैं. दोनों ने राजनीति पर चंद ही ग्रंथ लिखे हैं. उनकी किताबें उनकी कविताओं और निजी अनुभवों की अभिव्यक्तियां हैं. मोदी ने इमरजेंसी के दिनों की अपनी डायरी लिखी है और बताया है कि गुजरात पर उसका क्या प्रभाव पड़ा था. तब वे केवल 25 साल के थे.

गौर करने वाली बात यह भी है कि नेहरू, इंदिरा, गुजरात, राव ने अग्रेजी में लेखन किया जबकि मोदी, वाजपेयी, चरण सिंह, चंद्रशेखर ने हिंदी में. वैसे, कई प्रधानमंत्रियों की किताबों के अनुवाद दूसरी भाषओं में भी प्रकाशित हुए हैं.

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