नयी दिल्ली, चार फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि सहमति ‘डिक्री’ को तब तक नहीं संशोधित किया जा सकता, जब तक गलती ‘प्रत्यक्ष या स्पष्ट’ न हो, अन्यथा पक्षकार की गलतफहमी के आधार पर इस तरह के हर डिक्री को बदलने की मांग का खतरा हो सकता है।
शीर्ष अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 2019 के उस आदेश के खिलाफ अपील खारिज कर दी, जिसमें उसने अपने पहले के आदेश में संशोधन की मांग को लेकर सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की प्रासंगिक धाराओं के तहत दायर अर्जी खारिज कर दी थी।
उच्च न्यायालय ने अपने पूर्व के आदेश में दो पक्षों के बीच समझौते की शर्तों से संबंधित एक मुकदमे में डिक्री दिया था।
न्यायमूर्ति एल एन राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा कि सहमति से निर्णय का उद्देश्य संबंधित पक्षों के बीच मुकदमेबाजी को रोकना है, जैसा कि लंबे समय से चले आ रहे मुकदमे के अंत में अदालत का फैसला आता है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह अपीलकर्ता के वकील की इस दलील से सहमत नहीं है कि समझौता करने के दौरान गलतफहमी के कारण गलती हुई थी।
पीठ ने कहा कि संबंधित पक्षों के वकीलों के बीच हुए पत्राचार से यह प्रदर्शित होगा कि कोई भी संशय की स्थिति या स्पष्टता की कमी नहीं है, जिससे गलतफहमी पैदा हो।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, ‘‘अगर मान भी लिया जाए कि कोई गलती भी हुई तो सहमति डिक्री को तब तक संशोधित या बदला नहीं जा सकता जब तक गलती प्रत्यक्ष या स्पष्ट न हो, अन्यथा पक्षकार की गलतफहमी के आधार पर इस तरह के हर डिक्री को बदलने की मांग का खतरा हो सकता है।
पीठ ने कहा, ‘‘पूर्वगामी कारणों से हम उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हैं और अपील खारिज करते हैं।’’
भाषा
सुरेश दिलीप
दिलीप
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