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Sunday, 17 November, 2024
होमदेशISIS में शामिल कम से कम 40 भारतीय मिडिल-ईस्ट के जेल कैंप्स में, घर लौटने के उनके हर रास्ते हुए बंद

ISIS में शामिल कम से कम 40 भारतीय मिडिल-ईस्ट के जेल कैंप्स में, घर लौटने के उनके हर रास्ते हुए बंद

आईएस में शामिल होने वाले ज्यादातर भारतीय प्रवासी हैं, और माना जा रहा है कि उन्हें कुर्द सेना के शिविरों और तुर्की और लीबिया की जेलों में रखा गया है. भारत सरकार उन्हें कोई राजनयिक सहायता नहीं देती है.

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नई दिल्ली: लंबे समय से कुवैत में बसे एक सिविल इंजीनियर का बेटा टेक्सास के कॉलिन कॉलेज से कंप्यूटर साइंस में अपनी डिग्री लगभग पूरी होने के बाद हैदराबाद में अपने घर लौटकर आया. उस समय तलमीजुर रहमान किसी मैट्रीमोनियल एड के लिए एकदम उपयुक्त उम्मीदवार था, फिर, 2014 में अपने घर की यात्रा के अंत में गर्मियों में एक सुबह उसने मुंबई से इस्तांबुल के लिए एक उड़ान पकड़ी—और इस्लामिक स्टेट की दुनिया में कहीं गायब हो गया.

सरकार और खुफिया सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि रहमान को कम से कम तीन सालों से कोई मुकदमा चलाए बिना कुर्द सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेस (एसडीएफ) के नियंत्रण वाले हसाका के पास अल-शदादी जेल शिविर में बंद कर रखा गया है. वहां इस्लामिक स्टेट के करीब 600 अन्य सदस्यों को भी रखा गया है.

माना जा रहा है कि कम से कम 40 अन्य भारतीय नागरिकों—जो ज्यादातर मध्य पूर्व में रहने वाले प्रवासी हैं और उनमें लगभग आधे बच्चे या महिलाएं हैं—को फिलहाल अल-शदादी और एसडीएफ संचालित घेवेरान और अल-हॉल जैसे अन्य शिविरों के साथ-साथ तुर्की और लीबिया की जेलों में रखा गया है.

कई अन्य देशों की तरह भारत ने भी इस्लामिक स्टेट के कैदियों को कोई राजनयिक सहायता न देने का फैसला कर रखा है—जिसकी एक वजह एसडीएफ शासन को कोई औपचारिक मान्यता न दिया जाना भी है.

हैदराबाद के एक बुजुर्ग मोहम्मद मोइजुद्दीन, जिन्हें 2018 में पता चला कि उनका बेटा मोहम्मद इकरामुद्दीन लड़ाई में मारा गया और उनकी बहू अर्जुमंद बानो अपने छोटे बच्चों के साथ अल-हॉल शिविर में है, ने कहा, ‘मेरे जैसे परिवारों के लिए स्थिति बेहद दर्दनाक है.’

एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘सरकार का मानना है कि वास्तव में ये अनुमान लगाना कठिन है कि क्या इन्हें सही ढंग से दोषी करार दिया जा सकेगा और ऐसे प्रशिक्षित, युद्ध में शामिल रहे जिहादियों की सामुदायिक वापसी की उम्मीद करना बेमानी है.’


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इस्लामिक स्टेट के भारतीय टेक्नोक्रेट्स

उस क्षेत्र में पकड़े गए भारतीयों के बारे में थोड़ा-बहुत जो ब्योरा उपलब्ध है, जिससे पता चलता है कि इसमें से कुछ उच्च शिक्षित हैं, और इनकी तरफ से महत्वपूर्ण तकनीकी और प्रबंधकीय कौशल में इस्लामिक स्टेट की मदद की गई है. उदाहरण के तौर पर, इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर सैयद मुहम्मद अर्शियान हैदर—जिसका जन्म रांची में हुआ था, उसने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में पढ़ाई की और अब तुर्की में कैद हैं—के बारे में माना जाता है कि उसने इस्लामिक स्टेट को आत्मघाती-ड्रोन सिस्टम के साथ-साथ कम दूरी वाला रॉकेट डिजाइन करने में मदद की.

माना जाता है कि लंबे समय तक सऊदी अरब के दम्मम में रहा हैदर ग्लैमरगन-प्रशिक्षित कंप्यूटर इंजीनियर और बांग्लादेशी मूल के एक नेटवर्क सिफुल हक सुजान और एक पाकिस्तानी नागरिक साजिद बाबर से जुड़ा था, जो दोनों ही रक्का में इस्लामिक स्टेट पर ड्रोन हमलों के दौरान मारे गए थे.

सूत्रों ने कहा कि हैदर के बारे में माना जाता है कि उसने इस्लामिक स्टेट के ड्रोन के लिए सीरिया में जन्मे इब्राहिम हाग गनीड द्वारा संचालित फ्रंट-कंपनियों के नेटवर्क के जरिये इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट जुटाए थे और पिछले हफ्ते ही खुलासा हुआ कि वह उन कुछ विदेशी जिहादियों में से एक है जिसे संदिग्ध परिस्थितियों में तुर्की की नागरिकता दी गई.

फिलहाल, हैदर की बेल्जियम मूल की जातीय-चेचन पत्नी अलीना हैदर या उनके दो छोटे बच्चों के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. दिप्रिंट की हैदर के रिश्तेदारों से संपर्क करने की कोशिश भी नाकाम रही, रांची में उनका घर बंद मिला और पड़ोसियों ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि ये परिवार कहां चला गया है.

वहीं, एक अन्य प्रमुख इस्लामिक स्टेट टेक्नोक्रेट आदिल फैयाज वाडा के बारे में बताया जाता है कि वह एसडीएफ संचालित शिविर में बंद है. वह श्रीनगर के एक प्रभावशाली कांट्रैक्टर और सुपरमार्केट चेन के मालिक का बेटा है, जो ब्रिस्बेन में अपना एमबीए पूरा करने के बाद इस्लामिक स्टेट में शामिल हो गया था. माना जाता है कि वाडा को इस्लामिक स्टेट में शामिल कराने के लिए ऑस्ट्रेलियाई इस्लामिस्ट हम्दी अल-कुदसी ने भर्ती किया था, जिसे बाद में अपनी आतंकी गतिविधियों के लिए आठ साल जेल की सजा सुनाई गई थी.

कश्मीर में रहने के दौरान वाडा के विचार जिहादी समर्थक नहीं थे. 2010 में उसने कश्मीर के अलगावादी नेता सैयद अली शाह गिलानी को एक सख्त खुला पत्र लिखा था, जिसमें उन पर ‘बेवजह बयानबाजी’ करने का आरोप लगाया गया था. इसमें कहा गया है था कि ‘न तो बेकार की इस बयानबाजी पर कोई ध्यान देता और न ही इसकी कोई परवाह करता है. यह कश्मीर से शुरू होती है और उसी पर खत्म होती है, दुनिया में कहीं इसकी कोई परवाह नहीं की जाती.’

अन्य कथित जिहादियों की पृष्ठभूमि भी कुछ ऐसी ही है. कनाडा के स्थायी निवासी तैय्यब शेख मीरान, जिसका परिवार तमिलनाडु के वेल्लोर से ताल्लुक रखता है, हेवलेट-पैकर्ड के लिए काम कर रहा था, जब वह 2015 में अपने परिवार के साथ खिलाफत के लिए निकल पड़ा. शोएब शफीक अनवर ने सऊदी अरब की एक यूनिवर्सिटी में अपनी इंजीनियरिंग पोस्ट को छोड़ दिया था और अपनी पत्नी सूफिया मुकीत के साथ इस्लामिक स्टेट में शामिल हो गया था. माना जा रहा है कि दोनों अब जेल में बंद हैं.

इस्लामिक स्टेट की तरफ से 2016 में जारी एक आधिकारिक वीडियो में खिलाफत में शामिल तलमीजुर रहमान सहित तमाम भारतीय जिहादियों, जिसमें 2008 में पाकिस्तान भागे इंडियन मुजाहिदीन आतंकी समूह के कई सदस्य भी शामिल थे, ने जिहाद के लिए घर लौटने की मंशा जताई थी. एक अज्ञात जिहादी ने कहा, ‘हमारी गतिविधियों के बारे में जानने के इच्छुक भारतीय राज्य में लोगों से मैं यही कहना चाहता हूं कि आपके पास केवल तीन विकल्प हैं: इस्लाम स्वीकार करें, जजिया कर दें, या फिर मरने के लिए तैयार रहें.’

इस्लामिक स्टेट सदस्यों के परिवार

बहरहाल, इराक, सीरिया और बहुराष्ट्रीय सेनाओं के लगातार हमलों ने खिलाफत की कल्पना पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर दी. मोइजुद्दीन का बेटा इकरामुद्दीन सऊदी अरब में एक दशक से अधिक समय से अच्छे-खासे वेतन वाली नौकरी कर रहा था जब वह अपनी पत्नी अर्जुमंद बानो और दो बच्चों के साथ इस्लामिक स्टेट चला गया. हालांकि, उसके यह फैसला लेने के कारणों का कुछ पता नहीं चल पाया है. खुफिया सूत्रों के मुताबिक अर्जुमंद और बच्चे अब अल-हॉल में हैं.

अल-हॉल एक विशाल जेल शिविर है, जिसमें दुनियाभर के हजारों परिवार रहते हैं, और इसे एक तरह से इस्लामिक स्टेट का मिनी-स्टेट करार दिया जाता है, जहां संगठन में उच्च स्थिति रखने वाली महिलाएं इसके कोड लागू करा रही हैं, बच्चों को तैयार कर रही हैं. वहीं, अधिकारियों के साथ सहयोग करने वालों को मौत के घाट भी उतारा जा रहा है.

सरकारी सूत्रों ने बताया कि वहां के भारतीय कैदियों में अमानी फातिमा और उनका बेटा भी शामिल हैं, जिसने अपने पति नसीम खान के साथ इस्लामिक स्टेट में कदम रखा था. ठाणे से इंजीनियरिंग ग्रेजुएट नसीम खान बहरीन जाने से पहले दिल्ली मेट्रो में काम करता था. परिजनों ने इस मामले पर चर्चा से इनकार कर दिया, लेकिन एक ने ऑफ द रिकॉर्ड कहा कि उन्हें अमानी से समय-समय पर संदेश मिलते रहते थे.

सूत्रों के अनुसार, फबना नालकथ के भी इसी तरह के किसी शिविर में होने की संभावना है, जिसने 2013 में जन्मी बेटी हन्या पेरुंकलेरी को लेकर अपने पति मोहम्मद मंसूर पेरुंकल्लेरी के साथ इस्लामिक स्टेट क्षेत्र में कदम रखा था.

ऐसे कई अन्य मामले भी हैं जहां परिवारों को इसका कोई अंदाजा नहीं है कि उनके प्रियजनों के साथ क्या हुआ. कतर में रहने और काम करने के दौरान रितिका शेट्टी की मुलाकात भारतीय मूल के एक व्यक्ति मोहम्मद कामिल सुल्तान से हुई थी, जिसका स्कूल एथलीट के तौर पर एक शानदार रिकॉर्ड था. दिसंबर, 2013 में दोनों ने तुर्की के रास्ते सीरिया की यात्रा की. अब, इस जोड़े के एसडीएफ संचालित अलग-अलग जेलों में होने का संदेह है.

2017 की शुरुआत में कन्नूर मूल की रिजवाना कलाथिल ने भी इसी तरह अपने दुबई स्थित घर को बंद किया और पति मोहम्मद जुहैल और बच्चों रेयान, रेहान और बिंत जोहा के साथ इस्लामिक स्टेट रवाना हो गई. सूत्रों ने बताया कि कलाथिल और बच्चे अब अल-हॉल में हैं.

एक त्रुटिपूर्ण नीति?

हालांकि, बंदियों को मुक्त करने के लिए सीरिया के जेल शिविरों पर जिहादी हमलों के बीच कैदियों के प्रत्यावर्तन की मांग न करने का भारत का निर्णय बढ़ती चिंता का कारण बनता जा रहा है. पिछले साल, तालिबान ने काबुल में बादाम बाग महिला जेल और कुख्यात पुल-ए-चरखी जेल में बंद इस्लामिक स्टेट से जुड़े कम से कम 22 भारतीय नागरिकों को मुक्त करा दिया था. उनमें से एक कश्मीरी जिहादी एजाज अहंगर को भारतीय मूल के आत्मघाती हमलावरों का एक नेटवर्क चलाने का जिम्मेदारा माना जाता है.

पिछले महीने, इस्लामिक स्टेट के हमले के कारण घवेरान जेल में सशस्त्र संघर्ष छिड़ा और कई बड़े जिहादियों को भाग निकलने का मौका मिल गया. यह जेल अल-शदादी से थोड़ी दूरी पर ही है, जहां तलमीजुर रहमान को रखा गया है.

एक भारतीय खुफिया अधिकारी ने कहा, ‘सबसे खराब स्थिति यह है कि जेल में बंद भारतीय नागरिक जिहादी हमलों के कारण मुक्त हो जाते हैं, या फिर कुछ और तरीकों से इन जेल शिविरों से बाहर आ जाते हैं और फिर फर्जी यात्रा दस्तावेज हासिल कर लेते हैं. भले ही हम उन्हें दोषी ठहराने में सफल न हो पाएं लेकिन उनकी गतिविधियों पर नजर रखना तो संभव है.’

हालांकि, हैदराबाद-मूल की कतर निवासी जेबा फरहीन जैसे कुछ मामलों में पुलिस बलों ने मुकदमे के बजाये इस्लामिक स्टेट की यात्रा करने वाले लोगों के पुनर्वास की मांग की है. खुफिया अधिकारी ने कहा, ‘अभी तक उनके खिलाफ अपराध से जुड़ा कोई बड़ा मामला सामने नहीं आया है.’

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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