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Friday, 15 November, 2024
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अहमदाबाद विस्फोट: पीड़ितों ने किया अदालत के फैसले का स्वागत

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अहमदाबाद, 18 फरवरी (भाषा) अहमदाबाद में 2008 में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में जीवित बचे लोगों और मृतकों के परिजनों ने दोषियों को मृत्युदंड और उम्रकैद की सजा देने के अदालत के फैसले का स्वागत किया। हालांकि कुछ का कहना था कि इस मामले में सभी दोषियों को मृत्यु दंड मिलना चाहिए था।

एक विशेष अदालत ने शुक्रवार को 26 जुलाई 2008 को 70 मिनट के अंतराल में हुए 21 विस्फोटों के लिए 38 लोगों को मौत की सजा और 11 अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इन धमाकों में 56 लोग मारे गए थे और 200 से अधिक घायल हुए थे।

इस समय कॉलेज में पढ़ रहे यश व्यास धमाकों के समय 9 साल के थे। वह असरवा इलाके के सिविल अस्पताल के ट्रॉमा वार्ड में बम विस्फोट के बाद गंभीर रूप से झुलस गए थे।

व्यास ने कहा कि वह और उनकी मां पिछले 13 सालों से न्याय का इंतजार कर रहे थे।

बीएससी द्वितीय वर्ष के छात्र व्यास (22) ने कहा, ”मुझे खुशी है कि अदालत ने मेरे पिता और भाई सहित निर्दोष लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार 38 लोगों को मौत की सजा सुनाई। जिन 11 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई उन्हें भी मौत की सजा मिलनी चाहिए थी। ऐसे लोगों के लिए कोई दया नहीं होनी चाहिए।”

यश का अस्पताल की गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) में चार महीने तक इलाज चला था। वह 50 प्रतिशत तक झुलस चुके थे और विस्फोट के प्रभाव के कारण उनके सुनने की क्षमता आंशिक रूप से प्रभावित हुई थी।

यश के पिता दुष्यंत व्यास, सिविल अस्पताल परिसर में स्थित एक कैंसर चिकित्सा सुविधा में लैब तकनीशियन थे और बदकिस्मती से उस दिन, अपने दो बेटों को साइकिल चलाना सिखाने के लिए अस्पताल के एक खुले मैदान में ले गए थे।

यश ने कहा, ”शाम के लगभग 7.30 बजे, जब मेरे पिता ने देखा कि शहर के एक अन्य क्षेत्र में हुए विस्फोट के पीड़ितों को एम्बुलेंस में लाया जा रहा है तो उन्होंने उनकी मदद करने का फैसला किया। जैसे ही हम सिविल अस्पताल के ट्रॉमा वार्ड के पास पहुंचे, वहां एक विस्फोट हुआ जिसमें मेरे पिता और 11 वर्षीय भाई की तत्काल मौत हो गई।”

शहर के अन्य हिस्सों में हुए विस्फोटों में घायल लोगों को सिविल अस्पताल में लाया जा रहा था। इस दौरान हुए दो विस्फोटों ने ट्रॉमा सेंटर को तहस-नहस कर दिया, जिसमें मरीजों और उनके तीमारदारों, चिकित्सा कर्मचारियों और राहगीरों की मौत हो गई।

पीड़ितों में सिविल अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर प्रेरक शाह और उनकी गर्भवती पत्नी किंजल शामिल हैं। दोनों किंजल के मेडिकल चेकअप के लिए सिविल अस्पताल के स्त्री रोग वार्ड में आए थे।

मोडासा कस्बे के निवासी प्रेरक के पिता रमेश शाह ने कहा, ”मैं इस फैसले का स्वागत करता हूं। मुझे हमेशा पुलिस और न्यायपालिका पर भरोसा था कि एक दिन मुझे न्याय मिलेगा। हालांकि, मुझे लगता है कि सभी 49 दोषियों को मौत की सजा दी जानी चाहिए थी। फिर भी, मैं संतुष्ट हूं कि 38 को फांसी दी जाएगी।”

पुराने शहर के रायपुर चकला इलाके में एक दुकान में सैंडविच बेचने वाले जगदीश कादिया ने कहा कि दुकान के निकट हुए विस्फोट में उनकी पत्नी हसुमति कादिया की मौत हो गई।

जगदीश (65) ने कहा, ‘’धमाके के कारण करीब 19 नुकीले छर्रे मेरी पत्नी के शरीर में घुस गए। मैं रोजाना अपनी पत्नी को याद करता हूं और तब से एकाकी जीवन जी रहा हूं। मुझे पक्का यकीन है कि जिन 11 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है, उन्हें भी मौत की सजा मिलेगी।‘’

भाषा जोहेब नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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