रायसीना डॉयलॉग में चारों देशों के सैन्य नेताओं ने भारत-अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया समूह के बारे में खुलकर बात-चीत की. यह चीन को एक स्पष्ट संदेश भेजता है.
इस सप्ताह बहुत गंभीर रायसीना डॉयलॉग (वार्ता) में एक चीनी प्रतिनिधि द्वारा पूछे गये एक ‘अबोध’ प्रश्न ने थोड़े समय के लिए माहौल को हल्का कर दिया. शंघाई से आए एक वरिष्ठ शोधकर्ता जानना चाहते थे कि क्या बीजिंग भी भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के ‘क्वाड्रीलैटरल’ समूह की सदस्यता के लिए आवेदन कर सकता है या नहीं.
इस सवाल ने कुछ चुस्कियां जरूर उत्पन्न कर दीं, लेकिन इस बात को किसी ने समाप्त नहीं किया. चारों देशों के शीर्ष सैन्य नेताओं के पैनल के जवाबों में कोई कठोरता या झिझक नहीं दिखाई दी. पुराने कूटनीतिक पाखण्ड और सतर्कता से व्यवहारमूलक स्पष्टता और दृढ़ता की उत्पत्ति हुई.
शब्द, जिसे स्वीकृत शब्दावली बनाने के लिए कभी भी नहीं कहा जाना चाहिए, वो अब क्षेत्र में बढ़ते चीनी प्रभाव के लिए भारत के दृष्टिकोण का वर्णन करता है – पिछले दो सालों में ‘क्वाड्रीलैटरल’ ने बहुत लंबा सफर तय किया है.
अभी तक कोई भी इसे एक गठबंधन नहीं कहना चाहता है, लेकिन ‘समान विचारधारा वाले राष्ट्रों का संघ’ अब निश्चित रूप से अपने स्थान पर है. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि इस क्षेत्र का सबसे बड़ा देश चीन अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के नियमों के अनुसार चले और अपनी प्रभावशाली आर्थिक ताकत के बल पर अपने आसपास के छोटे राष्ट्रों को धौंस न दे.
सवाल यह है कि क्या भारत इसका नेतृत्व कर सकता है? इसके लिए मुश्किल निर्णय अत्यंत आवश्यक हैं जैसे कि नौसेना में बड़े पैमाने पर निवेश और भारत की द्वीप श्रृंखलाओं की क्षमता को खोलना.
क्वाड वार्ता वार्षिक रायसीना डॉयलॉग पर केंद्रित थी – जो विदेश नीति पर भारत का शीर्ष मंच बन गया है – और तीन मुख्य बिन्दु यह दर्शाते हैं कि इसका क्या मतलब है और चुनौतियों का सामना कैसे किया जा सकता है.
सैन्य बढ़त
भारतीय सेना प्रमुख, जनरल बिपिन रावत ने सम्मेलन के कुछ दिन पहले क्वाड के बारे में हर प्रकार के संदेह को स्पष्ट कर दिया था. अपनी वार्षिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, जनरल ने भारत के आसपास के देशों में बीजिंग के बढ़ते हस्तक्षेप के बारे में चिंता व्यक्त की, जिसमें समझाया गया कि ‘क्वाड्रीलैटरल’ को “दबंग चीन” को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है; यद्यपि यह कोई गठबंधन नहीं है, लेकिन “हम एशिया में पूरी तरह से अलग नहीं हैं” इस बात को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रों का एक समूह है.
दुनिया भर में ऐसी कई संस्थाएं मौजूद हैं, लेकिन जो क्वाड को इन सब से हटकर बनाता है वह अनकहा है, लेकिन यह बहुत स्पष्ट सैन्य गुणार्थ का संकेत देता है.
भारत द्वारा अमेरिका और जापान के साथ किए गए वार्षिक मालाबार नौसैनिक अभ्यास की वजह से इस वर्ष ऑस्ट्रेलिया की भी वापसी हो सकती है; ‘क्वाड्रीलैटरल’ में सभी राष्ट्रों के बीच द्विपक्षीय सैन्य संबंध कभी बेहतर नहीं रहे हैं इसलिए वास्तविक समय की खुफिया सूचनाओं को साझा करने के लिए तंत्र को तेजी से स्थापित किया जा रहा है.
डोकलाम में सीमाबंदी और निरंतर एवं असामान्य पीएलए तैनाती ने सैन्य बल की वृद्धि के जरिए संतुलन लाने के भारतीय संकल्प को और मजबूत किया है.
पहली बार, क्वाड के चारों देशों के शीर्ष सैन्य नेताओं ने रायसीना वार्ता में एक मंच पर एक साथ बात की – इस दलबंदी से सैन्य बढ़त का एक और संकेत प्रकट होता है.
समान विचारधारा वाले राष्ट्र
क्वाड एक समान विचारधारा वाले राष्ट्रों का एक संघ है जो प्रत्येक राष्ट्र के लिए कई अद्वितीय चुनौतियाँ या अवसर उत्पन्न करता है.
चीन क्वाड से सावधान है और यह साबित करने में भी नहीं झिझकेगा कि इस समूह का उद्देश्य केवल उसे (चीन को) नियंत्रित करना है. कनेक्टिविटी परियोजनाओं में अपने निवेश से संबन्धित राष्ट्रों के अपने समूह के साथ मिलकर बीजिंग इसका विरोध करेगा.
अमेरिका ने न केवल इसकी शुरुआत की बल्कि क्वाड का सबसे मजबूत समर्थन भी जारी रखेगा. यूएस पेसिफिक कमांड के प्रमुख एडमिरल हैरी हैरिस ने वर्ष 2018 में क्वाड को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से कुछ साहसिक फैसले लिए और इस क्षेत्र में चीन को विध्वंसकारी ताकत बताया.
जापान ने पहली बार चीन के समुद्री विस्तारवाद का अनुभव किया और चोटें खाईं. जापान के ज्वाइंट स्टाफ के प्रमुख एडमिरल कत्सुतोशी कावनो ने खुले तौर पर बीजिंग की यथास्थिति को बदलने की लगातार कोशिशों के बारे में खुलासा किया जिसमें इसकी शक्तिशाली पीएलए नौसेना सभी योजनाओं के लिए मुख्य भूमिका में थी.
ऑस्ट्रेलिया, जो अतीत में कई बहुपक्षीय मंचों और संगठनों का माध्यम रहा है, इस बात पर नज़र रखेगा की यह दलबंदी सिर्फ कागज़ पर ही सीमित न रह जाए. इसलिए ऑस्ट्रेलियाई नौसेना के प्रमुख वाइस एडमिरल टिम बैरेट ने ठोस परिणामों के लिए बात-चीत के माध्यम का पालन करने पर जोर दिया.
भारत का दृष्टिकोण
एकमात्र ऐसा देश जो किसी भी सार्थक परिणाम के लिए समूह का संचालन कर सकता है, वह है भारत. यदि भारत की अपने आसपास के क्षेत्र में चीनी प्रभाव को रोकने के लिए हाथ मिलाने की रणनीति है तो उसे न केवल क्वाड के केंद्र में रहना होगा बल्कि इसमें एक अग्रिम स्थान लेने की भी आवश्यकता होगी.
वार्ता में, भाजपा के महासचिव राम माधव ने बताया कि किस प्रकार नई विदेश नीति को आधारभूत दृष्टिकोण से लेकर सुरक्षा और समुद्र-आधारित दृष्टिकोण तक बदलने की आवश्यकता है. पिछले साल अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के सुरक्षा से जुड़े पहले सम्मेलन में उनके शक्तिशाली थिंक टैंक, द इंडियन फाउंडेशन, ने पोर्ट ब्लेयर में एक विशेष संगोष्ठी आयोजित की थी.
मानसिकता निश्चित रूप से बदल गई है. लेकिन बढ़त बनाने के लिए भारत को दो क्षेत्रों में कदम उठाने की जरूरत है.
यदि आवश्यकता पड़े तो सेना से ज्यादा नौसेना का प्लेटफार्मों के साथ विस्तार किया जाना चाहिए, जो कि हिंद महासागर क्षेत्र में शक्ति और उपस्थिति दर्ज करा सकें. द्वीप श्रंखलाओं – खासकर अंडमान और निकोबार के बुनियादी ढ़ाँचे को मजबूत बनाने की जरूरत है जो इस क्षेत्र में भारत को काफी गहराई तक पहुँचाने के लिए एक मजबूत हथियार प्रदान करेगा.
हालांकि सरकार दोनों पर काम कर रही है – वांछित तेजी आना बाकी है. यह आर्थिक प्राथमिकताओं का भी सवाल है, आवश्यक संसाधन मौजूदा खर्च से परे हैं. शायद यह अगले महीने के बजट अनुमानों में दिखाए जा रहे संकल्प के लिए संकेत हो सकता है.