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Friday, 22 November, 2024
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ग्रीन बॉन्ड्स, घरेलू सोलर पैनल्स को बढ़ावा, EVs: बजट 2022 में जलवायु परिवर्तन पर ज़ोर

वित्त मंत्री सीतारमण जलवायु परिवर्तन को ‘सबसे मज़बूत नकारात्मक बाहरी कारक बताती हैं, जो भारत और दूसरे देशों को प्रभावित करता है’, वो कहती हैं कि उनका फोकस ग़ैर-अक्षय ऊर्जा पर निर्भरता को कम करना है.

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नई दिल्ली: जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अपनी लड़ाई में, गैर-अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर भारत की निर्भरता को कम करने के लिए, मंगलवार को 2022-23 का केंद्रीय बजट पेश करते हुए, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कई उपायों का ऐलान किया.

इनमें सोलर फोटोवोल्टेक पैनलों के बढ़े हुए घरेलू उत्पादन के लिए आवंटन, कोयले से चलने वाले थर्मल पावर प्लांट्स में बायोमास पैलेट्स का इस्तेमाल, शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक यातायात के अधिक इस्तेमाल और बिजली-चालित वाहनों की ओर शिफ्ट को बढ़ावा और ऐसी परियोजनाओं वित्त-पोषित करने के लिए ‘ग्रीन बॉन्ड्स’ शामिल हैं, जिनका पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता हो.

पर्यावरण मंत्रालय के बजट आवंटन में इज़ाफा देखा गया जिसके लिए 3,030 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया, जो 2021-2022 के केंद्रीय बजट में 2,869.93 करोड़ रुपए था. पिछले साल (2020-2021) केंद्र ने मंत्रालय का बजट 3,100 करोड़ रुपए से कम कर दिया था.

वित्त मंत्री ने मंगलवार को ऐलान किया कि मोदी सरकार उच्च-कार्यक्षमता वाले मॉड्यूल्स के लिए, उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) के तौर पर 19,500 करोड़ रुपए का आवंटन करेगी जिसमें पॉलीसिलिकॉन से लेकर सोलर फोटोवोलटेक (पीवी) मॉड्यूल्स तक, पूरी तरह से एकीकृत निर्माण इकाइयों पर ज़ोर दिया जाएगा’.

पॉलीसिलिकॉन सोलर पीवी पैनल्स के निर्माण में एक आवश्यक हिस्सा होता है. भारत के सोलर पावर सेक्टर की, सोलर पैनल के हिस्सों के आयात पर भारी निर्भरता है. सीतारमण ने कहा कि घरेलू निर्माण को बढ़ावा देने से, ‘2030 तक स्थापित सोलर क्षमता को 280 गीगावॉट तक ले जाने के, भारत के महत्वाकाक्षी लक्ष्य को सुविधाजनक बनाया जा सकता है.

पिछले साल के संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन-सीओपी 26 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकल्प लिया था कि भारत की ग़ैर-फॉसिल ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावॉट्स तक बढ़ाया जाएगा और भारत की 50 प्रतिशत ऊर्जा ज़रूरतें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से पूरी की जाएंगी. इनमें सबसे बड़ा हिस्सा सौर ऊर्जा का है और अन्य स्रोत हैं पवन और जल ऊर्जा.

भारत ने ये भी संकल्प लिया कि 2030 तक, कार्बन उत्सर्जन में 1 बिलियन टन की कमी कर दी जाएगी.

मंगलवार को अपने भाषण के दौरान, सीतारमण ने जलवायु परिवर्तन को ‘सबसे मज़बूत नकारात्मक बाहरी बताया जो भारत और दूसरे देशों को प्रभावित करता है.’ सीतारमण ने आगे कहा कि कार्बन उत्सर्जन को घटाने के लिए, थर्मल पावर प्लांट्स में पांच से सात प्रतिशत बायोमास पैलेट्स साथ साथ फायर की जाएंगी.

अपने भाषण में उन्होंने कहा कि इसके नतीजे में हर एक साल में 38 मीट्रिक टन कार्बन डायोक्साइड की बचत होगी.

उन्होंने कोयले के गैसीकरण और उसे ‘उद्योग के लिए ज़रूरी रसायनों’ में बदलने के लिए चार पायलट परियोजनाएं भी शुरू कीं जिनसे कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी और साथ ही कृषि वानिकी और ‘निजी वानिकी’ को भी बढ़ावा मिलेगा.

वर्ल्ड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट (डब्लूआरआई) इंडिया की जलवायु निदेशक उल्का केलकर ने एक बयान में कहा, ‘क्लाइमेट एक्शन को एक नवोदित उद्योग और रोजगार पैदा करने वाला बताते हुए, बजट 2022 ने बाज़ारों, वित्तीय संस्थाओं और श्रम बल को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘अब हमें सरकारी प्रोत्साहन, एकत्रीकरण और स्वच्छ ऊर्जा के लिए डी-रिस्किंग की ताक़त चाहिए जिसे कम कार्बन वाली सामग्री, बैटरी री-साइक्लिंग की कुशलता और ग्रीन इनफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए परामर्शी प्रक्रियाओं से पूरित करना होगा.

सोलर मॉड्यूल्स के और अधिक घरेलू निर्माण को बढ़ावा देने पर काउंसिल फॉर इनर्जी एनवायरमेंट एंड वॉटर के, सेंटर फॉर इनर्जी फाइनेंस (सीईईडब्लू-सीईएफ) के प्रोग्राम लीड रिषभ जैन ने कहा कि पीएलआई देश को एक वैश्विक निर्माण केंद्र बनने की ओर बढ़ा सकते हैं लेकिन हमारे देश को पॉली सिलिकॉन और वेफर बनाने का कोई अनुभव नहीं है और सोलर सेल निर्माण का भी सीमित अनुभव है’.

उन्होंने एक बयान में कहा, ‘इस अवसर का फायदा उठाने के लिए, निर्माताओं को श्रमबल और आरएंडडी को नया कौशल सिखाने में अच्छा ख़ासा निवेश करना पड़ेगा. उच्च शिक्षा संस्थानों को भी अपने पाठ्यक्रमों को उद्योग में कौशल की ज़रूरतों के अनुरूप ढालना होगा’.


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बिजली वाहनों और चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा

सीतारमण ने कहा कि सरकार शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक यातायात की ओर ‘शिफ्ट को बढ़ावा’ देगी, जिसे स्वच्छ टेक्नोलॉजी, शासन समाधानों, ज़ीरो फॉसिल-फ्यूल नीति के साथ स्पेशल मोबिलिटी ज़ोन्स और ई-वाहनों से पूरित किया जाएगा. चार्जिंग सुविधाओं की कमी के कारण ‘बैटरी की अदला-बदली’ की नीति शुरू की जाएगी.

उन्होंने एक चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर जाने के महत्व पर भी ज़ोर दिया जहां सभी तरह के अपशिष्ट को अर्थव्यवस्थ को लौटा दिया जाता है या उसे ज़्यादा कुशलता के साथ इस्तेमाल किया जाता है. सीतारमण ने कहा कि 2022-2023 के लिए ‘रिवर्स लॉजिस्टिक्स, प्रौद्योगिकी सुधार और अनौपचारिक क्षेत्र के साथ एकीकरण’ पर ज़ोर दिया जाएगा. उन्होंने आगे कहा, ‘इसे विनिमन को कवर करने वाली सक्रिय सार्वजनिक नीतियों, उत्पादकों की जिम्मेदारियों की विस्तारित रूपरेखा और नवीनीकरण सुविधा से सहारा दिया जाएगा’.


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ग्रीन बॉन्ड और सिंगल विंडो क्लियरेंस

सरकार परिवेश पोर्टल को विस्तार देगी- जो पर्यावरण, वन, तटीय और वन्यप्राणी मंज़ूरी पर नज़र रखने वाला एक पोर्टल है- जिससे कि सीतारमण के अनुसार, ‘सभी चारों मंज़ूरियां एक ही फॉर्म से मिल जाएं और सेंट्रलाइज़्ड प्रोसेसिंग सेंटर –ग्रीन (सीपीसी-ग्रीन) के ज़रिए इस प्रक्रिया पर नज़र रखी जा सके.

मंत्री ने कहा, ‘ग्रीन इनफ्रास्ट्रक्चर के वास्ते संसाधन जुटाने के लिए सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड्स जारी किए जाएंगे. इनसे मिलने वाले धन को सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं में लगाया जाएगा जिससे अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को कम करने में मदद मिलेगी’.

सीईईडब्लू-सीईएफ के निदेशक गंगन सिद्धू ने एक बयान में कहा कि, ‘भारत ऐसे चुने हुए मुख्यत: यूरोपीय देशों के समूह में शामिल हो जाएगा, जिन्होंने ऐसे बॉण्ड जारी किए हैं’.

सिद्धू ने आगे कहा, ‘हम ये भी अपेक्षा कर सकते हैं कि इस क़दम से, घरेलू कॉरपोरेट ग्रीन बॉण्ड बाज़ार के विकास को भी बल मिलेगा’.

डब्लूआरआई इंडिया में रॉस सेंटर फॉर सस्टेनेबल सिटीज़ के कार्यकारी निदेशक माधव पई ने कहा कि ज़रूरत इस बात की है कि ‘बैंकों को स्वीकार्य ऐसी परियोजनाओं की पाइपलाइन तैयार की जाए जिन्हें ग्रीन बॉन्ड्स के ज़रिए वित्त पोषित किया जा सके’.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के लिए बहुत अच्छा अवसर है कि पानी, सीवरेज, तूफान का पानी, सफाई और यातायात जैसे विषयों पर परियोजना तैयार करने की एक सुविधा स्थापित करे’.

ग्रीन बॉन्ड्स ऋण उपकरण होते हैं जिनमें जारीकर्त्ता प्राप्त राशि को ऐसे परियोजनाओं को वित्त-पोषित करने का संकल्प लेता है, जिनका पर्यावरण या जलवायु प्रभाव सकारात्मक होता है.

नदियों का जुड़ाव

सीतारमण ने नदियों को जोड़ने की विवादास्पद परियोजनाओं के बारे में भी एक ऐलान किया. केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के लिए 2021-22 के संशोधित अनुमान में, 4,300 करोड़ रुपए और 2022-23 के बजट में 1,400 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं. परियोजना की कुल अनुमानित लागत 44,605 करोड़ रुपए है.

सीतारमण ने कहा कि नदियों को जोड़ने की पांच और परियोजनाएं तैयार की गईं हैं. उन्होंने आगे कहा, ‘एक बार लाभार्थी सूबों के बीच सहमति बन जाए तो केंद्र कार्यान्वयन के लिए सहायता मुहैया कराएगा’.

कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य जयराम रमेश, जो विज्ञान व प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन पर स्थायी समिति के अध्यक्ष भी हैं, उन्होंने कहा कि नदियों को जोड़ने की परियोजना मोदी सरकार को ‘तबाही के रास्ते’ पर ला देगी.

मंगलवार को एक ट्वीट में उन्होंने कहा कि एक तरफ बजट में ‘जलवायु एक्शन और पर्यावरण को बचाने की बात की गई है’ और दूसरी ओर पर्यावरण के लिहाज़ से विनाशकारी नदी-जोड़ो परियोजनाओं को आगे बढ़ाया गया है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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