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Thursday, 21 November, 2024
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आपको लगता है कि महंगाई बहुत है? इंतज़ार कीजिए जब चुनावों के बाद पेट्रोल-डीज़ल के दाम उछलेंगे

भारत में उपभोक्ताओं ने 4 नवंबर के बाद से, बढ़ती वैश्विक क़ीमतों से कृत्रिम राहत महसूस की है- कच्चे तेल की क़ीमतें लगभग 14 डॉलर प्रति बैरल बढ़ गईं हैं, और तेल कंपनियों को अपने नुक़सान की भरपाई करनी है.

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नई दिल्ली: तीन महीने से अधिक से पेट्रोल और डीज़ल की स्थिर क़ीमतों का मज़ा ले रहे उपभोक्ता, मार्च में एक बड़े झटके की अपेक्षा कर सकते हैं.

बढ़ती तेल क़ीमतों से कृत्रिम राहत और कई राज्यों में राजनीतिक रूप से प्रभावित स्थायी रोलबैक की जगह, 7 मार्च को उत्तर प्रदेश असेम्बली के आख़िरी दौर के चुनावों के बाद, बहुत से कारणों से क़ीमतों में भारी वृद्धि की जा सकती है.

कुछ बाज़ार विशेषज्ञ अपेक्षा कर रहे हैं कि पेट्रोल डीज़ल के लिए ये इज़ाफा 8 रुपए प्रति लीटर तक हो सकता है, चूंकि 4 नवंबर के बाद से-जब भारत में खुदरा विक्रेताओं ने आख़िरी बार घरेलू दामों में बदलाव किया था- विश्व बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमतें लगभग 14 डॉलर बढ़ चुकीं हैं और तेल कंपनियों को अभी तक हुए घाटे की भरपाई करनी है.

विश्लेषकों को डर है कि इससे महंगाई में और ज़्यादा इज़ाफा हो सकता है, जो पहले ही आरबीआई की 2 प्रतिशत से 6 प्रतिशत के बीच की, आरामदायक स्थिति की ऊपरी सीमा को पार कर चुकी है, जब तक कि केंद्र और राज्य सरकारें एक बार फिर, पेट्रोल और डीज़ल पर करों में कटौती नहीं करतीं.

भारत जो कच्चा तेल आयात करता है, उसके दाम सोमवार को बढ़कर 94.54 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गए, जो पेट्रोलियम योजना एवं विश्लेषण प्रकोष्ठ के आंकड़ों के अनुसार, अक्तूबर 2014 के बाद से सबसे ऊंचा स्तर है. कच्चे तेल के दाम इसलिए बढ़े थे कि यूक्रेन और रूस के बीच भू-राजनीतिक तनाव से, माल कम होने के कारण सप्लाई की चिंताएं बढ़ गईं थीं. लेकिन अब रूस यूक्रेन के पास से अपने कुछ बल पीछे खींच रहा है, जिससे वैश्विक क़ीमतें थोड़ा कम हो सकती हैं.

2014 में ईंधन की क़ीमतों को पूरी तरह अविनयमित कर देने के बाद से, भारत में तेल कंपनियां अपनी क़ीमतों को, अंतर्राष्ट्रीय दामों के साथ मिलाने के लिए क़ानूनी रूप से स्वतंत्र हैं, लेकिन लोगों की प्रतिक्रिया के डर से, आमतौर पर चुनावों से पहले वो क़ीमतों को स्थिर कर देती हैं.

पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (ओपेक) जो काफी हद तक, भारत को होने वाली कच्चे तेल की आपूर्ति को नियंत्रित करता है, उसने पिछले हफ्ते कहा कि इस साल दुनिया भर में, तेल की मांग और ज़्यादा बढ़ सकती है, चूंकि विश्व अर्थव्यवस्था मज़बूती से पटरी पर आ रही है.

हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लि. के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक मुकेश कुमार सुराना ने, पिछले महीने एक सार्वजनिक आयोजन में कहा, कि सरकारी खुदरा विक्रेता इसलिए दाम नहीं बढ़ा रहे हैं, कि वैश्विक क़ीमतें अत्यंत अस्थिर हैं, और ऐसे परिदृश्य में क़ीमतों में परिवर्तन, रोज़ाना की दरों में बदलाव के उद्देश्य के खिलाफ जाएगा.

सुराना ने दावा किया था, ‘क़ीमतों को लेकर संवेदनशीलता रहती है. इसलिए जब दाम बढ़ाए जाते हैं तो चिंताएं पैदा होती हैं, इसलिए हम सुनिश्चित कर रहे हैं, कि उपभोक्ताओं को कम से कम असुविधा हो’. उन्होंने आगे कहा था कि रोज़ाना के आधार पर करने की बजाय, फिलहाल खुदरा फ्यूल विक्रेता क़ीमतों को, एक ‘अवधि के दौरान’ सीध में लाने की कोशिश कर रहे हैं.


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चुनावों के बाद बढ़ सकते हैं दाम, सरकारी हस्तक्षेप की अपेक्षा

विशेषज्ञों के लगाए हिसाब से पता चलता है, कि अगर कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय क़ीमतें वर्तमान स्तर पर बनी रहती हैं, तो पेट्रोल और डीज़ल के दाम 7-8 रुपए प्रति लीटर तक बढ़ सकते हैं. उपभोक्ता पर बोझ कम करने के लिए, सरकार को अपनी वित्तीय स्थिति के हिसाब से, कुछ वृद्धि को सोखना होगा.

निजी अनुमानों के अनुसार, कच्चे तेल की विश्व क़ीमतों में एक डॉलर के इज़ाफे से, पेट्रोल और डीज़ल की घरेलू दरों में 45 पैसे की वृद्धि होती है.

मुम्बई-स्थित सुनिधि सिक्योरिटीज़ के अर्थशास्त्री सिद्धार्थ कोठारी ने कहा, ‘अंतर्राष्ट्रीय क़ीमतों में हालिया उछाल ने भारतीय क्रूड ऑयल बास्केट को भी, 94.55 डॉलर प्रति बैरल पहुंचा दिया है. उसकी वजह से पेट्रोल और डीज़ल की खुदरा क़ीमतों को, कम से कम 7.50-8.00 रुपए प्रति लीटर की दर से बढ़ाना पड़ सकता है. वास्तविक बोझ को शुल्क का अंश घटाकर कम किया जा सकता है, भले ही उससे सरकारी ख़ज़ाने पर असर पड़ता हो’.

खुदरा दामों में वास्तविक वृद्धि कितनी होगी, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है, क्योंकि अपेक्षा है कि सरकार पेट्रोल और डीज़ल पर उत्पाद शुल्क घटाकर, कुछ हद तक दामों में वृद्धि को सोख सकती है, जैसा पिछले साल किया गया था.

मुम्बई-स्थित क्वांटईको रिसर्च की एक रिपोर्ट में कहा गया, कि घरेलू दरों को अंतर्राष्ट्रीय क़ीमतों के साथ मिलाना होगा, जो मुख्य रूप से भू-राजनीतिक कारकों की वजह से, 36 प्रतिशत बढ़ गई हैं.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘2021-22 की वास्तविक वित्तीय स्थिति, और संशोधित अनुमान को देखते हुए, सरकार इस बोझ के कुछ हिस्से को सोखने का फैसला कर सकती है, लेकिन अभी तक इस मोर्चे पर कोई स्पष्टता नहीं है’.

4 नवंबर से क़ीमतें नहीं बदलीं

पेट्रोल और डीज़ल के दामों में 4 नवंबर के बाद से मोटे तौर पर कोई बदलाव नहीं हुआ है. राष्ट्रीय राजधानी में पेट्रोल 95.41 रुपए प्रति लीटर, और डीज़ल 86.67 रुपए प्रति लीटर बिकता है. मुम्बई में पेट्रोल 109.98 रुपए प्रति लीटर, और डीज़ल 94.14 रुपए प्रति लीटर बिक रहा है. राज्यों की लेवी के हिसाब से, इन दोनों की क़ीमतें देश भर में अलग अलग होती हैं.

दो सरकारी कंपनियां- भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लि. और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड, क़ीमतों में परिवर्तन के मामले में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन का अनुसरण करती हैं.

3 नवंबर को खुदरा क़ीमतों को रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने से रोकने के लिए, केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीज़ल पर उत्पाद शुल्क में, क्रमश: 5 और 10 रुपए की भारी कटौती की थी. उसके बाद उपभोक्ताओं को और राहत देने के लिए, बहुत से राज्यों में वैल्यू एडेड टैक्स में भी कटौती की गई.

ईंधन की क़ीमतें कई प्रमुख कारकों पर निर्भर करती हैं, जिनमें कच्चे तेल की क़ीमतों में उतार-चढ़ाव, भारतीय रुपए और अमेरिकी डॉलर की विनिमय दरें, और टैक्स दरें शामिल हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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