नयी दिल्ली, 11 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को जानना चाहा कि क्या संबंधित पक्ष इस बात से सहमत हैं कि निजी क्षेत्र में अधिवास के आधार पर आरक्षण से संबंधित मामलों पर एक साथ विचार किया जाए।
उच्चतम न्यायालय राज्य के निवासियों के लिए निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाले कानून पर अंतरिम रोक लगाने संबंधी पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ हरियाणा सरकार की अपील पर सुनवाई कर रहा था।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की पीठ ने कहा कि उसे पता चला है कि इसी तरह के कानून आंध्र प्रदेश और झारखंड में पारित किए गए हैं और उन्हें उच्च न्यायालयों में चुनौती दी गई है।
उच्चतम न्यायालय ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वह इससे संबंधित तथ्यों का पता लगायें और विवरण एकत्र करें।
पीठ ने कहा, ‘‘यदि मामले अन्य उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित हैं, तो हम उच्च न्यायालयों से कागजात मंगवाने के बाद इस पर सुनवाई कर सकते हैं, आप हमें सूचित कर सकते हैं।’’
न्यायालय ने मामले को सोमवार को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
शुरुआत में, मेहता ने कहा कि केवल 90 सेकंड की सुनवाई के बाद, एक आदेश द्वारा एक कानून पर रोक लगा दी गई है। उन्होंने कहा कि केवल गिने-चुने लोग ही इस कानून का विरोध कर रहे हैं।
एक पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय को विचार करने की आवश्यकता है।
वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि वह मुवक्किलों से सलाह मशविरा करने के बाद इस मुद्दे पर विचार करेंगे।
उच्च न्यायालय ने तीन फरवरी को फरीदाबाद के विभिन्न उद्योग संघों और गुड़गांव सहित राज्य के अन्य निकायों द्वारा दायर याचिकाओं पर हरियाणा सरकार के कानून पर अंतरिम रोक लगा दी थी।
हरियाणा राज्य स्थानीय अभ्यर्थी रोजगार कानून, 2020 राज्य के नौकरी पाने के इच्छुक लोगों को निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 फीसदी आरक्षण देता है। यह कानून 15 जनवरी से प्रभावी हुआ था।
यह कानून हरियाणा में स्थित निजी क्षेत्र की कंपनियों, सोसाइटियों, ट्रस्ट, साझेदारी वाली लिमिटेड कंपनियों, साझेदारी फर्म, 10 से ज्यादा लोगों को मासिक वेतन/दिहाड़ी पर नौकरी देने वाले कार्यालयों, विनिर्माण क्षेत्र आदि पर लागू होता है।
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देवेंद्र अनूप
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