त्रिपुरा में मुख्यमंत्री माणिक सरकार की वामपंथी मोर्चा सरकार को हराने के लिए भाजपा लगातार आदिवासी समुदाय को लुभाने की कोशिश कर रही है.
नई दिल्ली: जब आप त्रिपुरा में हो तो राज्य के आदिवासी लोगों की तरह दिखो, खासकर तब, जब आप उन्हें अपनी पार्टी को वोट करने के लिए मना रहे हों – ये एक संभावित सन्देश प्रतीत होता है, जो उत्तरपूर्वी राज्य में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 31 जनवरी को होने वाली चुनाव से पहले की प्रथम यात्रा में भाजपा देना चाहती है.
पार्टी के सूत्रों के हवाले से यह पता चला है कि नरेन्द्र मोदी, त्रिपुरा राज्य की जनजातीय आबादी को एक मजबूत राजनीतिक संदेश देने के लिए, पारंपरिक आदिवासी पहनावे के रुप में टोपी और ‘रिसा’, (ऊपरी शरीर पर पहना जाने वाला कपड़े का एक भाग) पहनेंगे.
चुनाव पूर्व गठबंधन के लिए भाजपा इंडीजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा के साथ बातचीत करती रही है और 25 वर्षों से सत्ता में काबिज वाम मोर्चा सरकार, जिसमें से 20 वर्षों से सत्तासीन मुख्यमंत्री माणिक सरकार, को उखाड़ फेंकने के लिए जनजातीय समुदायों को अपने पक्ष में करने और उनका समर्थन प्राप्त करने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है.
प्रधानमंत्री मोदी ने एक ही दिन में दो रैलियों को संबोधित करने की योजना बनाई है, पहली उत्तर त्रिपुरा में और दूसरी राज्य के दक्षिणी भाग में. नरेन्द्र मोदी की त्रिपुरा राज्य की पिछली यात्रा 3 दिसंबर 2014 को हुई थी, जब उन्होंने एक थर्मल पावर प्लांट का उद्घाटन किया था.
हाथ से चुना, हाथ से बुना
मोदी द्वारा पहना जाने वाला ‘रिसा’ व्यावसायिक रूप से नहीं बनाया जायेगा; वास्तव में इसे विशेष बनाने के लिए भाजपा की राज्य इकाई ने प्रधानमंत्री मोदी के लिए इसे हाथ से बुनकर तैयार करने के लिए एक पुरस्कार विजेता जनजातीय कारीगर स्वर्णा देबबर्मा को काम पर लगाया हुआ है.
बोरोकथल से एक और जनजातीय कारीगर, उत्तरा देबबर्मा प्रधान मंत्री मोदी के लिए एक जैकेट बुन रही हैं.
स्वर्णा ने कहा कि वह पिछले दो महीनों से ‘रिसा’ पर काम कर रही हैं और वह स्वंय को बहुत ही भाग्यशाली समझती हैं कि उन्हे इस कार्य के लिए चुना गया है.
स्वर्णा ने कहा कि, “जब मैंने सुना कि प्रधानमंत्री मोदी त्रिपुरा आ रहे हैं, तो मैंने अपनी कला के माध्यम से उनके प्रति अपने प्रेम और आभार को व्यक्त करने का प्रयास किया. मुझे बहुत ही खुशी और गर्व की अनुभूति हो रही है कि मुझे इस सम्मान के लिए चुना गया है.” उन्होंने आगे कहा कि वह खुद के द्वारा बनाये गए परिधान को स्वयं उन्हें पेश करने की इच्छा रखती हैं.
34 वर्षीय स्वर्णा, मकानों से भरी एक कॉलोनी की सबसे संकरी गली में एक कमरे के टिन शेड के घर में रहती हैं. वह दो साल पहले ही अपनी बेटी की पढ़ाई के लिए अगरतला चली गईं थी.
उन्होंने कहा कि हाथ की बुनाई कठिन हो सकती है, लेकिन यह कारीगर को विभिन्न रंगों और डिजाइनों के साथ प्रयोग करने के पर्याप्त अवसर प्रदान करती है.
उन्होंने असंतोष प्रकट किया कि “रिसा और रिगनाई बनाने की कला अब समाप्त होने की कगार पर है. जिसकी अब कोई मान्यता नहीं है. क्योंकि अब लोग मशीनों द्वारा निर्मित कपड़ों की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं क्योंकि वे सस्ते होते हैं और आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं.”
“जिस प्रकार की डिजाइन की ग्राहक मांग करते हैं उस प्रकार से हाथ से बुने हुए कपड़ों को तैयार करने में महीनों लग सकते हैं. वर्तमान समय में लोगों के धैर्य का स्तर काफी नीचे चला गया है, वे उच्च गुणवत्ता के शिल्प कौशल वाले कपड़ों के लिए ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते.”
पसंद का महत्व
भाजपा के त्रिपुरा चुनाव प्रभारी सुनील देवधर ने त्रिपुरा की वर्तमान सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि माणिक सरकार के कारण, वहाँ की जनजातीय कला और शिल्प पूरी तरह से नष्ट हो चुके हैं. यही कारण है कि प्रधान मंत्री मोदी, उन्हें इस “विनम्र तरीके” के माध्यम से पहचान देना चाहते हैं.
त्रिपुरा में 60 विधानसभा सीटें हैं जिसमें से 20 सीटों पर वहाँ की जनजातियों का प्रभुत्व है, जबकि अन्य 15 सीटों में भी जनजातीय वोटों की संख्या काफी अधिक है.
इस प्रकार, जनजातीय मतदाताओं को लुभाना, भाजपा के वामपंथी मोर्चे की सरकार को उखाड़ फेंकने और उत्तरपूर्व में अपने विस्तार के सपने के लिए एक निर्णायक कदम साबित हो सकता है.