अहमदाबाद, 18 फरवरी (भाषा) अहमदाबाद की एक विशेष अदालत ने शहर में 2008 में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में 38 दोषियों को शुक्रवार को सजा ए मौत और 11 अन्य को उम्रकैद की सजा सुनायी। इन धमाकों में 56 लोगों की मौत हो गयी थी और 200 से अधिक लोग घायल हो गए थे।
यह पहली बार है, जब इतने दोषियों को किसी अदालत ने एक बार में मौत की सजा सुनाई है। जनवरी 1998 में तमिलनाडु की एक टाडा अदालत ने 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में सभी 26 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी।
न्यायाधीश ए आर पटेल ने धमाकों के करीब 14 साल बाद मामले में सजा सुनायी है। अदालत ने आठ फरवरी को मामले में 49 लोगों को दोषी ठहराया था और 28 अन्य को बरी कर दिया था।
गौरतलब है कि शहर में 26 जुलाई 2008 को 70 मिनट के भीतर एक के बाद एक करके 21 धमाके हुए थे। लोक अभियोजक अमित पटेल ने पत्रकारों को बताया कि अदालत ने 7,000 से अधिक पन्नों के फैसले में मामले को दुर्लभ से दुर्लभतम बताया और 38 दोषियों को फांसी, जबकि 11 अन्य को मौत होने तक उम्रकैद की सजा सुनायी।
अदालत ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून (यूएपीए) के प्रावधानों और भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और धारा 120 बी (आपराधिक षडयंत्र) के तहत 38 को मौत की सजा सुनायी, जबकि 11 अन्य को आपराधिक साजिश और यूएपीए की विभिन्न धाराओं के तहत मौत होने तक उम्रकैद की सजा सुनायी।
अदालत ने 48 दोषियों में से प्रत्येक पर 2.85 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया और एक अन्य पर 2.88 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। न्यायाधीश ए आर पटेल ने धमाकों में मारे गए लोगों को एक-एक लाख रुपये तथा गंभीर रूप से घायलों में से प्रत्येक को 50-50 हजार रुपये तथा मामूली रूप से घायलों को 25-25 हजार रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया।
जिन लोगों को मौत की सजा सुनाई गई उनमें मध्य प्रदेश के निवासी सफदर नागौरी और कमरुद्दीन नागौरी, गुजरात के कयुमुद्दीन कपाड़िया, जाहिद शेख, और शम्शुद्दीन शेख शामिल हैं।
सफदर नागौरी और जाहिद शेख दोनों पर विस्फोटक जुटाने और प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) की अवैध गतिविधियों के लिए धन इकट्ठा करने का आरोप लगाया गया था, कपाड़िया ने जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल करके मोबाइल सिम कार्ड हासिल किए थे और फर्जी पहचान का उपयोग करके होटलों में रुका था।
अहमदाबाद में साबरमती केंद्रीय कारागार, दिल्ली में तिहाड़, भोपाल, गया, बेंगलुरू, केरल और मुंबई समेत आठ अलग-अलग जेलों में बंद सभी दोषी वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए सुनवाई के वक्त मौजूद रहे।
लोक अभियोजक ने कहा, ‘‘मैं कह सकता हूं कि यह ऐसा मामला है, जिसमें सबसे अधिक संख्या में दोषियों को मौत की सजा सुनाई गयी। इससे पहले एक मामले में 26 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई थी, लेकिन इस मामले में 38 लोगों को मौत की सजा सुनाई गयी है।’’ लोक अभियोजक राजीव गांधी हत्याकांड का हवाला दे रहे थे।
अदालत ने पिछले साल सितंबर में 77 आरोपियों के खिलाफ मुकदमे की सुनवाई पूरी की थी। कुल 78 आरोपियों में से एक सरकारी गवाह बन गया था। प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन (आईएम) से जुड़े 77 लोगों के खिलाफ दिसंबर 2009 में मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई थी।
एक वरिष्ठ सरकारी वकील ने बताया कि बाद में चार और आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उनका मुकदमा अभी शुरू नहीं हुआ है।
अहमदाबाद में सरकारी सिविल अस्पताल, अहमदाबाद नगर निगम द्वारा संचालित एलजी हॉस्पिटल, बसों में, पार्किंग में खड़ी मोटरसाइकिलों, कारों तथा अन्य स्थानों पर धमाके हुए थे। इन धमाकों के अगले कुछ दिनों बाद सूरत में 29 और बम मिले थे, लेकिन उनमें से किसी में भी विस्फोट नहीं हुआ था।
अदालत ने अहमदाबाद की 20 प्राथमिकी और सूरत की 15 प्राथमिकी को मिलाने के बाद मुकदमा चलाया। राज्य सरकार ने तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त (जेसीपी) आशीष भाटिया की निगरानी में अहमदाबाद अपराध शाखा को जांच स्थानांतरित कर दी थी। भाटिया अब गुजरात के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) हैं।
मामले में अब तक नौ अलग-अलग न्यायाधीशों ने सुनवाई की। मामले में सजा सुनाने वाले विशेष न्यायाधीश ए आर पटेल ने 14 जून 2017 को सुनवाई शुरू की थी। शुरुआत में सुनवाई न्यायाधीश बेला त्रिवेदी ने की थी, जिनकी अदालत में 15 फरवरी 2010 को आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए गए थे। न्यायमूर्ति त्रिवेदी अब उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश हैं।
पुलिस ने दावा किया था कि प्रतिबंधित स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का एक धड़ा आईएम के सदस्य इन धमाकों के पीछे थे। जांच करने वाले अधिकारियों ने कहा था कि आईएम ने गुजरात में 2002 में हुए गोधरा दंगों का बदला लेने के लिए धमाकों की साजिश रची थी। गोधरा दंगों में एक हजार से अधिक लोग मारे गए थे, जिनमें से ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के थे।
धमाकों में जीवित बचे लोगों और मृतकों के परिजनों ने दोषियों को मृत्युदंड और उम्रकैद की सजा देने के अदालत के फैसले का स्वागत किया।
कॉलेज में पढ़ रहे यश व्यास धमाकों के समय नौ साल के थे। वह असरवा इलाके के सिविल अस्पताल के ट्रॉमा वार्ड में बम विस्फोट के बाद गंभीर रूप से झुलस गए थे। व्यास ने कहा कि वह और उनकी मां पिछले 13 सालों से न्याय का इंतजार कर रहे थे।
बीएससी द्वितीय वर्ष के छात्र व्यास (22) ने कहा, ‘‘मुझे खुशी है कि अदालत ने मेरे पिता और भाई सहित निर्दोष लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार 38 लोगों को मौत की सजा सुनाई। जिन 11 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई उन्हें भी मौत की सजा मिलनी चाहिए थी। ऐसे लोगों के लिए कोई दया नहीं होनी चाहिए।’’
भाषा आशीष नरेश
नरेश
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