(केट फाइलेक्टिस, प्रोफेसर, अंतरराष्ट्रीय वित्त और निदेशक, एमर्जिंग मार्केट्स ग्रुप, सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन)
लंदन, पांच फरवरी (द कन्वरसेशन) बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक खेल शुरू होने के साथ ही सारी दुनिया की नजरें फिर से चीन पर जा टिकी हैं। उइगर एवं अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति चीन के बर्ताव को लेकर पश्चिमी देशों में खूब खबरें आ रही हैं, लेकिन इसी के साथ चीन की अर्थव्यवस्था के बारे में भी बहुत कुछ कहा जा रहा है।
पिछले कुछ दशकों में एक बड़ी ताकत के रूप में चीन के उभार को इस दौर की एक बड़ी आर्थिक सफलता माना जाता है। इस दौरान चीन में न सिर्फ लाखों लोग गरीबी के शिकंजे से बाहर निकले हैं बल्कि दुनिया को वर्ष 2007-08 के वित्तीय संकट से उबारने में भी चीन ने अहम भूमिका निभाई।
हालांकि बीते दशक में चीन की यह चमक आर्थिक वृद्धि की रफ्तार सुस्त पड़ने से थोड़ी फीकी हुई है। इस दौरान चीन को अपनी निर्यात वृद्धि की दर की रफ्तार कायम रखने में समस्या हुई जिसमें अमेरिका के साथ छिड़े व्यापार युद्ध की भूमिका भी रही।
इसके अलावा चीन की जनसंख्या का समय के साथ उम्रदराज होते जाना और वृद्धि के काफी हद तक ऋण पर आधारित होने से भी उसकी तेजी पर असर देखा गया।
चीन की आर्थिक वृद्धि 1997-2021
दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में चीन कोविड-19 महामारी पर कहीं बेहतर तरीके से काबू पाने में सफल रहा। इसके बावजूद कोरोना वायरस के नए स्वरूप ओमीक्रोन के सामने आने के बाद महामारी का खतरा फिर से बढ़ता दिखा जिसने आर्थिक गतिविधियों को भी प्रभावित किया।
चीन से आयात करने वाले कुछ प्रमुख देशों पर महामारी की मार ने भी उस पर असर डाला है। इसके अलावा अमेरिका एवं कुछ यूरोपीय देशों में मुद्रास्फीति बढ़ने से भी ब्याज दरों में वृद्धि का खतरा पैदा हुआ है। इससे चीनी उत्पादों की वैश्विक मांग पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका है।
चीन का कर्ज भी पहले से कहीं बड़ा मुद्दा बना है। चीन के अग्रणी प्रॉपर्टी डेवलपर एवरग्रांडे की वित्तीय समस्याएं सुर्खियों में बनी रहीं, लेकिन समूचे प्रॉपर्टी बाजार पर अत्यधिक कर्ज की समस्या हावी है। अगर यह बुलबुला फूटता है तो इससे गिरावट का वह सिलसिला शुरू हो सकता है जिसकी चपेट में व्यापक अर्थव्यवस्था आएगी।
चीन की सरकार बड़ी कंपनियों को कर्ज बोझ कम करने का दबाव डालने के साथ ही प्रॉपर्टी क्षेत्र में उधारी घटाने और अनौपचारिक कर्ज वितरण पर भी नकेल कस रही है।
कमजोर होते निर्यात और घटते कर्ज का मतलब है कि चीन मंदी की तरफ बढ़ रहा है। विश्व बैंक का अनुमान है कि चीन की आर्थिक वृद्धि पिछले साल के आठ प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2022 में पांच प्रतिशत से थोड़ी ही अधिक होगी।
चीन की चुनौतियां
चीन की वृद्धि का परंपरागत मॉडल निर्यात, ढांचागत विकास और रियल एस्टेट निवेश पर आधारित रहा है , लेकिन अब यह अपना चक्र पूरा करता हुआ नजर आ रहा है। चीन इस समय देश में घरेलू खपत वाले उत्पादों एवं सेवाओं पर अधिक जोर देने के साथ ही कार्बन-अधिकता वाली गतिविधियों में कमी लाने पर भी ध्यान दे रहा है।
चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के लिए इन दोनों स्थितियों के बीच संतुलन साधने का सबसे अच्छा तरीका नए सुधार लागू करना ही है लेकिन उससे जनजीवन पर सरकार का प्रभाव सीमित होगा। हालांकि विश्व बैंक की अनुशंसाओं के अनुरूप चीन सरकार अगर अधिक उदारीकरण कदम उठाती है तो वह उसके लिए सही तरीका भी दिखता है।
हालांकि चीन वैश्विक अर्थव्यवस्था में पहले से बड़ी भूमिका निभाना चाहता है लेकिन इसी के साथ वह प्रौद्योगिकी के स्तर पर आत्मनिर्भर होने और स्वदेशी नवाचार पर अधिक जोर भी दे रहा है। इस विरोधाभासी रवैये के बीच पश्चिमी देशों से चीन को अलग-थलग करने के संकेत भी मिल रहे हैं।
शीतकालीन ओलंपिक खेलों के दौरान चीन जिस तरह अपने लोगों से खिलाड़ियों को अलग रखने की कोशिश कर रहा है, कुछ उसी तरह चीन बाकी दुनिया के साथ भी कर रहा है।
(द कन्वरसेशन)
प्रेम पवनेश
पवनेश
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