बेंगलुरू: दिल्ली ने भारत की स्टार्टअप कैपिटल के तौर पर अपनी पहचान से बेंगलुरू को पीछे छोड़ दिया है लेकिन दक्षिण भारतीय शहर को इसका कोई गम नहीं है. कर्नाटक में सरकार, निवेशक, नीति निर्माता और यहां तक कि विपक्षी नेता भी आंकड़ों में ऐसे बदलाव को लेकर ज्यादा हैरान नहीं हैं, क्योंकि उनका मानना है कि वास्तव में जो बात सबसे ज्यादा मायने रखती है वो है यहां पिछले साल यूनिकॉर्न स्थिति तक पहुंचने वाली कंपनियों की संख्या और उनमें होने वाला एक बड़ा निवेश.
31 जनवरी को संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2021-2022 के मुताबिक, अप्रैल 2019 से लेकर दिसंबर 2021 के बीच दिल्ली के खाते में 5,000 से अधिक स्टार्टअप जुड़े, वहीं बेंगलुरू में 4,514 स्टार्टअप लॉन्च हुए. हालांकि, बेंगलुरू में आम धारणा यही है कि यह आंकड़े बहुत ज्यादा मायने नहीं रखते.
कर्नाटक के इलेक्ट्रॉनिक्स, सूचना प्रौद्योगिकी और जैव प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ सी.एन. अश्वथ नारायण ने दिप्रिंट से कहा, ‘केवल रजिस्टर्ट होने वाले स्टार्टअप की संख्या का कोई मतलब नहीं है. इनकी स्थिरता, विकास और निवेश का आकार आदि ऐसे पहलू हैं जो ज्यादा मायने रखते हैं और इस मामले में बेंगलुरू अपने प्रतिस्पर्द्धी दिल्ली-एनसीआर से बहुत आगे है.’
मंत्री ने कहा, ‘कोई भी किसी भी कारण से स्टार्टअप रजिस्टर्ड करा सकता है. लेकिन यह तो हमारे एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) से ही पता चलता है कि निवेशकों को कितना भरोसा है.’
वित्त वर्ष 2021-2022 की पहली छमाही के लिए भारत में कुल एफडीआई निवेश में कर्नाटक की हिस्से 45 प्रतिशत रही है.
नारायण ने दिप्रिंट को यह भी बताया कि सरकार एक साथ मिलाकर एक प्रेजेंटेशन दे रही है जिससे स्पष्ट हो जाएगा कि बेंगलुरू अभी भी निवेश और स्टार्टअप के लिए देश का एक पसंदीदा स्थान बना हुआ है.
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यूनिकॉर्न रेस में बेंगलुरू आगे
आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, 2021 में 44 भारतीय स्टार्टअप यूनिकॉर्न की स्थिति में पहुंचे. इस सूची से पता चलता है कि देश में सबसे ज्यादा यूनिकॉर्न— यानी ऐसी कंपनियां जिनका वैल्यूएशन 1 अरब डॉलर के ऊपर पहुंच जाए— बेंगलुरू में ही हैं.
औद्योगिक विकास आयुक्त और कर्नाटक सरकार में उद्योग और वाणिज्य विभाग के निदेशक गुंजन कृष्णा ने दिप्रिंट से कहा, ‘आर्थिक सर्वेक्षण में बताए गए आंकड़ों का विश्लेषण किया जाना बाकी है, लेकिन जो बात ज्यादा मायने रखती है वह ये है कि यूनिकॉर्न की कुल संख्या में हमारा योगदान कितना है और बेंगलुरू में कुल कितना निवेश आया है. इसमें हमारा दबदबा बरकरार है— कुल यूनिकॉर्न में 42-45 प्रतिशत कर्नाटक से हैं. बड़े निवेश, एंजेल फंडिंग भी यहीं आ रही है और स्टार्टअप्स का आकार बड़ा होना भी मायने रखता है.’
यूनिकॉर्न क्लब में जगह बनाने वाली बेंगलुरू की कंपनियों में हर तरह के स्टार्टअप शामिल हैं. इन कंपनियों में स्लाइस, क्रेड, डिजिट इंश्योरेंस (फिन-टेक), मेन्सा ब्रांड्स (डिजिटल फैशन ब्रांड बिल्डर), लिसिअस (ऑनलाइन मीट डिलीवरी), क्योर.फिट (स्वास्थ्य और कल्याण), मीशो (ई-कॉमर्स), वेदांतु (एडुटेक), ब्लैकबक (ट्रकिंग), अपना (पेशेवर नेटवर्किंग), कॉइनस्विच कुबेर (क्रिप्टोकरेंसी), ग्रो (निवेश), नोब्रोकर (रियल-एस्टेट), शेयरचैट (सोशल मीडिया), एमपीएल (ऑनलाइन गेमिंग) और जेटवर्क (बी2बी मैन्युफैक्चरिंग) आदि शामिल हैं.
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निवेशकों की भी राय, स्टार्टअप्स की संख्या कोई मानक नहीं
कई निवेशक भी सरकार के इस रुख से सहमत हैं कि केवल स्टार्टअप्स की संख्या अपने आप में कोई अहम मानक नहीं है.
वेंचर फंड अरिन कैपिटल के सह-संस्थापक और अध्यक्ष टी.वी. मोहनदास पई के मुताबिक, उन्हें लगता है कि बेंगलुरू का स्टार्टअप इकोसिस्टम कारोबार के लिए अधिक अनुकूल है.
पई ने कहा, ‘आप मेरे रुख को पक्षपाती मान सकते हैं हैं, लेकिन मैं ‘आक्रामक’ दिल्ली-एनसीआर के बजाये ‘कंजरवेटिव और इनोवेटिव’ बेंगलुरू में निवेश करना ज्यादा पसंद करूंगा. सरकार, उद्यमशीलता की भावना, जीवन की गुणवत्ता यहां ज्यादा बेहतर है, जबकि बुनियादी ढांचा उतना ही खराब है जितना दिल्ली-एनसीआर में है.’ साथ ही जोड़ा कि उनकी नजर में चेन्नई, हैदराबाद और कोलकाता जैसे शहरों का पिछड़ना ज्यादा चिंताजनक है.
हालांकि, पई ने स्वीकारा कि उत्तर भारत में स्टार्टअप के क्षेत्र में ‘उछाल’ आया है और निवेशक यहां ‘मौकों की तलाश’ कर रहे हैं.
पई ने कहा, ‘यह बात सिर्फ दिल्ली नहीं बल्कि दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र पर लागू होती है (जिसमें यूपी में नोएडा और हरियाणा में गुरुग्राम शामिल है). बेंगलुरू में डीप इंजीनियरिंग पर अधिक जोर हैं जबकि दिल्ली-एनसीआर में ट्रेडिंग ज्यादा अहम है. नई दिल्ली में स्टार्टअप की संख्या अपने आप में बहुत कम हैं लेकिन उत्तर प्रदेश और हरियाणा में इनकी संख्या जाता है.’
कृष्णा ने कहा कि बेंगलुरू के कॉल सेंटर जैसे बुनियादी क्षेत्रों से आगे बढ़कर अधिक विशिष्ट क्षेत्रों में इनोवेशन पर ध्यान केंद्रित करने को भी महत्व दिया जाना चाहिए.
कृष्णा ने कहा, ‘जब कॉल सेंटर और बीपीओ आए तो बेंगलुरू उनका एक बड़ा ठिकाना था. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह काम आंतरिक इलाकों में चला गया है. बेंगलुरू अब ईवी (इलेक्ट्रिक वाहन) निर्माण, क्वांटम कंप्यूटिंग, एयरोस्पेस और रक्षा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, स्वच्छ तकनीक, आईओटी (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) जैसे अन्य क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. जब समग्र रूप से स्टार्टअप पर ध्यान केंद्रित किया जाए तो निचले स्तर पर तेजी से विकास होना स्वभाविक है.’
यहां तक कि कर्नाटक में कुछ विपक्षी नेताओं का भी मानना है कि आर्थिक सर्वेक्षण का विश्लेषण कई मायने में सीमित ही है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कर्नाटक के पूर्व आईटी और बीटी मंत्री प्रियांक खड़गे ने कहा, ‘किसी को भी सबसे पहले निवेश के टिकट साइज और कंपनियों में पूंजी के प्रवाह पर विचार करना होगा. मेरा मानना है कि बेंगलुरू का स्टार्टअप इकोसिस्टम अधिक प्रौद्योगिकी और उत्पाद-उन्मुख है, जबकि बाकी जगहों पर यह सर्विस-ओरिएंटेड या रिप्लिका बिजनेस है. जबकि बेंगलुरू में ज्यादातर कंपनियों को मिलने वाला फंड उन्हें अगले स्तर तक पहुंचा देता है.’
हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि यह कर्नाटक सरकार के लिए चौकन्ना होने का वक्त है. उन्होंने कहा, ‘दिल्ली सरकार बिजनेस ब्लास्टर्स (छात्रों के बीच उद्यमिता को प्रोत्साहन देने वाला एक कार्यक्रम) आयोजित कर रही है— यह उसी तरह है जैसा हमने पांच साल पहले किया था. मौजूदा स्थितियों को देखते हुए हमें शायद सैंडबॉक्स पॉलिसी, इनोवेशन अथॉरिटी पॉलिसी जैसी नीतियों में सुधार की जरूरत है, जिन्हें सही तरीके से शुरू नहीं किया गया है.’
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