नयी दिल्ली, दो फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को गैंगस्टर अबू सलेम द्वारा दायर एक याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा, जिसमें कहा गया है कि भारत और पुर्तगाल के बीच प्रत्यर्पण संधि की शर्तों के अनुसार उसकी जेल की सजा 25 साल से अधिक नहीं हो सकती। सलेम 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट मामले में अपनी भूमिका के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहा है।
न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने सलेम की याचिका पर जवाब देने के लिए केंद्र को चार सप्ताह का समय दिया। याचिका में दावा किया गया है कि टाडा अदालत का सलेम को आजीवन कारावास की सजा देने का 2017 का फैसला प्रत्यर्पण संधि की शर्तों के खिलाफ था।
याचिका में कहा गया, ‘‘भारत सरकार ने पुर्तगाल के सर्वोच्च न्यायालय में आश्वासन दिया था कि अपीलकर्ता को 25 साल से अधिक की सजा नहीं दी जाएगी। यह आश्वासन न्यायिक कार्यवाही का हिस्सा था और इस पर प्रत्यर्पण आदेश पारित किया गया था। टाडा अदालत द्वारा कुछ अपराधों के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने से इस आश्वासन का घोर उल्लंघन हुआ।’’
सलेम की ओर से पेश अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा ने कहा कि सलेम को आजीवन कारावास की सजा भारत सरकार की ओर से पुर्तगाल को दिए गए आश्वासन के खिलाफ है जहां से उसे प्रत्यर्पित किया गया था। वकील ने दलील दी कि भले ही टाडा अदालत ने कहा था कि वह सरकार के आश्वासन से बंधी नहीं है लेकिन शीर्ष अदालत के पास इस मुद्दे पर निर्णय करने की शक्ति है।
विशेष टाडा अदालत ने 1995 में मुंबई के बिल्डर प्रदीप जैन की उनके ड्राइवर मेहंदी हसन के साथ हत्या के एक अन्य मामले में 25 फरवरी 2015 को सलेम को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। मामले के एक अन्य आरोपी वीरेंद्र झाम्ब की सजा को जांच के विभिन्न चरणों के दौरान जेल में हिरासत में बिताए गए समय के साथ समायोजित किया गया था।
पुलिस के अनुसार सात मार्च 1995 को जैन की उनके जुहू बंगले के बाहर हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी, क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर सलेम को अपनी संपत्ति कुछ हिस्सा देने से इनकार कर दिया था। वर्ष 1993 के मुंबई सीरियल बम धमाकों के दोषी सलेम को लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 11 नवंबर 2005 को पुर्तगाल से प्रत्यर्पित किया गया था।
भाषा आशीष उमा
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