नयी दिल्ली, एक फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक फैसले को खारिज करते हुए कहा कि दोषसिद्धि बिना पुष्टि के केवल मृत्यु पूर्व दिये गए बयान के आधार पर हो सकती है। मामले में उच्च न्यायालय ने आग लगाकर एक महिला को मार डालने के आरोपी उसके ससुर और एक अन्य रिश्तेदार को बरी कर दिया था।
शीर्ष अदालत ने महिला के मृत्यु से पहले के बयान पर भरोसा करते हुए, जो एक मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया गया था, निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया, जिसने दोनों आरोपियों को दोषी ठहराया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किये गये मृत्यु पूर्व बयान पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है, जिसमें महिला ने विशेष रूप से कहा था कि आरोपियों ने पैसे की मांग को लेकर विवाद के कारण उसे आग लगा दी।
इसने कहा कि मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किये गए मृत्यु पूर्व बयान पर भरोसा न करने के लिए उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया तर्क उचित नहीं है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के मई 2020 के आदेश को चुनौती देने वाली उत्तर प्रदेश सरकार की एक अपील पर फैसला सुनाया।
पीठ ने कहा, ‘हमें 22 दिसंबर, 2011 को मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किये गए मृत्यु से पहले के बयान पर संदेह करने का कोई कारण नहीं दिखता है, जिसमें महिला ने विशेष रूप से कहा था कि पैसे की मांग को लेकर विवाद के कारण आरोपियों ने मिट्टी का तेल छिड़ककर उसे आग लगा दी।’
न्यायालय ने कहा कि अगर अदालत संतुष्ट है कि मृत्यु से पहले दिया गया बयान सही और स्वैच्छिक है, तो वह बिना पुष्टि के उसे सजा का आधार बना सकती है।
पुलिस के मुताबिक, घटना 20 दिसंबर 2011 को मथुरा जिले में हुई थी और इसके बाद नौ जनवरी 2012 को महिला की मौत हो गई थी।
भाषा नेत्रपाल दिलीप
दिलीप
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