नयी दिल्ली, 18 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि जब तक धोखाधड़ी या साठगांठ का ठोस साक्ष्य न हो, तब तक सार्वजनिक नीलामी के जरिये तय बिक्री को नहीं रद्द किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के एक फैसले को निरस्त करते हुए यह टिप्पणी की।
पीठ ने कहा कि ‘सार्वजनिक नीलामी के जरिये होने वाली बिक्री को सिर्फ इसी सूरत में रद्द किया जा सकता है, जब यह पाया जाए कि संपत्ति को धोखाधड़ी या साठगांठ की वजह से या किसी ठोस अनियमितता के कारण या नीलामी कराने में अनियमितता की वजह से काफी कम कीमत पर बेच दिया गया है।
पीठ ने कहा, ‘‘सार्वजनिक नीलामी होने और उसके लिए सबसे ऊंची बोली लगने के बाद सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को संपत्ति बेचे जाने के उपरांत,, ऐसी बिक्री को बाद में किसी तीसरे पक्ष से मिली बोली के आधार पर रद्द नहीं जा सकता है, खास तौर से तब जब उसने नीलामी प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लिया हो और सिर्फ नाम के लिए पेशकश की हो और उनकी मंशा बिल्कुल गंभीर नहीं रही हो।’’
आंध्र प्रदेश के एलुरु के मंदिर न्यास के कार्यकारी अधिकारी ने 1997 में खुली नीलामी के जरिए जमीन बेचने के लिए निविदा मंगाई थी।
यह मामला इसी नीलामी से जुड़ा हुआ है।
भाषा अर्पणा दिलीप
दिलीप
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