(प्रदीप्त तापदार)
कोलकाता, 16 फरवरी (भाषा) तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के अंदर हाल में आसन्न आंतरिक बगावत को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति में बदलाव के जरिए कुचलने वाली टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने एक बार साबित कर दिया कि अपने दल में वह एकमात्र नेतृत्वकर्ता हैं। साथ ही, उनके संभावित उत्तराधिकारी अभिषेक बनर्जी सहित पार्टी में कोई भी नेता उनके वर्चस्व को चुनौती देने के लिए उपयुक्त नहीं है।
टीएमसी के 24 साल के सफर में जब कभी पार्टी में कुछ नेताओं ने बगावत की, ममता ने हमेशा ही कहीं अधिक मजबूती के साथ वापसी की और इस बार भी उन्होंने पार्टी के पुराने और युवा नेताओं के बीच आंतरिक कलह के बीच अभिषेक के पर कतरने में जरा भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक हालिया सत्ता संघर्ष की जड़ उनके पड़ोस में थी। दरअसल, सेवानिवृत्ति की एक निश्चित उम्र और एक व्यक्ति एक पद की नीति के लिए मांग बढ़ रही थी। इस मांग का उद्देश्य पार्टी के पुराने नेताओं को चरणबद्ध तरीके से हटा कर अभिषेक द्वारा चुने गये युवा नेताओं के लिए जगह बनाना था।
पार्टी नेताओं के एक वर्ग ने दावा किया कि अभिषेक को राजनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर और उनकी आई-पैक टीम ने ‘‘गुमराह’’ किया।
बढ़ती बगावत को खत्म करने की अपनी कोशिश के तहत टीएमसी प्रमुख ने शीघ्रता से राष्ट्रीय स्तर की समिति को भंग कर दिया और महज 20 सदस्यों वाली एक नयी कार्यकारी समिति का गठन किया। उन्होंने इसके जरिए अपने खेमे में निर्णय लेने में सक्षम खुद को एकमात्र व्यक्ति के तौर पर प्रभावी रूप से प्रदर्शित किया।
घटनाक्रम से करीबी रूप से जुड़े पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘‘अभिषेक की भूमिका को कमतर करना और आई-पैक से दूरी बनाना खेमे में असंतोष को खत्म करने के लिए जरूरी था। ममता ने पूरे प्रकरण का इस तरह निपटारा कर दिया, जैसे कि लड़ाई शुरू होने से पहले ही जीत ली गई हो।’’
हालांकि, अभिषेक को भी 20 सदस्यीय समिति में शामिल किया गया, लेकिन इसमें ममता के प्रति निष्ठा रखने वाले भरे हुए हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और डायमंड हार्बर सांसद अभिषेक ने एक शपथपत्र पर हस्ताक्षर कर ममता के नेतृत्व में अपना पूरा विश्वास प्रकट किया।
भाषा
सुभाष पवनेश
पवनेश
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