नयी दिल्ली, चार फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 से जान गंवाने वाले पारसी समुदाय के लोगों के शवों की पारंपरिक अंत्येष्टि के लिए प्रोटोकॉल और मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) पर केंद्र एवं पारसी समुदाय के बीच बनी सहमति को शुक्रवार को मंजूरी दे दी। इसके तहत, पक्षियों या जंतुओं के किसी संपर्क को रोकने के लिए ‘टावर ऑफ साइलेंस’ में धातु का बना एक जाल लगाया जाएगा।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने सहमति का जिक्र किया, जिस पर केंद्र और सूरत पारसी पंचायत बोर्ड पहुंचा है। साथ ही, पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ एक अपील का निस्तारण कर दिया।
जिस प्रोटोकॉल पर सहमति बनी है उसमें कहा गया है, ‘‘चूंकि टावर ऑफ साइलेंस में पारंपरिक अंत्येष्टि का प्रधान माध्यम सूर्य की तेज किरणें हैं और इसलिए पक्षियों के चलते पैदा होने वाली समस्या से निपटने के लिए याचिकाकर्ता डोखमा नंबर-3 पर, जो कोविड से जान गंवाने वाले पारसी समुदाय के लोगों के लिए विशेष रूप से है, यथाशीघ्र धातु का बना एक जाल लगाए ; यह शवों को पक्षियों एवं जंतुओं के संपर्क में नहीं आने देगा और गिद्धों को भी रोकेगा। इसतरह, धातु का जाल लग जाने पर शव पक्षियों आदि के लिए उपलब्ध नहीं हो सकेंगे।’’
पीठ ने विवाद का सौहार्द्रपूर्ण हल निकालने के लिए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता, जो केंद्र की ओर से पेश हुए और वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरीमन की कोशिशों की सराहना की।
मेहता ने कहा कि इस प्रोटोकॉल का समुदाय के सदस्यों द्वारा पूरे देश में अनुपालन किया जाए।
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सुभाष पवनेश
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